हिदी के वरिष्ठ साहित्यकार और ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव का कहना है कि भारतीय राजनीति में सत्तांध धृतराष्ट्र आ गए हैं, जो अपढ़, बेरोजगार और गुंडों की फौजें तैयार करके सत्तासीन होना चाहते हैं। जिन्हें वे आज अपनी तोपों में बारूद की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, क्या कल वे भी सत्ता में हिस्सा नहीं मांगेंगे?
यादव ने चुनाव मैदान में उतरने वाले राजनेताओं और राजनीतिक दल को खरी-खरी सुनाते हुए कहा है कि लोकसभा चुनावों के दौरान बुद्धिजीवियों, महिलाओं, दलितों और युवाओं की आवाज को सही नजरिए से सुने बिना लोकतंत्र की गतिशील संस्कृति को नहीं बचाया जा सकता। उनका कहना है कि टिकट वितरण से लेकर मतदान की प्रक्रिया तक इन सबकी भागीदारी पूरी तरह सुनिश्चित हो। चुनाव से जुड़े मसलों पर त्रिभुवन ने उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश:
- इस चुनाव में आप किन मुद्दों की प्रमुखता देखते हैं?
मुद्दे तो कुछ दिखाई दे नहीं रहे। ये सब तो एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हैं। जातिवाद है, रुपए-पैसे का खेल है। कहने को विकास भी मुद्दा है। राष्ट्रवाद भी है। मुझे तो सब घपला लगता है। कन्फ्यूज्ड भी कह सकते हैं।
- गठबंधन राजनीति को लेकर आपको क्या दिखाई देता है?
कई गठबंधन चर्चा में हैं, लेकिन किसी गठबंधन के पीछे कोई नीति दिखाई नहीं देती। हर दल की अपनी नीति है और गठबंधन का अपना तर्क है। हर कोई अपनी सुविधा से गठबंधन कर रहा है। यह ठीक नहीं लगता है।
- आपके विचार में स्वच्छ चुनाव कैसे हो सकते हैं?
सबसे स्वच्छ चुनाव वही होगा, जिसमें धन की, जातिवाद की, धर्म की, बाहुबल की भूमिका नहीं होगी। जब स्वतंत्र रूप से वोट डाले जाएंगे।
- आज की राजनीति को लेकर आप क्या सोचते हैं?
भारतीय राजनीति में सत्तांध धृतराष्ट्र आ गए हैं, जो अनपढ़, बेरोजगार, लंपट और गुंडों की फौजें तैयार करके सत्तासीन होना चाहते हैं। जिन्हें वे आज अपनी तोपों में बारूद की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, क्या कल वे भी सत्ता में हिस्सा नहीं मांगेंगे?
- आपको क्या अटपटा लग रहा है?
मीडिया में सभी दलों का शोर सुनाई देता है, लेकिन मायावती को सभी अनदेखा कर देते हैं। जब उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव थे तो उनका कहीं जिक्र भी नहीं था। लेकिन जनता ने उनको बहुमत दिया। संभव है बिना शोरशराबे के मायावती लोकसभा चुनाव में ज्यादा संख्या में सांसद जिता कर ले आएं।
- कांग्रेस-भाजपा के बारे में आप क्या सोचते हैं?
कांग्रेस के पास राहुल के अलावा कोई नहीं है। वही एक सोनिया हैं। वहीं, भाजपा में आडवाणी बैठे हैं। भाजपा में बाकी सब भी उनकी तरह पिटे-पिटाए मोहरे हैं।
- आपको क्या चीज सबसे ज्यादा खटकती है?
पहले राजनीति में पढ़े-लिखे लोग थे। किताबें पढ़ते थे। किताबें लिखते थे। अब ऐसा कोई दिखाई नहीं देता। ऐसे माहौल में बुद्धिजीवियों की आवाज कोई नहीं सुनता।
- हालात कैसे सुधर सकते हैं?
सारे लक्षण एक अराजक किस्म की स्थिति की ओर संकेत करते हैं, इसलिए जब तक युवा पढ़े-लिखे लोग नहीं आएंगे, बुद्धिजीवियों की आवाज नहीं सुनी जाएगी, दलितों को आगे नहीं लाया जाएगा, हालात सुधरना मुश्किल हैं।
यह लेख देनिक भास्कर से साभार लिया गया है
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राजेन्द्र जी के विचार पढ़कर अच्छा लगा !
ReplyDeleteबहुत अच्चा लिखा है
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