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'49 साल का हूं और अब तक सच्चे प्यार की तलाश कर रहा हूं'



 
सुभाष के झा के साथ संजय लीला भंसाली की खास बातचीत 

आपकी बहन बेला को अपनी पहली फिल्म (शिरीं फरहाद की तो निकल पड़ी) बनाने में दस साल लग गए। सुना है लोग इसके लिए आपको जिम्मेदार कह रहे हैं!

चीजें तभी होती हैं जब उन्हें होना होता है। मैं जानता हूं कि लोग मुझे उस बरगद के पेड़ की तरह समझते हैं जिसकी छाया में कोई दूसरा पेड़ उग नहीं सकता। जब मुझ पर अपनी ही बहन के कॅरियर को खराब करने के इल्जाम लगाए जाते हैं तो मैं आहत हो जाता हूं। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि उसी ने मुझे फिल्मी दुनिया के कद्दावर लोगों से परिचित करवाया। वे मुझे एफ टीआईआई ले गईं और फि ल्म इंडस्ट्री में इंट्रोड्यूस किया। मैं आज जो भी हूं उसका पूरा श्रेय उन्हीं को जाता है। शायद मेरी किस्मत अच्छी थी कि मैं उनसे पहले कोई फि ल्म बना पाया, पर ऐसा मौका उन्हें मिलना चाहिए था।

आप उन्हें पहले फिल्म बनाने के लिए मदद कर सकते थे।
कई बार मुझे लगा कि मेरी फिल्मों की एडिटिंग की वजह से वे अपनी कोई फिल्म नहीं बना पा रहीं। इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता था। बेला हमेशा मेरी क्रिएटिव टीम का हिस्सा थीं। उन्होंने फिल्म ब्लैक के पहले मेरी हर फिल्म एडिट की। तब जा कर उन्हें लगा कि अब वे अपनी फिल्म डायरेक्ट करने को तैयार हैं। वे हमेशा से ही एडिटिंग में एक्सपर्ट होने के बाद ही डायरेक्शन में उतरना चाहती थीं। फिल्म देवदास के बाद उन्हें लगा कि उन्हें भी फिल्म बनानी चाहिए। अंदर ही अंदर मुझे यह बात सता रही थी कि शायद मैं उनकी क्रिएटिविटी को सीमित कर रहा हूं।

पता चला है कि आप दोनों के बीच एडिटिंग के दौरान हाथापाई भी होती थी!
ओह हां, हंसते हुए। मैं किसी शेर की तरह अपनी फुटेज को बचाना चाहता था। वे बिल्कुल निर्दयी थीं। वे सीधे मुझे कह देती थीं कि कुछ सीन्स तो कटेंगे ही। तब वे एक बहन नहीं, बस एडिटर होती थीं। हम जंगली बिल्लियों की तरह लड़ते थे। उधर, हमारे असिस्टेंट डरे-सहमे एक-दूसरे से अलग करने की कोशिश में लगे रहते थे।

अब जब उनकी फिल्म बन कर तैयार है तो आपको कैसा लग रहा है।
मेरी पहली फिल्म खामोशी द म्यूजिकल से यह लाखों गुना अच्छी बनी है उनकी फिल्म। काश, मैंने यह फिल्म बनाई होती। मैं क्या कहूं पिछले कुछ हफ्तों से मैं काफी बिजी रहा हूं। अब मुझे अपनी फिल्म भी शुरू करनी है। ऐसा लग रहा है जैसे जुड़वा भाई-बहनों का जन्म हुआ हो। मैं सुपर-एक्साइटेडए सुपर-हैपी और सुपर-नर्वस भी हूं।

आप मैरीकॉम की जिंदगी के ऊपर भी फिल्म बना रहे हैं।
यह मेरी पहली बायोग्राफिकल फिल्म है। यह उनकी कहानी है जो बेहद खास इंसान है और जिन्होंने देश को गौरवान्वित किया है। इसके पहले यहां किसी ने महिला बॉक्सर के ऊपर कोई फिल्म नहीं बनाई है। हालांकि, हॉलीवुड में क्लिंट ईस्टवुड मिलियन डॉलर बेबी जैसी शानदार फिल्में बना चुके हैं। इसे मैं इसे जल्द ही शुरू करना चाहता हूं। मेरे आर्ट डायरेक्टर मेरे पास इस सब्जेक्ट को लेकर आए। वे लगभग एक साल से मैरी की लाइफ के ऊपर रिसर्च कर रहे थे। मैरी कॉम के कैरेक्टर को सूट करती कोई हीरोइन ढूंढना एक मुश्किल टास्क होगा।

आपकी बहन की फिल्म तभी रिलीज हो रही है जब आप अपनी फिल्म राम लीला के लिए बिल्कुल तैयार हैं।
पहली बात तो यह कि फिल्म का टाइटल अभी तक डिसाइड नहीं किया गया है। दूसरी कि मैं काफ ी थक चुका हूं पर मैं इंज्वॉय बहुत कर रहा हूं। बेला की फिल्म में तो मैं बिजी हूं ही पर मैं अपनी फिल्म पर भी काम कर रहा हूं।

आपकी अगली फिल्म देवदास, ब्लैक और गुजारिश जैसी सीरियस इशूज से हट कर एक लाइट-हार्टेड फिल्म है। क्या यह महज इत्तेफाक है।

मेरी अगली फिल्म काफी यंग और ब्रीजी है। शेक्सपीयर के रोमियो और जूलिएट को काफी अलग अंदाज में ट्रीट किया गया है। पर देवदास, ब्लैक और गुजारिश सीरियस फिल्में नहीं थीं। हां, उनका शराब की लत, मौत और आत्मघात से लेना-देना जरूर था। वे खुशगवार फिल्में थीं। उन्होंने सीरियस मुद्दों को जरूर उठाया पर हंसी और खुशमिजाजी को भी दिखाया। ब्लैक की शूटिंग के दौरान मैं और रानी ठहाके लगा कर हंसते थे।

बेला की फिल्म बताती है कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती। लेकिन हमारे समाज में इस तरह के प्यार को स्वीकार नहीं किया जाता। क्या आपको लगता है कि प्यार 45 का पड़ाव पार करने के बाद भी हो सकता है।

क्यों नहीं मुझे बेला का यह कॉन्सेप्ट बहुत पसंद आया। प्यार 45 क्या 85 की उम्र में भी हो सकता है। मैं 49 साल का हूं और अब तक सच्चे प्यार की तलाश कर रहा हूं।


दैनिक भास्कर से साभार प्रकाशित 

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