Skip to main content

सिनेमा को मुंबई से छीनने के लिए शटलकॉक ब्‍वॉयज देखिए


♦ अविनाश
ल शटलकॉक ब्‍वॉयज रीलीज हो रही है। चार सालों के संघर्ष के बाद। इससे पहले कुछ फिल्‍म महोत्‍सवों में शटलकॉक ब्‍वॉयज दिखायी गयी है। अच्‍छा ये लग रहा है कि शटलकॉक ब्‍वॉयज उन फिल्‍मों की छोटी सी फेहरिस्‍त में शामिल हो गयी है, जिसने अपनी निर्माण प्रक्रिया में मुंबई का सहारा नहीं लिया। सिनेमा निर्माण के विकेंद्रीकरण को लेकर एक पूरी बहस इन दिनों चल रही है। एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने आधे घंटे की एक डॉक्‍युमेंट्री मेरठ में फिल्‍मों की खेती पर की थी। जैसे जैसे टेक्‍नॉलॉजी सस्‍ती और सुलभ होगी, उसकी विशेषज्ञता का समूह भी बड़ा होगा।
शटलकॉक ब्‍वॉयज इसका एक बेहतरीन उदाहरण हैं। युवा उद्यमिता (Youth Entrepreneurship) की एक सामान्‍य सी कहानी को चुस्‍त पटकथा, सहज संवाद और संयमित संपादन के जरिये बेहद रोचक बना दिया गया है। अलग अलग मन-मिजाज के चार दोस्त फॉर्मूला जीवन जीने से इनकार कर देते हैं और नये रास्‍ते पर चलने का जोखिम उठाते हैं।
बहुत पहले अखिलेश की एक कहानी चिट्ठी में चार ऐसे ही दोस्‍त हैं। भारत में उदारीकरण की धमक से पहले अखिलेश ने ये कहानी बुनी थी। विश्‍वविद्यालय के आखिरी दिन सारे दोस्‍त एक दूसरे को फेयरवेल देते हैं। सब एक दूसरे से वादा करते हैं कि जो जैसे जैसे अपने कैरियर में कामयाब होता जाएगा, वह सबको एक चिट्ठी लिखेगा। इस कहानी में लेखक भी एक पात्र है, जो आखिर में लिखता है कि अरसा हुआ, मेरे किसी भी दोस्‍त की चिट्ठी में आज तक मेरे पास नहीं आयी और मैंने भी किसी को चिट्ठी नहीं लिखी।
शटलकॉक ब्‍वॉयज “चिट्ठी” के दोस्‍तों की अगली पीढ़ी की कहानी है और इस बीच युवाओं की पूरी बुनावट बदल चुकी है। प्रचंड आत्‍मविश्‍वास उनके व्‍यक्तित्व का हिस्‍सा बन गया है। रिस्‍क एक कॉमन फेनॉमिना बन कर उभरा है। शटलकॉक ब्‍वॉयज इसी दौर के युवाओं की एक बेहतरीन कहानी है।
शटलकॉक ब्‍वॉयज के निर्देशक हैं, हेमंत गाबा। आईटी प्रोफेशनल हैं। पंकज जौहर के साथ मिल कर उन्‍होंने एक नयी लकीर खींची है। मोहल्‍ला लाइव ऑनलाइन पार्टनर के तौर पर इस फिल्‍म से जुड़ा है, सिर्फ इस वजह से नहीं, बल्कि अपने अपने मन के सिनेमा को संभव बनाने के लिए शटलकॉक ब्‍वॉयज देखने की अपील हम कर रहे हैं।
शटलकॉक ब्‍वॉयज का फेसबुक पेज : http://www.facebook.com/ShuttlecockBoys
शटलकॉक ब्‍वॉयज का इवेंट पेज : http://www.facebook.com/events/434756219898041
दिल्‍ली में जहां जहां फिल्‍म लगेगी : http://www.facebook.com/events/183194438477800

Comments

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा