विनय बिहारी सिंह
एक बार फिर मेरा आप सबसे विनम्र निवेदन है कि अगर संभव हो तो कृपया कोई एक घटना बताएं जब आपको लगा हो कि हां, ईश्वर तो हैं। यह सच है कि ईश्वर हमारी हर सांस में है। हमारा अस्तित्व ही ईश्वर के कारण है। लेकिन अगर एक घटना का जिक्र करें तो इससे एक दिव्य अनुभूति दूर तक फैलेगी। हम सब एक दूसरे के अनुभवों से रू-ब-रू होंगे। इसमें कोई हर्ज नहीं है। किसी संकोच की जरूरत नहीं है। मैं अपने जीवन की एक घटना यहां बता रहा हूं। यह सन १९८० की बात है। मैं दिल्ली में (अभी मैं कोलकाता में हूं) फ्री लांसिंग कर रहा था। मैं अनुवाद और लेखन का काम कर आजीविका चला रहा था। तब पत्रकारिता में मैंने नया नया कदम रखा था। उन दिनों मेरे लिए एक रुपए की भी कीमत थी। मैं बहुत कंजूसी से पैसा खर्च कर रहा था क्योंकि मेरे पास पैसे थे ही नहीं। एक बार ऐसा हुआ कि मेरे सारे पैसे खर्च हो गए। मेरी जेब खाली हो गई। सुबह चाय पीने के पैसे तक नहीं थे। रात को मैंने ईश्वर से घनघोर प्रार्थना की और चुपचाप सो गया। प्रार्थना तो मैं रोज ही करता था लेकिन उस रात प्रार्थना करते हुए मैं ईश्वर में डूब गया। तभी रात ११ बजे एक प्रेस से फोन आया। उन्हें तुरंत अनुवाद चाहिए था। उनके अनुसार यह बहुत ही अर्जेंट काम था। मैं उस प्रेस का पेशेवर अनुवादक (अंग्रेजी से हिंदी) था। उन लोगों ने रात को ही मेरे आवास पर कार भिजवाई और मुझे बुला कर अनुवाद का काम सौंपा। तीन घंटे के भीतर मैंने वह अनुवाद का काम मैंने कर दिया। मुझे उसके लिए तुरंत ६०० रुपए मिले। उसके बाद तो हर एक दिन बाद इस तरह का आफर अन्य प्रेस भी देने लगे। मैं चकित था। उन दिनों के ६०० रुपए आज के ६००० रुपए से कम नहीं थे। क्या यह ईश्वर का चमत्कार नहीं है?
हम सब का अस्तित्व ही भगवान का एहसास है.....
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