विवेक रस्तोगी
नई दिल्ली, बृहस्पतिवार, मार्च 19, 2009
>सुबह-सुबह टीवी पर एक खबर देखी... बस, सोचता ही रह गया... कोई बाप ऐसी हरकत करने की कल्पना भी कैसे कर सका... कोई बाप इतना वहशी कैसे हो सकता है... कोई मां पैसे के लालच में इतनी अंधी कैसे हो गई कि अपनी आंखों के सामने अपने ही कलेजे के टुकड़ों की अस्मत लुटते न सिर्फ देखती रही, बल्कि उस वहशी बाप की मदद भी करती रही...
यकीन मानिए, इस हरकत को 'वहशियाना' लिखते हुए भी लग रहा है, कि यह बहुत हल्का शब्द है, इस कुकृत्य का ज़िक्र करने के लिए आज से पहले ऐसी किसी हरकत का ज़िक्र न सुना हो, ऐसा भी नहीं है, लेकिन किसी तांत्रिक के सुझाव पर, अमीर बनने के लिए अपनी ही सिर्फ 11 साल की मासूम बेटी से बलात्कार करने, और फिर सालों तक करते रहने की यह खबर कुछ ज्यादा ही विचलित कर देती है अंतस को... सोचकर देखिए, कोई भी बच्चा कैसी भी परेशानी का सामना करते हुए स्वाभाविक रूप से सबसे पहले मां या बाप की गोद में सहारा तलाश करने के लिए भागता है, लेकिन ऐसे मां-बाप हों तो क्या करे वह मासूम...?
एक बेटी के साथ सालों तक यह घिनौना कृत्य होते रहने के बावजूद जब अमीरी ने घर में दस्तक नहीं दी, तो भी उनकी आंखें नहीं खुलीं और दूसरी बेटी के साथ भी वही सब किया गया... और यही नहीं, इस बार मां-बाप ने तांत्रिक को अपनी 15-वर्षीय बेटी की इज़्ज़त से खेलने दिया... इतना अंधविश्वास... तरक्की करते हुए कहां से कहां आ गया हिन्दुस्तान, लेकिन लगता है कि अंधविश्वास की जड़ें मजबूत होती चली जा रही हैं
अंधविश्वास हमेशा से इस मुल्क में व्याप्त रहा है, और उसकी वजह से बहुत कुछ झेलते रहने के बावजूद लग रहा है कि उसमें कोई कमी नहीं आ रही है... लेकिन आज एक तांत्रिक के कहने से कोई बाप अपनी ही मासूम बेटी की अस्मत लूट सकता है, कोई मां अपनी नज़रों के सामने अपनी ही बेटियों से बलात्कार होने दे सकती है... अब सोचिए, पानी का सिर से ऊपर निकल जाना किसे कहते हैं
यह अंधविश्वास ही था, जो उन 'जानवरों' के दिलो-दिमाग पर नौ साल तक पूरी तरह हावी रहा, और सिर्फ तांत्रिक की कही बातें उनके कानों में गूंजती रहीं, वर्ना कभी तो उस आदमी को अपनी बेटी नज़र आती और कभी तो उस औरत को याद आता, कि इस मासूम को उसने ही अपनी कोख से पैदा किया था...
अब मैं सिर्फ इसी बारे में सोच पा रहा हूँ, कि इस आदमी और उसकी बीवी को क्या सज़ा मिलनी चाहिए, ताकि एक इबरत बने और आने वाले वक़्त में बाप अपनी बेटी और अपने रिश्ते को पहचान सके... बलात्कार करने के लिए हमारे मुल्क में सात साल तक की बामशक्कत कैद की सज़ा सुनाई जा सकती है... लेकिन इस मामले में इस वहशी ने अपनी ही मासूम और नाबालिग़ बेटी से बलात्कार किया, सालों तक करता रहा, अपने अलावा एक और व्यक्ति को भी अपनी बेटी से बलात्कार करने दिया...?
अब सोचिए, क्या यह मामला सिर्फ एक बलात्कार का है, जिसमें सात साल की कैद पर्याप्त सज़ा हो सकती है... क्या उसे एक बाप की मर्यादा और बेटी के स्वाभाविक सहारे को छिन्न-भिन्न कर देने के लिए कोई सज़ा नहीं मिलनी चाहिए, क्या उसे दो मासूम बच्चियों के दिलों पर एक न भरने वाला घाव देने के लिए कोई सज़ा नहीं मिलनी चाहिए, क्या उसका यह 'पाप' उस समाज के प्रति भी अपराध नहीं है, जिसमें वह रहता है... और हां, अंधविश्वास में जकड़े रहना भले ही कानूनी रूप से अपराध न हो, लेकिन क्या अंधविश्वास के चलते सब रिश्तों को ताक पर रखकर 'जानवर' बन जाना भी अपराध नहीं होना चाहिए...
नई दिल्ली, बृहस्पतिवार, मार्च 19, 2009
>सुबह-सुबह टीवी पर एक खबर देखी... बस, सोचता ही रह गया... कोई बाप ऐसी हरकत करने की कल्पना भी कैसे कर सका... कोई बाप इतना वहशी कैसे हो सकता है... कोई मां पैसे के लालच में इतनी अंधी कैसे हो गई कि अपनी आंखों के सामने अपने ही कलेजे के टुकड़ों की अस्मत लुटते न सिर्फ देखती रही, बल्कि उस वहशी बाप की मदद भी करती रही...
यकीन मानिए, इस हरकत को 'वहशियाना' लिखते हुए भी लग रहा है, कि यह बहुत हल्का शब्द है, इस कुकृत्य का ज़िक्र करने के लिए आज से पहले ऐसी किसी हरकत का ज़िक्र न सुना हो, ऐसा भी नहीं है, लेकिन किसी तांत्रिक के सुझाव पर, अमीर बनने के लिए अपनी ही सिर्फ 11 साल की मासूम बेटी से बलात्कार करने, और फिर सालों तक करते रहने की यह खबर कुछ ज्यादा ही विचलित कर देती है अंतस को... सोचकर देखिए, कोई भी बच्चा कैसी भी परेशानी का सामना करते हुए स्वाभाविक रूप से सबसे पहले मां या बाप की गोद में सहारा तलाश करने के लिए भागता है, लेकिन ऐसे मां-बाप हों तो क्या करे वह मासूम...?
एक बेटी के साथ सालों तक यह घिनौना कृत्य होते रहने के बावजूद जब अमीरी ने घर में दस्तक नहीं दी, तो भी उनकी आंखें नहीं खुलीं और दूसरी बेटी के साथ भी वही सब किया गया... और यही नहीं, इस बार मां-बाप ने तांत्रिक को अपनी 15-वर्षीय बेटी की इज़्ज़त से खेलने दिया... इतना अंधविश्वास... तरक्की करते हुए कहां से कहां आ गया हिन्दुस्तान, लेकिन लगता है कि अंधविश्वास की जड़ें मजबूत होती चली जा रही हैं
अंधविश्वास हमेशा से इस मुल्क में व्याप्त रहा है, और उसकी वजह से बहुत कुछ झेलते रहने के बावजूद लग रहा है कि उसमें कोई कमी नहीं आ रही है... लेकिन आज एक तांत्रिक के कहने से कोई बाप अपनी ही मासूम बेटी की अस्मत लूट सकता है, कोई मां अपनी नज़रों के सामने अपनी ही बेटियों से बलात्कार होने दे सकती है... अब सोचिए, पानी का सिर से ऊपर निकल जाना किसे कहते हैं
यह अंधविश्वास ही था, जो उन 'जानवरों' के दिलो-दिमाग पर नौ साल तक पूरी तरह हावी रहा, और सिर्फ तांत्रिक की कही बातें उनके कानों में गूंजती रहीं, वर्ना कभी तो उस आदमी को अपनी बेटी नज़र आती और कभी तो उस औरत को याद आता, कि इस मासूम को उसने ही अपनी कोख से पैदा किया था...
अब मैं सिर्फ इसी बारे में सोच पा रहा हूँ, कि इस आदमी और उसकी बीवी को क्या सज़ा मिलनी चाहिए, ताकि एक इबरत बने और आने वाले वक़्त में बाप अपनी बेटी और अपने रिश्ते को पहचान सके... बलात्कार करने के लिए हमारे मुल्क में सात साल तक की बामशक्कत कैद की सज़ा सुनाई जा सकती है... लेकिन इस मामले में इस वहशी ने अपनी ही मासूम और नाबालिग़ बेटी से बलात्कार किया, सालों तक करता रहा, अपने अलावा एक और व्यक्ति को भी अपनी बेटी से बलात्कार करने दिया...?
अब सोचिए, क्या यह मामला सिर्फ एक बलात्कार का है, जिसमें सात साल की कैद पर्याप्त सज़ा हो सकती है... क्या उसे एक बाप की मर्यादा और बेटी के स्वाभाविक सहारे को छिन्न-भिन्न कर देने के लिए कोई सज़ा नहीं मिलनी चाहिए, क्या उसे दो मासूम बच्चियों के दिलों पर एक न भरने वाला घाव देने के लिए कोई सज़ा नहीं मिलनी चाहिए, क्या उसका यह 'पाप' उस समाज के प्रति भी अपराध नहीं है, जिसमें वह रहता है... और हां, अंधविश्वास में जकड़े रहना भले ही कानूनी रूप से अपराध न हो, लेकिन क्या अंधविश्वास के चलते सब रिश्तों को ताक पर रखकर 'जानवर' बन जाना भी अपराध नहीं होना चाहिए...
खबर है कि इस व्यक्ति और तांत्रिक को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन क्या उस औरत (मां लिखने की इच्छा नहीं हो रही है) ने कानून की नज़र में कोई अपराध नहीं किया है... हां, हो सकता है कि उसे भी बाद में अपराध में मदद देने के लिए गिरफ्तार कर लिया जाए, लेकिन क्या ऐसे आरोप पर मिल सकने वाली कुछ महीनों या सालों की सज़ा ऐसी औरत के लिए काफी होगी, जिसने हर बेटी के दिल में डर पैदा करने जैसी हरकत की... क्या ऐसी सज़ा अंधविश्वास में अंधी हो चुकी किसी और औरत के लिए इबरत बन पाएगी...
खैर, कानून अपना काम करेगा ही... और दोषी पाए जाने वालों को सज़ा भी मिल जाएगी... लेकिन क्या ऐसा कुछ नहीं हो सकता कि अंतर्तम को झकझोरकर रख देने और गंभीरता से सोचने के लिए मजबूर कर देने वाली ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके...
विशेष नोट : यह आलेख लेखक के निजी विचार हैं, और ''हिन्दुस्तान का दर्द'' इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है...
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साहिबा जी आपके धर्म में भी तो ऐसे लोगों का जमावड़ा है
ReplyDeleteआप लोग कर ही क्या पाते हो सिवाय एक नया फाट्वा जारी करने के
बात करती है आप
साहिबा जी आपके धर्म में भी तो ऐसे लोगों का जमावड़ा है
ReplyDeleteआप लोग कर ही क्या पाते हो सिवाय एक नया फाट्वा जारी करने के
बात करती है आप
yeh baat bilkul galat hai agar koi apne lekh ke zariye hum sabhi tak jagrookta failana chahta hai to meherbaani karke uske dharm par koi aisa comments na karein yeh hamari hum sabhi se badi request hai plzzz hum apne andar se aisi bahwnaon ki nikalphenke jisse insaniyat naam ki is behtareen cheez ko takleef na pahunche ............its humbly request to all including apply on me also.......
ReplyDeleteAgar mere aalekh ko apne blog par lagaane ke bajaay uska link denge, to mujhe zyada khushi hogi...
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