Skip to main content

book review: novel: mujhe jeena hai critic acharya sanjiv verma 'salil'


कृति चर्चा:
मानवीय जिजीविषा का जीवंत दस्तावेज ''मुझे जीना है''
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
(कृति विवरण: मुझे जीना है, उपन्यास, आलोक श्रीवास्तव, डिमाई आकार, बहुरंगी सजिल्द आवरण, पृष्ठ १८३, १३० रु., शिवांक प्रकाशन, नई दिल्ली)
*
                 

                  विश्व की सभी भाषाओँ में गद्य साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा उपन्यास है। उपन्यास शब्द अपने जिस अर्थ में आज हमारे सामने आता है उस अर्थ में वह प्राचीन साहित्य में उपलब्ध नहीं है। वास्तव में अंगरेजी साहित्य की 'नोवेल' विधा हिंदी में 'उपन्यास' विधा की जन्मदाता है। उपन्यास जीवन की प्रतिकृति होता है। उपन्यास की कथावस्तु का आधार मानवजीवन और उसके क्रिया-कलाप ही होते हैं। आलोचकों ने उपन्यास के ६ तत्व कथावस्तु, पात्र, संवाद, वातावरण, शैली और उद्देश्य माने हैं। एक अंगरेजी समालोचक के अनुसार- 'आर्ट लाइज इन कन्सीलमेंट' अर्थात 'कला दुराव में है'। विवेच्य औपन्यासिक कृति 'मुझे जीना है' इस धारणा का इस अर्थ में खंडन करती है कि कथावस्तु का विकास पूरी तरह सहज-स्वाभाविक है।

                  खंडकाव्य पंचवटी  में मैथिलीशरण गुप्त जी ने लिखा है: 

'जितने कष्ट-कंटकों में है जिसका जीवन सुमन खिला, 
गौरव गंध उन्हें उतना ही यत्र-तत्र-सर्वत्र मिला'।

                     उपन्यास के चरित नायक विजय पर उक्त पंक्तियाँ पूरी तरह चरितार्थ होती हैं।  छोटे से गाँव के निम्न मध्यम खेतिहर परिवार के बच्चे के माता-पिता का बचपन में देहावसान, दो अनुजों का भार, ताऊ द्वारा छलपूर्वक मकान हथियाकर नौकरों की तरह रखने का प्रयास, उत्तम परीक्षा परिणाम पर प्रोत्साहन और सुविधा देने के स्थान पर अपने बच्चों को पिछड़ते देख ईर्ष्या के वशीभूत हो गाँव भेज पढ़ाई छुड़वाने का प्रयास, शासकीय विद्यालय के शिक्षकों द्वारा प्रोत्साहन, गाँव में दबंगों के षड्यंत्र, खेती की कठिनाइयाँ और कम आय, पुनः शहर लौटकर अंशकालिक व्यवसाय के साथ अध्ययन कर अंतत: प्रशासनिक सेवा में चयन... उपन्यास का यह कथा-क्रम पाठक को चलचित्र की तरह बाँधे रखता है। उपन्यासकार ने इस आत्मकथात्मक औपन्यासिक कृति में आत्म-प्रशंसा से न केवल स्वयं को बचाया है अपितु बचपन में कुछ कुटैवों में पड़ने जैसे अप्रिय सच को निडरता और निस्संगता से स्वीकारा है।

                   शासकीय विद्यालयों की अनियमितताओं के किस्से आम हैं किन्तु ऐसे ही एक विद्यालय में शिक्षकों द्वारा विद्यार्थी के प्रवेश देने के पूर्व उसकी योग्यता की परख किया जाना, अनुपस्थिति पर पड़ताल कर व्यक्तिगत कठिनाई होने पर न केवल मार्ग-दर्शन अपितु सक्रिय सहायता करना, यहाँ तक की आर्थिक कठिनाई दूर करने के लिए अंशकालिक नौकरी दिलवाना... इस सत्य के प्रमाण है कि शिक्षक चाहे तो विद्यार्थी का जीवन बना सकता है। यह कृति हर शिक्षक और शिक्षक बनने के प्रशिक्षणार्थी को पढ़वाई जानी चाहिए ताकि उसे अपनी सामर्थ्य और दायित्व की प्रतीति हो सके। विपरीत परिस्थितियों और अभावों के बावजूद जीवन संघर्षों से जूझने और सफल होने का यह  यह कथा-वृत्त हर हिम्मत न हारनेवाले के लिए अंधे की लकड़ी हो सकता है। कृति में श्रेयत्व के साथ-साथ प्रेयत्व का उपस्थिति इसे आम उपन्यासों से अलग और अधिक प्रासंगिक बनाती है।

                  अपनी प्रथम कृति में जीवन के सत्यों को उद्घाटित करने का साहस विरलों में ही होता है। आलोक जी ने कैशोर्य में प्रेम-प्रकरण में पड़ने, बचपन में धूम्रपान जैसी घटनाओं को न छिपाकर अपनी सत्यप्रियता का परिचय दिया है। वर्तमान काल में यह प्रवृत्ति लुप्त होती जा रही है। मूल कथावस्तु के साथ प्रासंगिक कथावस्तु के रूप में शासकीय माडल हाई स्कूल जबलपुर के शिक्षकों और वातावरण, खलनायिकावत  ताई, अत्यंत सहृदय और निस्वार्थी चिकित्सक डॉ. एस. बी. खरे, प्रेमिका राधिका, दबंग कालीचरण, दलित स्त्री लक्ष्मी द्वारा अपनी बेटी के साथ बलात्कार का मिथ्या आरोप, सहृदय ठाकुर जसवंत सिंह तथा पुलिस थानेदार द्वारा निष्पक्ष कार्यवाही आदि प्रसंग न केवल कथा को आगे बढ़ाते हैं अपितु पाठक को प्रेरणा भी देते हैं। सारतः उपन्यासकार समाज की बुराइयों का चित्रण करने के साथ-साथ घटती-मिटती अच्छाइयों को सामने लाकर बिना कहे यह कह पाता है कि अँधेरे कितने भी घने हों उजालों को परास्त नहीं कर सकते।   

               उपन्यासकार के कला-कौशल का निकष कम से कम शब्दों में उपन्यास के चरित्रों को उभारने में है। इस उपन्यास में कहीं भी किसी भी चरित्र को न तो अनावश्यक महत्त्व मिला है, न ही किसी पात्र की उपेक्षा हुई है। शैल्पिक दृष्टि से उपन्यासकार ने चरित्र चित्रण की विश्लेषणात्मक पद्धति को अपनाया है तथा पात्रों की मानसिक-शारीरिक स्थितियों, परिवेश, वातावरण आदि का विश्लेषण स्वयं किया है। वर्तमान में नाटकीय पद्धति बेहतर मानी जाती है जिसमें उपन्यासकार नहीं घटनाक्रम, पात्रों की भाषा तथा उनका आचरण पाठक को यह सब जानकारी देता है। प्रथम कृति में शैल्पिक सहजता अपनाना स्वाभाविक है। उपन्यास में संवादों को विशेष महत्त्व नहीं मिला है। वातावरण चित्रण का महत्त्व उपन्यासकार ने समझा है और उसे पूरा महत्त्व दिया है।

                  औपन्यासिक कृतियों में लेखक का व्यक्तित्व नदी की अंतर्धारा की तरह घटनाक्रम में प्रवाहित होता है। इस सामाजिक समस्या-प्रधान उपन्यास में प्रेमचंद की तरह बुराई का चित्रण कर सुधारवादी दृष्टि को प्रमुखता दी गयी है। आजकल विसंतियों और विद्रूपताओं का अतिरेकी चित्रण कर स्वयं को पीड़ित और समाज को पतित दिखने का दौर होने पर भी आलोक जी ने नकारात्मता पर सकारात्मकता को वरीयता दी है। यह आत्मकथात्मक परिवृत्त तृतीय पुरुष में होने के कारण उपन्यासकार को चरित-नायक विजय में विलीन होते हुए भी यथावसर उससे पृथक होने की सुविधा मिली।

