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संकट के समय भगवान


विनय बिहारी सिंह

एक अत्यंत छात्रा को दसवीं कक्षा की परीक्षा देनी थी। उसे तो भोजन के ही लाले पड़े थे। फीस कहां से देती। साल भर की फीस बाकी थी। इसके अलावा एक जरूरी किताब भी खरीदनी थी। फार्म भरने की फीस भी देनी थी। कुल राशि करीब ५०० रुपए बैठ रही थी। यह लड़की के लिए पहाड़ जैसा धन था। उसके मां- बाप महीने में १० दिन मजदूरी करते तो किसी तरह पेट चल जाता था। लड़की ने सोचा अब तो वह परीक्षा में नहीं बैठ पाएगी। सारी तैयारी बेकार ही है। वह दिन रात भगवान को याद करने लगी- हे भगवान तुम्हीं इस संकट से उबार सकते हो। तुम्हीं मेरी नैया पार लगा सकते हो। क्या मैं परीक्षा में नहीं बैठ पाऊंगी? कुछ करो भगवान, मेरे ऊपर कृपा करो। जिस दिन सभीबच्चे प्रवेश पत्र लेने जा रहे थे, लड़की गुमसुम बैठी थी। तभी उसके घर एक अन्य लड़की आई और बोली- प्रवेश पत्र लेने चलोगी नहीं? वह बोली- मैं तो फीस जमा नहीं कर पाई। प्रवेश पत्र कैसे मिलेगा? उसे उसके घर आई लड़की ने बताया- तुम्हें पता नहीं है, शैलजा मैम ने तुम्हारी पूरी फीस भर दी है और तुम्हारे लिए एक सेकेंड हैंड पुस्तक भी उन्होंने ले रखी है। लड़की तो भौंचक रह गई। यह क्या? उसकी खुशी का पारावार नहीं रहा। वह तुरंत तैयार होकर उस लड़की के साथ स्कूल पहुंची। शैलजा मैम को ढूंढा। उसके कुछ बोलने के पहले ही शैलजा मैम बोलीं- कहां थी तुम। जाओ जल्दी प्रवेश पत्र ले लो। इस लड़की की आंखों में आंसू थे। उसने पूछा- आपने मेरी फीस भर दी मैम? मैम ने कहा- हां, तो क्या हुआ? लड़की ने पूछा- आपका बहुत रुपया खर्च हो गया न मैम? शैलजा मैम खिलखिला कर हंस पड़ीं और बोलीं- तो क्या हुआ? प्रिंसपल साहब ने कहा कि गरीबी के कारण एक लड़की का एक साल बरबाद हो जाएगा। मैं भी गरीबी का दुख जानती हूं। मैंने भी एक बार परीक्षा में नहीं बैठ पाई थी और तब कितना रोई थी। वह कहानी फिर दुहराई जाए, मैं नहीं चाहती। आखिर हम मनुष्य क्यों हैं?

Comments

  1. विनय जी बहुत सुन्दर लेख!!

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  2. एक बेहद सार्थक लेख के लिए बधाई !

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--- संजय सेन सागर

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