विनय बिहारी सिंह
ऋषि वाल्मीकि के पहले राम कथा मौखिक थी। वह जनमानस में श्रुति परंपरा से वर्षों से चली आ रही थी। लेकिन वाल्मीकि को लगा कि अब इसे लिपिबद्ध कर देना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में राम कथा सुनी नहीं पढ़ी जाएगी। वैसे तो आज भी कथा होती है और लोग सुनते ही हैं। लेकिन पहले जैसी श्रुति परंपरा आज क्यों नहीं है? वजह यह है कि सारी जानकारियां इंटरनेट के जरिए उपलब्ध हैं। लेकिन पहले के जमाने में संवाद का कोई और माध्यम नहीं था। एक दूसरे से सुन कर ही ग्यान पाया जा सकता था। आज तो हमारे पास सूचनाओं का भंडार है। जब कागज का कोई अस्तित्व नहीं था तो शिष्य गुरु से सीखी बातें कहां लिखते होंगे? जवाब है- शिष्य कुछ भी नोट नहीं करते थे। अभ्यास से उन्होंने अपना दिमाग इस तरह बना लिया था कि वे जो कुछ सुनते थे, हू-ब-हू उनके दिमाग पर अंकित हो जाता था। आज भी अगर छात्रों के लिए नियम बना दिया जाए कि उन्हें बातें ध्यान से सुननी हैं, नोट नहीं करना है तो वे भी अभ्यास करके अपनी याददाश्त तेज कर सकते हैं।
काफी दिनों के बाद आपका लेख पढ़ा इससे पहेले चोकलेट का प्रचार भी पढ़ा था
ReplyDeleteअच्छा लिखते है आप
बहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteअच्छा नहीं बहुत अच्छा लिखा है विनय जी..
ReplyDeleteमेरे दिल मे आपके लिए ख़ास जगह है
अच्छा लिखा है
ReplyDeleteज्ञानवर्धक लेखन