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चाय वाले की इस बेटी ने किया कमाल, कायम की अनोखी मिसाल




 

लुधियाना। कुछ भी आसान नहीं था। लुधियाना से रोजाना डीएवी कॉलेज जालंधर जाना। पैसे नहीं होते फिर भी स्टूडेंट बस पास के लिए हर महीने 1500 रुपये खर्च करने पड़ते। आठ बजे कॉलेज पहुंचने के लिए सुबह पौने 6 बजे हर हाल में घर से निकलती।  उस पर मुश्किल यह कि रोडवेज बस वाले स्टूडेंट्स को देखकर बस भी नहीं रोकते हैं, फिर भी किसी तरह भाग कर बस पकड़ती। रास्ते में कभी-कभार मनचले लड़कों से भी दो-चार होना पड़ता था। 
 
कॉलेज पहुंचने में लगने वाला करीब दो घंटे का यह समय किसी पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने से कम नहीं था। लेकिन जब अपने और पापा के सपने को सोचती, तो खुद-ब-खुद सब से लड़ने का हौसला आ जाता। और इसी हौसले से यह सफलता हासिल कर पाई। यह कहानी है नेहा शर्मा की। बाबा फरीद यूनिवर्सिटी से संबंधित डीएवी इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोथैरेपी एंड रिहेबलिटेशन जालंधर से बैचलर्स ऑफ फिजियोथैरेपी कर रहीं लुधियाना की इस बेटी ने तीसरी बार भी पंजाब में टॉप किया है। उसने साबित कर दिखाया कि अगर कुछ ठान लिया तो कोई भी मुश्किल रास्ता नहीं रोक सकती। पापा अशोक कुमार चाय की दुकान चलाते हैं। संयुक्त परिवार है। बहन, मां, पापा के साथ एक ही कमरे में गुजारा करना होता है। वह अपनी पूरी सफलता का श्रेय अपने पापा को देती है, पापा भी अपनी बेटी की इस  कामयाबी पर फूले नहीं समाते।
 
बेटियां पैदा होने पर घबराया नहीं : अशोक कुमार
 
अपनी बेटी की सफलता पर खुश मगर बेहद रुंधे गले से कहते हैं लोग बेटियां पैदा होने पर घबरा जाते हैं लेकिन मैं कभी नहीं घबराया। मेरी बेटी बचपन से ही होशियार थी, जानता था, एक दिन जरूर कुछ बनेगी। सपनों में नहीं खोया, सपनों को हकीकत बनाने के लिए मेहनत करनी शुरू कर दी। सीमित आय थी पर बेटी के लिए बचत करता रहा। मैंने बेटी के लिए सोचा और आज बेटी मेरा इतना नाम रोशन कर रहीं हैं। बेटा होता तो शायद ये दिन वो नहीं दिखाता।
 
ऐसे करती हूं एग्जाम की तैयारी 
 
  • बहुत ज्यादा नहीं पढ़ती 
  • एक से डेढ़ घंटे पढ़कर थोड़ा रेस्ट करती हूं फिर पढ़ाई करती हूं। 
  • जो भी पढ़ती हूं उसे ध्यान से पढ़ती हूं। 
  • किताबी भाषा या रटने का प्रयास नहीं करती। 
  • अच्छी तरह पढ़ते के बाद केवल रिवीजन ही करती हूं। 
ये होती है एग्जाम स्ट्रैटजी 
 
  • एग्जाम पैटर्न को पहले अच्छी तरह समझ लेती हूं। उसी के हिसाब से तैयारी करती हूं। 
  • टू द प्वाइंट ही लिखती हूं। कॉपी भरने में विश्वास नहीं करती। 
  • परीक्षा देते समय टाइम मैनेजमेंट का पूरा ध्यान रखती हूं। 
  • राइटिंग पर ध्यान देती हूं। जो भी लिखती हूं स्पष्ट, साफ लिखती हूं। 
  • हैडिग और महत्वपूर्ण प्वाइंटस को अंडर लाइन जरूर करती हूं। 
 
जारी है सफलता का सफर 
 
  • दसवीं- 83 प्रतिशत
 
  • बाहरवीं- स्कूल टॉपर
 
  • बीपीटी फर्स्ट ईयर - 757 अंकों के साथ पंजाब में टॉपर 
 
  • सेकेंड ईयर- 603 अंकों के साथ पंजाब में टॉपर 
 
  • थर्ड ईयर - 705 अंको के साथ फिर टॉप किया
 
अगला टारगेट  
 
फाइनल में भी टॉप करना 
 
सपना  
 
मास्टर्स करना। डॉक्टर बनकर पहले घर की आर्थिक स्थिति सुधारना उसके बाद बच्चों के लिए फ्री कैंप लगाना।

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