क्या आप इरोम शर्मीला को जानते हैं ?वो दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राष्ट्र में पिछले ८ सालों से भूख हड़ताल पर बैठी है ,उसके नाक में जबरन रबर का पाइप डालकर उसे खाना खिलाया जाता है ,उसे जब नहीं तब गिरफ्तार करके जेल भेज दिया जाता हैं , वो जब जेल से छूटती है तो सीधे दिल्ली राजघाट गांधी जी की समाधि पर पहुँच जाती है और वहां फफक कर रो पड़ती है ,कहते हैं कि वो गाँधी का पुनर्जन्म है ,उसने ८ सालों से अपनी माँ का चेहरा नहीं देखा,उसके घर का नाम चानू है जो मेरी छोटी बहन का भी है और ये भी इतफाक है कि दोनों के चेहरे मिलते हैं | कहीं पढ़ा था कि अगर एक कमरे में लाश पड़ी हो तो आप बगल वाले कमरे में चुप कैसे बैठ सकते हैं ?शर्मीला भी चुप कैसे रहती ? नवम्बर २ ,२००० को गुरुवार की उस दोपहरी में सब बदल गया ,जब उग्रवादियों द्वारा एक विस्फोट किये जाने की प्रतिक्रिया में असम राइफल्स के जवानो ने १० निर्दोष नागरिकों को बेरहमी से गोली मार दी ,जिन लोगों को गोली मारी गयी वो अगले दिन एक शांति रैली निकालने की तैयारी में लगे थे |भारत का स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले मणिपुर में मानवों और मानवाधिकारों की सशस्त्र बलों द्वारा सरेआम की जा रही हत्या को शर्मीला बर्दाश्त नहीं कर पायी ,वो हथियार उठा सकती थी ,मगर उसने सत्याग्रह करने का निश्चय कर लिया ,ऐसा सत्याग्रह जिसका साहस आजाद भारत में किसी हिन्दुस्तानी ने नहीं किया था |शर्मिला उस बर्बर कानून के खिलाफ खड़ी हो गयी जिसकी आड़ में सेना को बिना वारंट के न सिर्फ किसी की गिरफ्तारी का बल्कि गोली मारने कभी अधिकार मिल जाता है ,पोटा से भी कठोर इस कानून में सेना को किसी के घर में बिना इजाजत घुसकर तलाशी करने के एकाधिकार मिल जाते हैं , वो कानून है जिसकी आड़ में सेना के जवान न सिर्फ देश के एक राज्य में खुलेआम बलात्कार कर रहे हैं बल्कि हत्याएं भी कर रहे हैं |शर्मिला का कहना है की जब तक भारत सरकार सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून -१९५८ को नहीं हटा लेती ,तब तक मेरी भूख हड़ताल जारी रहेगी | आज शर्मीला का एकल सत्याग्रह संपूर्ण विश्व में मानवाधिकारों कि रक्षा के लिए किये जा रहे आंदोलनों की अगुवाई कर रहा है | अगर आप शर्मिला को नहीं जानते हैं तो इसकी वजह सिर्फ ये है कि आज भी देश में मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर उठने वाली कोई भी आवाज सत्ता के गलियारों में कुचल दी जाती है,मीडिया पहले भी तमाशबीन था आज भी है |शर्मीला कवरपेज का हिस्सा नहीं बन सकती क्यूंकि वो कोई माडल या अभिनेत्री नहीं है और न ही गाँधी का नाम ढो रहे किसी परिवार की बेटी या बहु है |
