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कब समझेंगे

लोग ये बात आख़िर कब समझेंगे ।
बिगडे शहर के हालत ,कब समझेंगे ।

ये है तमाशबीनों का शहर यारो ,
कोई न देगा साथ ,कब समझेंगे ।

जांच करने कत्ल की कोई न आया ,
माननीय शहर मै आज,कब समझेंगे ।

चोर डाकू,लुटेरे पकड़े न जाते ,
सुरक्षा चक्र है जनाब,कब समझेंगे ।

कब से खड़े हैं आप लाइन मैं बैंक की ,
व्यस्त सब पीने मैं चाय,कब समझेंगे ।

बढ रही अश्लीलता सारे देश मैं ,
सब सोराहे चुपचाप,कब समझेंगे।

श्याम, छाई है बेगैरती चहुओर,
क्या निर्दोष है आप, कब समझेंगे ॥
--डा.श्याम गुप्त .

Comments

  1. बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने !

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  2. बबली जी , धन्यवाद ।हौसला बढाये रखिए,नज़र बनाये रखिये ।
    कविता पढ्ते रहिये,गज़ल बनाते रहिये ।
    -डा श्याम गुप्त


    सन्जय जी ,
    सहयोग देते रहिये।

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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