कुछ देर पहले असीम त्रिवेदी ने बिग बॉस के घर के अंदर जाने से पहले शपथ ली,उनकी शपथ बांकी लोगों से बहुत अलग थी,उनकी बातों में देश प्रेम था,खोजते-खोजते मैं उनकी फेसबुक प्रोफाइल तक पहुंचा ,जहाँ उनके द्वारा आम जनता के लिए एक संदेश था हम वह संदेश अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाने के उद्देश्य से यहाँ हुबूहू प्रकाशित कर रहे है:-संपादक
मुझे खुशी है कि आपने मेरा बहुत समर्थन किया है और मुश्किल हालातों में भी मेरा साथ दिया है. पर मुझे लगता है कि आप लोगों के मन में मेरे कार्टून्स को लेकर कुछ भ्रम है. साथियों, आप में से कई लोग समझते हैं कि मैंने ये जो भेड़ियों वाला कार्टून बनाया है बस कुछ नेताओं को एक्सपोज़ करने के लिए है. मैं आप सबको बताना चाहता हूँ कि ये लालची भेडिये जो मेरे कार्टून्स में दिखाई देते हैं ये सिर्फ
इस देश के पोलिटीशियंस नहीं हैं. ये इस देश की जनता है. ये भेडिये आप हैं, हम हैं. जो रोज़ भ्रष्टाचार को स्वीकार करते हैं और फिर सिस्टम को हर बात के लिए कोसते हैं. ये भेडिये वो लोग हैं जो रोज़ कभी ड्राइविंग लाइसेंस के लिए तो कभी पासपोर्ट के लिए सरकारी दफ्तरों में फ़ाइल आगे बढवाने के लिए घूस देते हैं. कभी ट्रैफिक सिग्नल लांघ गए ये या कोई छोटी बड़ी गलती हो गयी तो उसको ढकने के लिए घूस देते हैं. कभी परमिट और लाइसेंस के लिए, कभी बिजली चोरी के लिए तो कभी टैक्स चोरी के लिए घूस देते हैं. और फिर हर बात के लिए सिस्टम को कोसते हैं, कहते हैं हमारे नेता भ्रष्ट हैं. दोस्तों, कोई अधिकारी आप से तब तक घूस नहीं ले सकता जब तक आप देने को तैयार ना हों. इसलिए ये सिंगल साइडेड प्रोसेस नहीं है. आप चाहें तो अपने स्तर पर इसे पूरी तरह से ब्लॉक कर सकते हैं. लेकिन हम ऐसा नहीं करते क्योंकि हम लालची हैं. क्योंकि हम अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहते. ज़रा भी कष्ट नहीं उठाना चाहते.
साथियों, हम खुद सिस्टम से बगावत करने को तैयार नहीं और नेताओं से उम्मीद लगाकर बैठे हैं कि वो सब ठीक कर देंगे. मुझे लगता है कि हम और आप ही वो भेडिये हैं जिनके दातों से खून टपक रहा है. जो किसी भी हाल में, किसी भी कीमत पर बस आगे बढना चाहते हैं. उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके क्या अंजाम होंगे और देश पर क्या असर पडेगा. उन्हें बस इस बात से फर्क पड़ता है कि अगर उनका पड़ोसी उनका सहकर्मी घूस लेकर या देकर आगे बढ़ सकता है तो वो क्यों नहीं. और उसके बाद हद तब हो जाती है जब हम देशभक्ति का नाटक करते हैं. भारत माता की जय और भगत सिंह अमर रहे जैसे झूठे नारे लगाते हैं. धोखा देते हैं खुद को भी, भारत माता को भी और भगत सिंह को भी. दो दिन पहले एक कार्यक्रम में एक सज्जन मिले, कहते हैं कि देश के लिए भगत सिंह की राह पर चलकर जान भी दे देंगे. मैंने कहा कैसे हिप्पोक्रेट आदमी हो यार. अपना थोड़ा सा फायदा तक छोड़ नहीं पाते और बातें जान देने की. मुझे जानना है कि ऐसे झूठे लोगों में और हमारे राजनेताओं में क्या फर्क है. दोनों ही कहते कुछ और है और करते कुछ और हैं. अरे भाई नेता कहीं बाहर से थोड़ी आएंगे, अधिकारी, क्लर्क, सरकारी टीचर, डॉक्टर, पुलिस वाले ये सब हमारे बीच के ही तो लोग हैं. और सब भ्रष्ट हैं.
हम पूरी संसद भी बदल दें तो भी कुछ नहीं बदलेगा जब तक ये 125 करोड़ लोग नहीं बदलेंगे जो करप्शन को स्वीकार कर चुके हैं और उसे अपने जीवन का हिस्सा बना चुके हैं. लेकिन यही तो मुश्किल है कुछ नेताओं को बदलना तो आसन है लेकिन इतनी बड़ी आबादी को एक साथ बदलना बहुत मुश्किल है. लेकिन गांधी ने कहा था, "Be the change, that you want to see in the world." हमें स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर वो परिवर्तन करना होगा, जो हम समाज में देखना चाहते हैं. अगर हम देश को भ्रष्टाचार से मुक्त देखना चाहते हैं तो शुरुआत खुद से करनी होगी. त्याग करने होंगे. बिना कीमत चुकाए कुछ नहीं मिलता. ये क्रांति संसद से नहीं व्यक्ति से शुरू होनी चाहिए. और यकीन रखिये अपने निजी स्वार्थ को थोडा भुलाकर भी हम इस क्रान्ति में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं. लेकिन मैं समझता हूँ कि केवल इतना भी काफी नहीं हैं. हमें सिस्टम से विद्रोह भी करना होगा. प्रतिरोध भी करना होगा.
साथियों, सोचिये अगर कोई बदमाश मुझे एक झापड़ मारकर चला जाए तो इसमें गलती बेशक उस बदमाश की है. वही बदमाश दुसरे, तीसरे दिन भी आकर मुझे झापड़ मार दे तो भी मैं कह सकता हूँ कि गलती उस बदमाश की है. लेकिन अगर वो रोज़ आकर मुझे झापड़ मारकर चला जाए तो फिर गलती उस बदमाश की नहीं है. अब गलती मेरी है. क्योंकि मैंने उस झापड़ को स्वीकार कर लिया. उस झापड़ को अपनी किस्मत समझ लिया है. क्योंकि मैंने उस के खिलाफ विद्रोह नहीं किया. क्योंकि मैंने इस अपमान को हज़म कर लिया और ये जिल्लत और अन्याय की ज़िंदगी को स्वीकार कर लिया. बेहतर होता मैं तय कर लेता कि भले मैं ज़िंदा ना रहूँ लेकिन रोज़ थप्पड़ खाकर नहीं जिऊंगा.
साथियों, ये भ्रष्टाचार का थप्पड़ तो हम पिछले बीसियों से साल से लगातार खा रहे हैं. बिना कोई बगावत किये, इसे अपनी किस्मत मानकर. इसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मानकर. मैं बस इतना चाहता हूँ कि अब हम ज़वाब दें. डरना केवल हमारा ही काम नहीं है. डरना चाहिए भ्रष्टाचारियों को, डरना चाहिए अपराधियों को. लेकिन डर रहे हैं हम, डर रहे हैं आम लोग. इसलिए मैं बस इतना चाहता हूँ कि हम कुछ ऐसा करें कि इन भ्रष्टाचारियों पर सीधा निशाना लगा सकें. संसद में बैठे लोगों पर नहीं, बल्कि हमारे आसपास के भ्रष्टाचारियों पर. संसद साफ़ करने के पहले हमें अपने घर को साफ़ करना होगा. सोचिये कैसा रहे अगर हम सब कुछ छोड़कर इसी मकसद के लिए खुद को समर्पित कर दें. और भ्रष्टाचार से सीधी लड़ाई लडें. उस स्कूल के बाहर बैठ जायें, जहां पढाई नहीं हो रही. उस अस्पताल के बाहर बैठ जायें, जहाँ इलाज़ नहीं हो रहा. और तब तक बैठे रहे जब तक हमारी बात न सूनी जाये. ज़रुरत पड़ने पर भ्रस्ताचारियों को बेईज्ज़त करें. उनकी सामजिक छवि पर हल्ला बोलें. और ज़रूरत पड़े तो झापड़ भी मारें. उनके अन्दर खौफ पैदा कर दें कि अगर वो भ्रष्टाचार करेंगे तो समाज उन्हें कतई माफ़ नहीं करेगा. जब तक समाज में भ्रस्ताचारियों को सम्मान मिलता रहेगा, ये सूरत कभी नहीं बदलेगी.
तो साथियों, मैं आपसे बस इतना अनुरोध करना चाहता हूँ कि आप भ्रष्टाचार को अपने जीवन से पूरी तरह निकाल दें भले ही हमें कुछ नुक्सान ही क्यों न सहना पड़े. और साथ ही हमें भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करना भी बंद करना होगा क्योंकि ज़ुल्म सहना भी उतना ही बड़ा गुनाह है जितना कि ज़ुल्म करना. इसलिए आइये हम अपने भीतर से एक व्यक्ति के स्तर से एक क्रांति को जन्म दें जो भले ही एक साथ पूरा देश न बदल सके लेकिन हम इस देश में कुछ बदलाव लाने में कामयाब हो जाएँ. और ज़रुरत पड़ने पर हर भ्रष्टाचारी के खिलाफ खडा होना होगा. जिससे इस समाज में किसी भ्रष्टाचारी को सम्मान न मिल सके और भ्रष्टाचारी अपना रास्ता बदलने पर विवश हो सकें. अगर एक कलर्क को घूस लेने पर बे इज्ज़त किया जाएगा तो ज़ल्दी किसी दुसरे क्लर्क की हिम्मत नहीं पड़ेगी घूस मांगने की. हम हर एक भ्रस्ताचारी को टार्गेट नहीं कर सकते लेकिन हम उनमे खौफ जगा सकते हैं कि भ्रष्टाचार करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. समाज में अपनी इज्ज़त और सम्मान से हाथ धोना पडेगा.
तो साथियों मैं चाहूँगा कि हम इस लड़ाई को पूरी शिद्दत से लड़ते रहे. पूरी उम्मीद के साथ, पूरे भरोसे के साथ. अंत में आपसे बस इतना ही कहूंगा, "शमा उम्मीद की दिल में जलाए रखिये, सुबह होने को है उम्मीद बनाए रखिये."
आपका,
असीम त्रिवेदी,
कार्टूनिस्ट.
साथियों, हम खुद सिस्टम से बगावत करने को तैयार नहीं और नेताओं से उम्मीद लगाकर बैठे हैं कि वो सब ठीक कर देंगे. मुझे लगता है कि हम और आप ही वो भेडिये हैं जिनके दातों से खून टपक रहा है. जो किसी भी हाल में, किसी भी कीमत पर बस आगे बढना चाहते हैं. उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके क्या अंजाम होंगे और देश पर क्या असर पडेगा. उन्हें बस इस बात से फर्क पड़ता है कि अगर उनका पड़ोसी उनका सहकर्मी घूस लेकर या देकर आगे बढ़ सकता है तो वो क्यों नहीं. और उसके बाद हद तब हो जाती है जब हम देशभक्ति का नाटक करते हैं. भारत माता की जय और भगत सिंह अमर रहे जैसे झूठे नारे लगाते हैं. धोखा देते हैं खुद को भी, भारत माता को भी और भगत सिंह को भी. दो दिन पहले एक कार्यक्रम में एक सज्जन मिले, कहते हैं कि देश के लिए भगत सिंह की राह पर चलकर जान भी दे देंगे. मैंने कहा कैसे हिप्पोक्रेट आदमी हो यार. अपना थोड़ा सा फायदा तक छोड़ नहीं पाते और बातें जान देने की. मुझे जानना है कि ऐसे झूठे लोगों में और हमारे राजनेताओं में क्या फर्क है. दोनों ही कहते कुछ और है और करते कुछ और हैं. अरे भाई नेता कहीं बाहर से थोड़ी आएंगे, अधिकारी, क्लर्क, सरकारी टीचर, डॉक्टर, पुलिस वाले ये सब हमारे बीच के ही तो लोग हैं. और सब भ्रष्ट हैं.
हम पूरी संसद भी बदल दें तो भी कुछ नहीं बदलेगा जब तक ये 125 करोड़ लोग नहीं बदलेंगे जो करप्शन को स्वीकार कर चुके हैं और उसे अपने जीवन का हिस्सा बना चुके हैं. लेकिन यही तो मुश्किल है कुछ नेताओं को बदलना तो आसन है लेकिन इतनी बड़ी आबादी को एक साथ बदलना बहुत मुश्किल है. लेकिन गांधी ने कहा था, "Be the change, that you want to see in the world." हमें स्वयं व्यक्तिगत स्तर पर वो परिवर्तन करना होगा, जो हम समाज में देखना चाहते हैं. अगर हम देश को भ्रष्टाचार से मुक्त देखना चाहते हैं तो शुरुआत खुद से करनी होगी. त्याग करने होंगे. बिना कीमत चुकाए कुछ नहीं मिलता. ये क्रांति संसद से नहीं व्यक्ति से शुरू होनी चाहिए. और यकीन रखिये अपने निजी स्वार्थ को थोडा भुलाकर भी हम इस क्रान्ति में बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं. लेकिन मैं समझता हूँ कि केवल इतना भी काफी नहीं हैं. हमें सिस्टम से विद्रोह भी करना होगा. प्रतिरोध भी करना होगा.
साथियों, सोचिये अगर कोई बदमाश मुझे एक झापड़ मारकर चला जाए तो इसमें गलती बेशक उस बदमाश की है. वही बदमाश दुसरे, तीसरे दिन भी आकर मुझे झापड़ मार दे तो भी मैं कह सकता हूँ कि गलती उस बदमाश की है. लेकिन अगर वो रोज़ आकर मुझे झापड़ मारकर चला जाए तो फिर गलती उस बदमाश की नहीं है. अब गलती मेरी है. क्योंकि मैंने उस झापड़ को स्वीकार कर लिया. उस झापड़ को अपनी किस्मत समझ लिया है. क्योंकि मैंने उस के खिलाफ विद्रोह नहीं किया. क्योंकि मैंने इस अपमान को हज़म कर लिया और ये जिल्लत और अन्याय की ज़िंदगी को स्वीकार कर लिया. बेहतर होता मैं तय कर लेता कि भले मैं ज़िंदा ना रहूँ लेकिन रोज़ थप्पड़ खाकर नहीं जिऊंगा.
