तीन साल पहले सिनेमा पर बहसतलब का सिलसिला शुरू हुआ था। फिल्म महोत्सवों की समृद्ध परंपरा के बीच सिर्फ बातचीत का एक आयोजन करने का विचार इसलिए भी आया था, क्योंकि सिनेमा देखना पहले की तुलना में अब बहुत आसान हो गया है। अब कोई भी फिल्म ऐसी एक्सक्लूसिव नहीं रह जाती है, जैसे पहले हुआ करती थी। इसलिए फिल्म महोत्सवों का पहले जितना क्रेज था, अब उतना नहीं है। कम से कम भारत में तो नहीं है। हमारी समझ थी कि जो सिनेमा बनाते हैं, उन्हें अपने सिनेमा और सिनेमा के अलावा अपने समय की दूसरी गतिविधियों के बारे में बातचीत करनी चाहिए।
फिल्मकारों का एक तेज-तर्रार समूह बहसतलब को समर्थन देने की मुद्रा में आ गया। अनुराग कश्यप, डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी और मनोज बाजपेयी एक तरह से संरक्षक की भूमिका में आ गये और जब भी मौका मिला, अपना कीमती समय बहसतलब के बारे में सोचने और बहसतलब के आयोजनों को संभव बनाने में लगाते रहे। पटना के आयोजन में पैसा जुटाने के लिए मनोज वाजपेयी ने एक जूते की दुकान के फीते काटे, एक होटल में जाकर शाम का खाना खाया और एक टेलीकॉम कंपनी के उपभोक्ताओं से एक घंटे तक बातचीत की। डॉक्ट साहब किसी न किसी बहाने बुलाते रहे और जेब में पैसे ठूंसते रहे कि उत्साह को हमेशा जिंदाबाद रहना चाहिए। अनुराग ने हर साल के चार बेशकीमती दिन मोहल्ला लाइव को डोनेट करने का वादा किया। हंसल मेहता जैसे जहीन फिल्मकार ने ट्वीट किया कि बहसतलब जैसे आयोजनों की बहुत जरूरत है।
लिहाजा सिनेमा के सौ साल पर हमने सोचा कि एक जोरदार बहसतलब करते हैं। इस बहसतलब को करने उत्साह तब और बढ़ गया, जब हमारे गार्जियन सरीखे हरिवंश चतुर्वेदी ने शुरुआती तैयारियों का सारा भार उठा लिया। जो जमीन उन्होंने तैयार करके दी, उसी पर आज हम ये बहसतलब कर पा रहे हैं। हरिवंश जी बिरला इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नॉलॉजी के डायरेक्टर हैं।
ऊपर इनविटेशन कार्ड हमने चिपका दिया है। सबके घर पर आकर देना तो संभव नहीं, कृपया इसे ही न्यौता मान लें। इनविटेशन कार्ड में कुछ वक्ताओं और मॉडरेटर के नाम रह गये हैं, लेकिन वे सब अपने हैं और हमारी मजबूरी समझ सकते हैं। क्यों मिहिर पंड्या, प्रकाश के रे, रामकुमार सिंह, अनुराग आर्या, चंदन श्रीवास्तव, दिनेश श्रीनेत, हेमंत कुमार गाबा, शीलादित्य बोरा…?
इस बार कई सेशन हैं, जिनमें गांव, गीत, साहित्य, इतिहास से लेकर हम सिनेमा के अगले सौ साल के एजेंडे पर बात करना चाहते हैं। ये सारे विषय बहुत सोच समझ कर हमने तय किये हैं। मसलन हिंदी सिनेमा गांवों की कहानी क्यों नहीं कहता। यह विचार इफको के कुछ साथियों के साथ बात करते हुए आया। मुल्क की सत्तर-अस्सी फीसदी आबादी जहां रहती है, क्या वहां सब कुछ सामान्य है? क्या वहां कोई उतार-चढ़ाव नहीं है, जो कहानी में ढल सके? या ऐसी क्या बात है, जो हमारे फिल्मकारों को गांवों की कहानी कहने से रोकता है?
इसी तरह एक सत्र हिंदी सिनेमा और बहुजन वाला है। फॉरवार्ड प्रेस के संपादक द्वय प्रमोद रंजन और आयवन कॉस्का से बात करते हुए इस विषय का खयाल आया। साहित्य और राजनीति में बहुजन धारा ने अपनी जगह बना ली है और यकीनन मुख्यधारा की जगह ले ली है। लेकिन सिनेमा अभी भी बहुजन को स्वायत्त और स्वतंत्र तरीके से नहीं रच पा रहा। अभी भी दलित या ओबीसी नाटकीय तरीके से सिनेमा में जगह पाते हैं। तो क्या आने वाले समय में सिनेमा के भीतर भी कोई बहुजन हस्तक्षेप संभव है? और क्या वह हस्तक्षेप सिनेमा की मौजूदा मुख्यधारा को खारिज करते हुए होगा?
गीतकारों के साथ बहसतलब करने का विचार सबसे पहले नम्रता जोशी के मन में आया और मशहूर गीत-संगीत समीक्षक पवन झा को इस सत्र की रचना-संरचना तय करने की जिम्मेदारी देने की बात सोची गयी। लेकिन अफसोस कि इस बार दोनों ही अपनी जरूरी घरेलू मशरूफियत में कैद हैं। संभवत: इरशाद कामिल भी इस सत्र में शामिल हों।
इंट्री फ्री है। लेकिन आप चाहें, तो बहसतलब जैसे आयोजनों की निरंतरता के लिए मोहल्ला लाइव के एकाउंट में यथासंभव राशि जमा कर सकते हैं। ऑनलाइन राशि जमा करने के लिए जरूरी डीटेल ये रहा…
A/c Name : Mohalla Live
A/c No. : 158711100000502
IFC Code ANDB0001587
MICR Code 110011040
Bank Name & Address : Andhra Bank
1587-Shalimar Garden Branch: S C – 47, C – Block
Shalimar Garden, EXT 2, Sahibabad, Ghaziabad 201005
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♦ अविनाश
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर