Skip to main content

दारू चलीसा

दोहा: पैग लगा के झूमिये । ये कलयुग की देन॥
लफडा झगडा करत रहो॥ जात रहे सुख चैन॥

चौपाई: जय जय कलयुग की दारू । तुमका पियय सकल परिवारू॥
पी करके कुछ पंगा करते॥ गाँव गली अव सड़क पे मरते॥
कुछ बीबी का करय पिटाई॥ कुछ बच्चो का दियय मिठाई॥
छोटे बड़े कय काटो चिंता॥ गली गली में होती हिंसा॥
पीने पर तुर्रम खा बनते ॥ दादी अम्मा को चिन्हते॥
गली गली म होत बुराई॥ इनका खाती काली माई॥
मेहर डंडा लय गरियाती॥ जाय चौकी म रपट लिखाती॥
कोई फ़िर भी फरक पङता॥ बच्चा क्यो न भूँखा मरता॥
घर की सब बर्बादी कीन्हा॥ इनकी अक्ल देव हर लीन्हा॥
होत सबेरे टुल्ली रहते॥ रुपया दे दो हरदम कहते ॥
ये दारू कर दी बर्बादी ॥ मरे जल्दी मिलते आज़ादी॥
बीबी बच्चे हरदम कहते॥ आटा होगा ताड़ में रहते॥
दारू इनकी कौन छुडावे ॥ बुरा कर्म है कौन बतावे ॥
जूता चप्पल हरदम खाते ॥ फ़िर भी पीछे न पचताते॥

दोहा: हे कलयुग की दारू माता करव इनका कल्याण॥
कोई घटना घटित कर दो जल्दी निकले प्राण॥

Comments

  1. बहुत अच्छे ---ये भी झेलो --
    " गिरा लड़खडाकर नाली में ,
    कीचड ने मुहँ भरडाला |
    मेरा घर है कहाँ ,पूछता ,
    समझ न पाए मतवाला ||"

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा