दोहा: पैग लगा के झूमिये । ये कलयुग की देन॥
लफडा झगडा करत रहो॥ जात रहे सुख चैन॥
चौपाई: जय जय कलयुग की दारू । तुमका पियय सकल परिवारू॥
पी करके कुछ पंगा करते॥ गाँव गली अव सड़क पे मरते॥
कुछ बीबी का करय पिटाई॥ कुछ बच्चो का दियय मिठाई॥
छोटे बड़े कय काटो चिंता॥ गली गली में होती हिंसा॥
पीने पर तुर्रम खा बनते ॥ दादी अम्मा को चिन्हते॥
गली गली म होत बुराई॥ इनका खाती काली माई॥
मेहर डंडा लय गरियाती॥ जाय चौकी म रपट लिखाती॥
कोई फ़िर भी फरक पङता॥ बच्चा क्यो न भूँखा मरता॥
घर की सब बर्बादी कीन्हा॥ इनकी अक्ल देव हर लीन्हा॥
होत सबेरे टुल्ली रहते॥ रुपया दे दो हरदम कहते ॥
ये दारू कर दी बर्बादी ॥ मरे जल्दी मिलते आज़ादी॥
बीबी बच्चे हरदम कहते॥ आटा होगा ताड़ में रहते॥
दारू इनकी कौन छुडावे ॥ बुरा कर्म है कौन बतावे ॥
जूता चप्पल हरदम खाते ॥ फ़िर भी पीछे न पचताते॥
दोहा: हे कलयुग की दारू माता करव इनका कल्याण॥
कोई घटना घटित कर दो जल्दी निकले प्राण॥
लफडा झगडा करत रहो॥ जात रहे सुख चैन॥
चौपाई: जय जय कलयुग की दारू । तुमका पियय सकल परिवारू॥
पी करके कुछ पंगा करते॥ गाँव गली अव सड़क पे मरते॥
कुछ बीबी का करय पिटाई॥ कुछ बच्चो का दियय मिठाई॥
छोटे बड़े कय काटो चिंता॥ गली गली में होती हिंसा॥
पीने पर तुर्रम खा बनते ॥ दादी अम्मा को चिन्हते॥
गली गली म होत बुराई॥ इनका खाती काली माई॥
मेहर डंडा लय गरियाती॥ जाय चौकी म रपट लिखाती॥
कोई फ़िर भी फरक पङता॥ बच्चा क्यो न भूँखा मरता॥
घर की सब बर्बादी कीन्हा॥ इनकी अक्ल देव हर लीन्हा॥
होत सबेरे टुल्ली रहते॥ रुपया दे दो हरदम कहते ॥
ये दारू कर दी बर्बादी ॥ मरे जल्दी मिलते आज़ादी॥
बीबी बच्चे हरदम कहते॥ आटा होगा ताड़ में रहते॥
दारू इनकी कौन छुडावे ॥ बुरा कर्म है कौन बतावे ॥
जूता चप्पल हरदम खाते ॥ फ़िर भी पीछे न पचताते॥
दोहा: हे कलयुग की दारू माता करव इनका कल्याण॥
कोई घटना घटित कर दो जल्दी निकले प्राण॥
accha laga phdhkar ...
ReplyDeleteबहुत अच्छे ---ये भी झेलो --
ReplyDelete" गिरा लड़खडाकर नाली में ,
कीचड ने मुहँ भरडाला |
मेरा घर है कहाँ ,पूछता ,
समझ न पाए मतवाला ||"