इरोम शर्मिला के कई परिचय हैं |वो इरोम नंदा और इरोम सखी देवी की प्यारी बेटी है ,वो बहन विजयवंती और भाई सिंघजित की वो दुलारी बहन है जो कहती है कि मौत एक उत्सव है अगर वो दूसरो के काम आ सके ,उसे योग के अलावा प्राकृतिक चिकित्सा का अद्भुत ज्ञान है ,वो एक कवि भी है जिसने सैकडों कवितायेँ लिखी हैं |लेकिन आम मणिपुरी के लिए वो इरोम शर्मीला न होकर मणिपुर की लौह महिला है वो महिला जिसने संवेदनहीन सत्ता की सत्ता को तो अस्वीकार किया ही ,उस सत्ता के द्वारा लागू किये गए निष्ठुर कानूनों के खिलाफ इस सदी का सबसे कठोर आन्दोलन शुरू कर दिया |वो इरोम है जिसके पीछे उमड़ रही अपार भीड़ ने केंद्र सरकार के लिए नयी चुनौतियाँ पैदा कर दी हैं ,जब दिसम्बर २००६ मेंइरोम के सत्याग्रह से चिंतित प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने बर्बर सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून को और भी शिथिल करने की बात कही तो शर्मीला ने साफ़ तौर पर कहा की हम इस गंदे कानून को पूरी तरह से उठाने से कम कुछ भी स्वीकार करने वाले नहीं हैं |गौरतलब है इस कानून को लागू करने का एकाधिकार राज्यपाल के पास है जिसके तहत वो राज्य के किसी भी इलाके में या सम्पूर्ण राज्य को संवेदनशील घोषित करके वहां यह कानून लागू कर सकता है |शर्मीला कहती है 'आप यकीं नहीं करेंगे हम आज भी गुलाम हैं ,इस कानून से समूचे नॉर्थ ईस्ट में अघोषित आपातकाल या मार्शल ला की स्थिति बन गयी है ,भला हम इसे कैसे स्वीकार कर लें ?'
३५ साल की उम्र में भी बूढी दिख रही शर्मीला बी.बी.सी को दिए गए अपने इंटरव्यू में अपने प्रति इस कठोर निर्णय को स्वाभाविक बताते हुए कहती है 'ये मेरे अकेले की लड़ाई नहीं है मेरा सत्याग्रह शान्ति ,प्रेम ,और सत्य की स्थापना हेतु समूचे मणिपुर की जनता के लिए है "|चिकित्सक कहते हैं इतने लम्बे समय से अनशन करने ,और नली के द्वारा जबरन भोजन दिए जाने से इरोम की हडियाँ कमजोर पड़ गयी हैं ,वे अन्दर से बेहद बीमार है |लेकिन इरोम अपने स्वास्थ्य को लेकर थोडी सी भी चिंतित नहीं दिखती ,वो किसी महान साध्वी की तरह कहती है 'मैं मानती हूँ आत्मा अमर है ,मेरा अनशन कोई खुद को दी जाने वाली सजा नहीं ,यंत्रणा नहीं है ,ये मेरी मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए किये जाने वाली पूजा है |शर्मिला ने पिछले ८ वर्षों से अपनी माँ का चेहरा नहीं देखा वो कहती है 'मैंने माँ से वादा लिया है की जब तक मैं अपने लक्ष्यों को पूरा न कर लूँ तुम मुझसे मिलने मत आना |'लेकिन जब शर्मीला की ७५ साल की माँ से बेटी से न मिल पाने के दर्द के बारे में पूछा जाता है उनकी आँखें छलक पड़ती हैं ,रुंधे गले से सखी देवी कहती हैं 'मैंने आखिरी बार उसे तब देखा था जब वो भूख हड़ताल पर बैठने जा रही थी ,मैंने उसे आशीर्वाद दिया था ,मैं नहीं चाहती की मुझसे मिलने के बाद वो कमजोर पड़ जाये और मानवता की स्थापना के लिए किया जा रहा उसका अद्भुत युद्ध पूरा न हो पाए ,यही वजह है की मैं उससे मिलने कभी नहीं जाती ,हम उसे जीतता देखना चाहते है '|
जम्मू कश्मीर ,पूर्वोत्तर राज्य और अब शेष भारत आतंकवाद,नक्सलवाद और पृथकतावाद की गंभीर परिस्थितियों से जूझ रहे हैं है |मगर साथ में सच ये भी है कि हर जगह राष्ट्र विरोधी ताकतों के उन्मूलन के नाम पर मानवाधिकारों की हत्या का खेल खुलेआम खेला जा रहा है ,ये हकीकत है कि परदे के पीछे मानवाधिकार आहत और खून से लथपथ है ,सत्ता भूल जाती है कि बंदूकों की नोक पर देशभक्त नहीं आतंकवादी पैदा किये जाते है |मणिपुर में भी यही हो रहा है ,आजादी के बाद राजशाही के खात्मे की मुहिम के तहत देश का हिस्सा बने इस राज्य में आज भी रोजगार नहीं के बराबर हैं ,शिक्षा का स्तर बेहद खराब है ,लोग अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए दिन रात जूझ रहे हैं ,ऐसे में देश के किसी भी निर्धन और उपेक्षित क्षेत्र की तरह यहाँ भी पृथकतावादी आन्दोलन और उग्रवाद मजबूती से मौजूद हैं |लेकिन इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि यहाँ पर सरकार को आम आदमी के दमन का अधिकार मिल जाना चाहिए ,अगर ऐसा होता रहा तो आने वाले समय में देश को गृहयुद्ध से बचा पाना बेहद कठिन होगा |जब मणिपुर की पूरी तरह से निर्वस्त्र महिलायें असम रायफल्स के मुख्यालय के सामने प्रदर्शन करते हुए कहती हैं की 'भारतीय सैनिकों आओ और हमारा बलात्कार करो 'तब उस वक़्त सिर्फ मणिपुर नहीं रोता ,सिर्फ शर्मिला नहीं रोती ,आजादी भी रोती है ,देश की आत्मा भी रोती है और गाँधी भी रोते हुए ही नजर आते हैं | शर्मीला कहती है 'मैं जानती हूँ मेरा काम बेहद मुश्किल है ,मुझे अभी बहुत कुछ सहना है ,लेकिन अगर मैं जीवित रही ,खुशियों भरे दिन एक बार फिर आयेंगे '|अपने कम्बल में खुद को तेजी से जकडे शर्मीला को देखकर लोकतंत्र की आँखें झुक जाती है |
bahut hi marmik samachar diya aapne sun kar aankhe chalchala uthi hai baghwan shrmila ko uska hak dila kar rahe ........
ReplyDeleteआवेश जी , आप कि ये सच कहानी बास्तव में हिन्दुस्तान का दर्द है
ReplyDeleteएक एक हिन्दुस्तानी के लिए दर्द पैदा कर देता है
अच्छा लगा ये जानकर कि आप सच में विस्वास रखते है और दर्द और प्रचार को अछ्चा समझते है
जब सेनिक या पुलिस के जवान इस प्रकार के अपराध करता है तो उसे १० -५ % ही पब्लिक में कहने की ताक़त होती है और बाकी के साथ हमेशा के लिए अत्याचार क्योकि वे नहीं बोलते है और उनके साथ अत्याचार होता ही रहता है होता ही रहता है
की जो बोलते है उनके साथ समाजः नहीं आता की वो अकेले पड़ जाते है
की बड़े मुस्किल से अपनी बात करते है
बड़े नेता महज़ एक मोहरा है इस भर्स्ट वाबस्ता के
वो न पोलिस समहल सकते है न सेना न ही लोगो का दुःख कम करसकते है
बेकार लोगो कि जय होती है की सही लोगो की दरकिनार किया जाता है
आप से अनुरोश है कि आप मेरे मंच पर आये की की इसप्रकार कि articile को दिया करे
जय इंडिया भारत हम ही बदलेंगे कल का भारत
आप लोगों का धन्यवाद |हिंदुस्तान के दर्द को हम सभी को बांटने की जरूरत है,आशा है ये कम्युनिटी ब्लॉग सिर्फ एक हंसी मजाक का पिटारा न बनकर ,वैचारिक आन्दोलन का जरिया बनेगा
ReplyDelete|आवेश
आवेश जी आपने मेरी उम्मीद से लाख गुना अच्छा हिन्दुस्तान का दर्द प्रकाशित किया मैं आपकी बात को ध्यान मे रखकर यह कोशिश करूंगा की इस ब्लॉग की संस्कृति को कायम रख सकूं आज यह दर्द मेरे दिल का दर्द बन गया !
ReplyDeleteबहुत खूब दोस्त !
आवेश जी आपने मेरी उम्मीद से लाख गुना अच्छा हिन्दुस्तान का दर्द प्रकाशित किया मैं आपकी बात को ध्यान मे रखकर यह कोशिश करूंगा की इस ब्लॉग की संस्कृति को कायम रख सकूं आज यह दर्द मेरे दिल का दर्द बन गया !
ReplyDeleteबहुत खूब दोस्त !
INCREDIBLE INDIA SHINING IN MANIPUR
ReplyDeleteहम कह सकते है की आवेश जी की बातों मे दर्द समाया हुआ है
ReplyDeleteअच्छा लिखा है
आवेश जी दिल रो पढ़ा सच
ReplyDeleteयह जो हो रहा है बुरा है लेकिन सत्य ही है
शब्द नहीं है !
आवेश जी अगर मैं यह कहूं की यह ''हिन्दुस्तान का दर्द की यह सबसे अच्छी पोस्ट है तो गलत ना होगा !
ReplyDeleteअच्छा लिखा आपने !
gaandhi ke desh me bhi gaandhivaadiyon ko nyaay nahin milta to ise hamaaraa dorbhagya hi kaha jayega....
ReplyDeleteआपने शर्मीला जी के बारे में इतने विस्तार रूप से दर्द बयान किया है की पड़ते पड़ते आँखें नम हो गई! आप का हर एक लेख और कविता इतना सुंदर है की शब्दों में बयान नहीं कर सकती!
ReplyDeleteसेना की कार्यवाहिमें इतना बवाल पर ऐसी गतिविघिया नक्सलवादी आतंकावाद्दी द्वारा जम्मू में किये जाने पर कोई भूखा हड़ताल क्यो नहीं करता ?
ReplyDeleteआवेश जी आपकी पोस्ट को ऊपर किया तो कुछ सेटिंग में बदलाब हो गया है,खेद है !
ReplyDeleteमुझे शर्मीला के लिए लिखे गए इस पोस्ट के लिए एक मेल प्राप्त हुआ है |जो सियोल में रह रही मणिपुर की एक महिला एक्टिविस्ट ने लिखा है ,ये मेल मैं चाहता हूँ आप भी पढें,सिर्फ पढ़े नहीं शर्मीला की आवाज बने |
ReplyDeleteHi Awesh,
Thanks for your post,
FYI I am not a journalist but an activist working for the promotion of peace and development in NE. Presently i'm not in the country but i'm ccing to my alliance partner friend in Manipur by name Jyotilal.
Its indeed good to know and appreciated for dissiminating the cause of NE and to circulate in hindi is important because it is the largest constituency in the country.
I wish you would continue the support and we will further inform to you.
Best Wishes.
P.S. Hi Jyoti, could you pls download the copy of the blog coverage of Awesh (pls read the following mail of him) and handover to Sharmila's brother Singhjit as it is difficult for us to meet her since she is in prison even Singhjit very often his permission got denied. Try your best
यह लेख पढ़कर जो अहसास मुझे हुआ बह मैं किसी को बंया नहीं कर सकती
ReplyDeleteआवेश जी आपने अच्छा काम किया है आपकी तारीफ तो होनी चहिये
बहुत खूब