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किससे कहूँ अपनी कहानी ..............

कभी सोचता हूँ की मैं कुछ कहू
कभी सोचता हूँ की मैं चुप रहूँ

आप से कहूँ या किसी के बाप से कहूँ
यादेश के बिगडे हालत से कहूँ
जेल से कहूँ या हवालात से कहूँ
अपने पत्र से कहूँ या ब्लॉग से कहूँ

मन से कहूँ या दिल से कहूँ
वेग में कहूँ या आवेग में कहूँ
देश से कहूँ या वेश से कहूँ
समता से कहूँ या ममता से कहूँ

सपा से कहूँ या बसपा से कहूँ
भाजपा से कहूँ या काग्रेस से कहूँ
लालू से कहूँ या पासवान से कहूँ
सैतान से कहूँ या इंसान से कहूँ

टाटा से कहूँ या विरला से कहूँ
मित्तल से कहूँ या अम्बानी से कहूँ
हीरो से कहूँ या मारुती से कहूँ
विप्रो से कहूँ या सत्यम से कहूँ

अमिताभ से कहूँ या शाहरुख से कहूँ
आमिर से कहूँ या सलमान से कहूँ
एस से कहूँ या करीना से कहूँ
राखी से कहूँ या मल्लिका से कहूँ

बाबा से कहूँ दादी से कहूँ
चाचा से कहूँ या मामा से कहूँ
ताऊ से कहूँ या मौसा से कहूँ
बुआ से कहूँ या मौसी से कहूँ

पेपर से कहूँ या लेटर से कहूँ
मालिक से कहूँ या वेटर से कहूँ
कल से कहूँ या आज से कहूँ
गुप्त से कहूँ या राज से कहूँ

हे महान प्राणि किससे कहूँ अपनी कहानी ..............


सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

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डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा