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ग़ज़ल --तेरे बिन ----- डा. श्याम गुप्त

जितना दूर जाता हूँ ,
उतना पास पाता हूँ।

तेरे बिन क्या होता है,
तुमको आज बताता हूँ।

तेरे गीतों की सरगम ,
मन-वीणा पर गाता हूँ।

कलछा चिमटे चकले पर ,
सुर लय ताल मिलाता हूँ।

तुम्हें भुलाना चाहूँ तो,
यादों में उतराता हूँ।

गज़लें लिखना चाहूँ तो ,
काफिया भूल जाता हूँ।

तुम भी करते होगे याद,
ख़ुद पर ही इतराता हूँ।

अबतो आही जाओ 'श्याम,
वरना मैं आजाता हूँ॥


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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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