आमिर के बारे में कहा जाता है वे पटकथा पढ़कर किसी फिल्म के लिए हां करते हैं, आमिर इस मामले में बहुत सजग माने जाते हैं। आमिर की फिल्में कुछ अलग होती हैं, उनके ट्रीटमेंट, कहानी आदि सब में कुछ नयापन होता है। आमिर पर भरोसा करने वाले तलाश देखने भी इसी उम्मीद से जायेंगे कि आमिर अपने छवि पर खरा उतरेंगे। पर यह फिल्म आमिर की साख के अनुरूप बिलकुल नहीं है। हाल के कुछ वर्षों में सिनेमा ने दर्शकों की पसंद को समृद्ध भी किया है, आमिर भी अच्छा सिनेमा देने के लिए, दर्शकों की रूचि परिष्कृत करने के लिए जाने जाते हैं, लिहाजा यह फिल्म उल्टी पड़ गयी है। दर्शक को आमिर से यह उम्मीद तो नहीं ही होगी। इस फिल्म में आप कहानी की ‘तलाश’ करते रह जायेंगे। ‘तलाश’ फिल्म एक भुतहा या हारर फिल्म नहीं भी कही जाए पर आत्मा के विश्वास पर केंद्रित तो है ही।
‘तलाश’ की कहानी
फिल्म स्टार अरमान कपूर की कार समन्दर में डूब जाती है। कार खुद अरमान चला रहा था, वह आत्महत्या नहीं कर सकता था फिर ऐसा क्या हुआ कि रात में सुनसान सडक पर तेज गति से दौड़ती हुई गाड़ी अचानक समंदर की ओर घूम गयी और सीढियां तोड़ते हुए समंदर में जा घुसी…! क्यों हुआ ऐसा…! क्या अरमान की किसी ने हत्या की? लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी डूबने के कारण मौत होना बताया गया। अरमान उस रास्ते पर गया ही क्यों जो उसके घर का रास्ता भी नहीं था..और वह कार खुद क्यों चला रहा था जबकि वह कार चलाना पसंद नही करता, हमेशा उसका ड्राइवर ही कार चलाता था..!! इस हाई प्रोफाइल केस को हल करने का जिम्मा है पुलिस अधिकारी सुरजन सिंह शेखावत का। शेखावत का एक अधीनस्थ बताता है, साहब ये केस फाइनल रिपोर्ट लगा कर बंद कर दीजिये। इस रास्ते में कुछ ‘गड़बड़’ है। यहां ऐसी कई मौतें हुई हैं, किसी का पता ही नहीं चल पाया।
शेखावत की पत्नी रोशनी उदास रहती है क्योंकि उसका आठ साल का बेटा करन पानी में डूब कर मर गया। बच्चे की मौत के लिए शेखावत खुद को जिम्मेदार मानता है और रात-रात भर सो नही पाता, न ही बच्चे के बारे में पत्नी से कोई बात करता है। इस डिप्रेशन से उबरने के लिए शेखावत पत्नी को मनोवैज्ञानिक के पास भी भेजता है। रोशनी की पड़ोसन आत्माओं से बात करा सकती है, वह करन की आत्मा से रोशनी की बात कराती है। शेखावत को जब यह पता लगता है वह रोशनी और अपनी पड़ोसन पर बहुत नाराज होता है। और कहता है मरने के बाद कोई वापस नहीं आता, सब खत्म हो जाता है। बहरहाल- इसी बीच करीना कपूर को भी आना है सो वह सिमरन उर्फ रोजी के किरदार में अवतरित होती हैं…। कालगर्ल रोजी की मदद से शेखावत अरमान कपूर की रहस्यमय मौत की गुत्थी सुलझाने की कोशिश करता है।
फिल्म का अंत पराभौतिक शक्तियों के वजूद को साबित करता है। इन सबमें यकीन नहीं रखने वाले शेखावत को भी मानना पड़ता है कि आत्मा होती है और वह अपनी मौत का बदला ले सकती है, रात-रात भर उसे घुमा सकती है। भीड़ में, अकेले में, समन्दर किनारे, आधी रात में और भरी दोपहरी में उससे मीठी-मीठी बातें कर सकती है… और वह सब कुछ कर सकती है जो रामगोपाल वर्मा की आत्माएं करती हैं ,… अब रहा इसका अच्छा पक्ष – तो निजाम सिद्दीकी का अभिनय अच्छा है, करीना कपूर बेशक बहुत खूबसूरत और आर्कषक लगी हैं, करने को जो मिला वह उन्होंने किया है। गाने कब बजते हैं, कब खामोश हो जाते हैं पता ही नहीं चलता। फिल्म की गति बेहद धीमी है, आखिरी आधे घंटे की फिल्म ठीक है अगर आप पहले के दो घंटे की फिल्म झेल लें तो…
मामला सिर्फ आत्मा का नहीं है। फिल्म की कहानी पूरे ढाई घंटे अपनी दर्शकों पर अपनी पकड़ बनाए रखने में काययाब नहीं लगती है। कहानी को बेवजह खींचा गया है। इस कहानी पर एक घंटे का सीरियल कहीं ज्यादा ठीक बनता। आत्मा के अस्तित्व के विशवास को पटकथा में मजबूती से न उतार पाना निर्देशक और पटकथा लेखक की कमजोरी है। हालीवुड की फिल्म ‘ट्यूलाइट’ है जिसमें वैम्पायर की ही कहानी है लेकिन पूरी फिल्म जबरदस्त है। दर्शकों ने ‘सुपरमैन’ भी देखी है। ये फिल्में काल्पनिक कथाओं पर ही आधारित थीं लेकिन फिल्म निर्माण आर प्रस्तुति के लिहाज से तार्किक थीं, जो यह फिल्म बिलकुल नहीं है। मैं आमिर की फिल्मो की प्रशंसक हूं लेकिन इस फिल्म को लेकर एक शिकायत है। जितनी मेहनत उन्होंने फिल्म के प्रचार-प्रसार में की, उसका सौवां हिस्सा भी पटकथा पर करते तो कुछ ठीक-ठाक बन जाता। अगर मुझे इस फिल्म के बारे में कहना हो तो मैं कहूंगी – बेकार।
मोहल्ला लाइव से साभार प्रकाशित
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--- संजय सेन सागर