                   मुद्रण तकनीक सुलभ होने पर भी खर्चीली है। अतः, किसी कृति को सिर्फ मनोरंजन के लिए छपवाना तकनीक और साधनों का दुरूपयोग ही होगा। उपन्यासकार सजगता के साथ इस कृति को रोचक बनाने के साथ-साथ समाजोपयोगी तथा प्रेरक बना सका है। आदर्शवादी होने का दम्भ किये बिना उपन्यास के अधिकांश चरित्र प्रेमिका राधिका, माडल हाई स्कूल के प्राचार्य और शिक्षक, मित्र, ठाकुर जसवंत सिंह, पुलिस निरीक्षक, पुस्तक विक्रय केंद्र की संचालिका श्रीमती मनोरमा चौहान (स्व. सुभद्रा कुमारी चौहान की पुत्रवधु) आदि पात्र दैनंदिन जीवन में बिना कोई दावा या प्रचार किये आदर्शों का निर्वहन अपना कर्तव्य मानकर करते हैं। दूसरी ओर उच्चाधिकारी ताऊजी, उनकी पत्नी और बच्चे सर्व सुविधा संपन्न होने पर भी आदर्श तो दूर अपने नैतिक-पारिवारिक दायित्व का भी निर्वहन नहीं करते और अपने दिवंगत भाई की संतानों को धोखा देकर उनके आवास पर न केवल काबिज हो जाते हैं अपितु उन्हें अध्ययन से विमुख कर नौकर बनाने और गाँव वापिस भेजने का षड्यंत्र करते हैं। यह दोनों प्रवृत्तियाँ समाज में आज भी कमोबेश हैं और हमेशा रहेंगी।

                  यथार्थवादी उपन्यासकार इमर्सन ने कहा है- ''मुझे महान दूरस्थ और काल्पनिक नहीं चाहिए, मैं साधारण का आलिंगन करता हूँ।'' आलोक जी संभवतः इमर्सन के इस विचार से सहमत हों। सारतः मुझे जीना है मानवीय जिजीविषा का जीवंत और सार्थक दस्तावेज है जो लुप्त होते मानव-मूल्यों के प्रति और मानवीय अस्मिता के प्रति आस्था जगाने में समर्थ है। उपन्यासकार आलोक श्रीवास्तव इस सार्थक कृति के सृजन हेतु बधाई के पात्र हैं.
****
salil.sanjiv @gmail.com / divyanarmada.blogspot.in / 94251 83244. 0761- 2411131
__________________

     

Comments

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

खुशवंत सिंह की अतृप्त यौन फड़फड़ाहट

अतुल अग्रवाल 'वॉयस ऑफ इंडिया' न्यूज़ चैनल में सीनियर एंकर और 'वीओआई राजस्थान' के हैड हैं। इसके पहले आईबीएन7, ज़ी न्यूज़, डीडी न्यूज़ और न्यूज़24 में काम कर चुके हैं। अतुल अग्रवाल जी का यह लेख समस्त हिन्दुस्तान का दर्द के लेखकों और पाठकों को पढना चाहिए क्योंकि अतुल जी का लेखन बेहद सटीक और समाज की हित की बात करने वाला है तो हम आपके सामने अतुल जी का यह लेख प्रकाशित कर रहे है आशा है आपको पसंद आएगा,इस लेख पर अपनी राय अवश्य भेजें:- 18 अप्रैल के हिन्दुस्तान में खुशवंत सिंह साहब का लेख छपा था। खुशवंत सिंह ने चार हिंदू महिलाओं उमा भारती, ऋतम्भरा, प्रज्ञा ठाकुर और मायाबेन कोडनानी पर गैर-मर्यादित टिप्पणी की थी। फरमाया था कि ये चारों ही महिलाएं ज़हर उगलती हैं लेकिन अगर ये महिलाएं संभोग से संतुष्टि प्राप्त कर लेतीं तो इनका ज़हर कहीं और से निकल जाता। चूंकि इन महिलाओं ने संभोग करने के दौरान और बाद मिलने वाली संतुष्टि का सुख नहीं लिया है इसीलिए ये इतनी ज़हरीली हैं। वो आगे लिखते हैं कि मालेगांव बम-धमाके और हिंदू आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद प्रज्ञा सिंह खूबसूरत जवान औरत हैं, मीराबा

Special Offers Newsletter

The Simple Golf Swing Get Your Hands On The "Simple Golf Swing" Training That Has Helped Thousands Of Golfers Improve Their Game–FREE! Get access to the Setup Chapter from the Golf Instruction System that has helped thousands of golfers drop strokes off their handicap. Read More .... Free Numerology Mini-Reading See Why The Shocking Truth In Your Numerology Chart Cannot Tell A Lie Read More .... Free 'Stop Divorce' Course Here you'll learn what to do if the love is gone, the 25 relationship killers and how to avoid letting them poison your relationship, and the double 'D's - discover what these are and how they can eat away at your marriage Read More .... How to get pregnant naturally I Thought I Was Infertile But Contrary To My Doctor's Prediction, I Got Pregnant Twice and Naturally Gave Birth To My Beautiful Healthy Children At Age 43, After Years of "Trying". You Can Too! Here's How Read More .... Professionally