♦ अजय ब्रह्मात्मज
भारतीय दर्शन और जीवनशैली में गर्भधारण से मृत्यु तक के विभिन्न चरणों को रेखांकित करने के साथ उत्सव का प्रावधान है। आरंभ में हम इसे चालीस संस्कारों के नाम से जानते थे। गौतम स्मृति में चालीस संस्कारों का उल्लेख मिलता है। महर्षि अंगिरा ने इन्हें पहले 25 संस्कारों में सीमित किया। उसके बाद व्यास स्मृति में 16 संस्कारों का वर्णन मिलता है।
इन संस्कारों का किसी धर्म, जाति, संप्रदाय से सीधा संबंध नहीं हैं। वास्तव में ये संस्कार मनुष्य जीवन के सभी चरणों के उत्सव हैं। इन उत्सवों के बहाने परिजन एकत्रित होते हैं। उनमें परस्पर सहयोग, सामूहिकता और एकता की भावना बढ़ती है। जीवन का सामूहिक उल्लास उन्हें जोड़ता है। आधुनिक जीवन पद्धति के विकास के साथ वर्तमान में संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। फिर भी 16 संस्कारों में से प्रचलित कुछ संस्कारों के अवसर पर विस्तृत परिवार के सभी सदस्यों और मित्रों के एकत्रित होने की परंपरा नहीं टूटी है। शहरों में न्यूक्लियर परिवार के सदस्य अपने मित्रों और पड़ोसियों के साथ इन संस्कारों का उत्सव मनाते हैं। देहातों और कस्बों में अभी भी संस्कारों का आयोजन का पारिवारिक और सामुदायिक रूप बचा हुआ है।
देखें तो गर्भधारण से लेकर मृत्यु तक के ये 16 संस्कार मनुष्य के जीवन के मील के पत्थर हैं। जीवन यात्रा के हर मोड़ पर ये संस्कार हमें उत्सव का अवसर देते हैं और विकास क्रम को चिन्हित करते हैं। इन संस्कारों का प्राचीन आशय आज खो गया है, लेकिन ध्यान दें तो परिवर्त्तित रूप में ही इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है। इन संस्कारों के नाम और लक्षण बदल गये हैं, लेकिन हम आधुनिक जीवन शैली में भी इन संस्कारों के निर्वाह से नहीं चूकते। अधिकांश परिवारों में इन संस्कारों की परिपाटी चली आ रही है। आज भी गोद भराई, जन्म, नामकरण, अन्नप्राशन, मुंडन, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत, विवाह और मृत्यु के संस्कारों का पालन किसी न किसी रूप में भारतीय परिवारों में जारी है। इन संस्कारों का धार्मिक संदर्भ नहीं है। ये संस्कार सांसारिक हैं। इसी कारण इनका चलन जारी है।
चिन्मय मिशन द्वारा निर्मित धारावाहिक ‘उपनिषद गंगा’ की 15 जुलाई से आरंभ अगली तीन कड़ियों में मनुष्य जीवन के सोलह संस्कारों का वर्णन सूरदास के जीवन प्रसंगों के माध्यम से किया गया है। सूरदास ने अपने पदों में कृष्ण चरित का बखान किया है। उन पदों में हमें कुछ संस्कारों के उल्लेख मिलते हैं। डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने इन कड़ियों में 16 संस्कारों के चित्रण के साथ-साथ सूरदास के जीवन का आकलन भी किया है।
(अजय ब्रह्मात्मज। मशहूर फिल्म समीक्षक। लोकप्रिय हिंदी सिनेमा के प्रति गंभीर दृष्टिकोण रखते हुए उसके विपुल प्रभाव को समझने की कोशिश में वे फिल्मी हस्तियों के संपर्क में आये। दैनिक जागरण के मुंबई ब्यूरो प्रमुख। सिनेमा पर कई किताबें – जैसे, ऐसे बनी लगान, समकालीन सिनेमा और सिनेमा की सोच। महेश भट्ट की किताब जागी रातों के किस्से : हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री पर अंतरंग टिप्पणी के संपादक। चवन्नी चैप नाम का ब्लॉग। उनसे brahmatmaj@gmail.com पर संपर्क करें।)
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--- संजय सेन सागर