साथियों, ये भ्रष्टाचार का थप्पड़ तो हम पिछले बीसियों से साल से लगातार खा रहे हैं. बिना कोई बगावत किये, इसे अपनी किस्मत मानकर. इसे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा मानकर. मैं बस इतना चाहता हूँ कि अब हम ज़वाब दें. डरना केवल हमारा ही काम नहीं है. डरना चाहिए भ्रष्टाचारियों को, डरना चाहिए अपराधियों को. लेकिन डर रहे हैं हम, डर रहे हैं आम लोग. इसलिए मैं बस इतना चाहता हूँ कि हम कुछ ऐसा करें कि इन भ्रष्टाचारियों पर सीधा निशाना लगा सकें. संसद में बैठे लोगों पर नहीं, बल्कि हमारे आसपास के भ्रष्टाचारियों पर. संसद साफ़ करने के पहले हमें अपने घर को साफ़ करना होगा. सोचिये कैसा रहे अगर हम सब कुछ छोड़कर इसी मकसद के लिए खुद को समर्पित कर दें. और भ्रष्टाचार से सीधी लड़ाई लडें. उस स्कूल के बाहर बैठ जायें, जहां पढाई नहीं हो रही. उस अस्पताल के बाहर बैठ जायें, जहाँ इलाज़ नहीं हो रहा. और तब तक बैठे रहे जब तक हमारी बात न सूनी जाये. ज़रुरत पड़ने पर भ्रस्ताचारियों को बेईज्ज़त करें. उनकी सामजिक छवि पर हल्ला बोलें. और ज़रूरत पड़े तो झापड़ भी मारें. उनके अन्दर खौफ पैदा कर दें कि अगर वो भ्रष्टाचार करेंगे तो समाज उन्हें कतई माफ़ नहीं करेगा. जब तक समाज में भ्रस्ताचारियों को सम्मान मिलता रहेगा, ये सूरत कभी नहीं बदलेगी.
तो साथियों, मैं आपसे बस इतना अनुरोध करना चाहता हूँ कि आप भ्रष्टाचार को अपने जीवन से पूरी तरह निकाल दें भले ही हमें कुछ नुक्सान ही क्यों न सहना पड़े. और साथ ही हमें भ्रष्टाचार को बर्दाश्त करना भी बंद करना होगा क्योंकि ज़ुल्म सहना भी उतना ही बड़ा गुनाह है जितना कि ज़ुल्म करना. इसलिए आइये हम अपने भीतर से एक व्यक्ति के स्तर से एक क्रांति को जन्म दें जो भले ही एक साथ पूरा देश न बदल सके लेकिन हम इस देश में कुछ बदलाव लाने में कामयाब हो जाएँ. और ज़रुरत पड़ने पर हर भ्रष्टाचारी के खिलाफ खडा होना होगा. जिससे इस समाज में किसी भ्रष्टाचारी को सम्मान न मिल सके और भ्रष्टाचारी अपना रास्ता बदलने पर विवश हो सकें. अगर एक कलर्क को घूस लेने पर बे इज्ज़त किया जाएगा तो ज़ल्दी किसी दुसरे क्लर्क की हिम्मत नहीं पड़ेगी घूस मांगने की. हम हर एक भ्रस्ताचारी को टार्गेट नहीं कर सकते लेकिन हम उनमे खौफ जगा सकते हैं कि भ्रष्टाचार करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. समाज में अपनी इज्ज़त और सम्मान से हाथ धोना पडेगा.
तो साथियों मैं चाहूँगा कि हम इस लड़ाई को पूरी शिद्दत से लड़ते रहे. पूरी उम्मीद के साथ, पूरे भरोसे के साथ. अंत में आपसे बस इतना ही कहूंगा, "शमा उम्मीद की दिल में जलाए रखिये, सुबह होने को है उम्मीद बनाए रखिये."
आपका,
असीम त्रिवेदी,
कार्टूनिस्ट.
इस जहाँ में कुछ ऐसे भी हुनर वाले लोगों होते है
ReplyDeleteजो एक निगाह से दिल में उतर जाते है..!!
लगता है इस बरस मुहब्बत हो ही जाएगी
मैंने सपने में खुद को मरते हुए देखा है..
पूछना चाहता हूँ मैं ये उन आखों से
किसी को आबाद किया है,मुझे बर्बाद करके...
कुछ ऐसा लगाया उसने मुझे गले
जितने शिकवे थे सब मिट गए...
मुझे पढो तो थोड़े आराम से पढना
कुछ किस्से मेरे और तुम्हारे है इस किताब में
मुझे मालूम है मैं उसके बिना जी नहीं सकता
उसका भी यही हाल है,मगर किसी और के लिए...
मैं जब भी टूटता हूँ तुझे ढूंढता हूँ
तूने एक बार कहा था ना की हम एक है