आज एक परिपाटी बड़ी तेजी से सर उठती चली जा रही है और वह है किसी के मुहं से कुछ इधर उधर निकला नहीं कि लगे उसकी गर्दन पकड़ने.अभी हाल में ही अमर उजाला ने एक समाचार प्रमुखता से प्रकशित किया कि ''. शहीदों की जाति बताने पर मचा सियासी बबाल''फिर समाचार आया कि ''सरनेम संधू भी नहीं लिखते थे भगत सिंह''इस तरह के समाचार और बबाल शहीदों के परिजनों को तो दुःख पहुंचा सकते हैं किन्तु जहाँ तक इनसे आम जनता को कष्ट पहुँचने की व् उनकी भावनाएं आहत होने की बात भाजपा प्रवक्ता मुख़्तार अब्बास नकवी कर रहे हैं इसमें कोई दम नहीं दीखता क्योंकि ये आम जनता ही है जो वोट देते वक़्त अपनी जाति देखती है.जब नौकरी देने की बात आती है तो अपनी जाति वाले को प्रमुखता देती है.जब किसी किरायेदार को मकान देने की बात आती है तो अपनी जाति वाले में सुरक्षा देखी जाती है.योग्यता को कौन पूछता है अपने गिरेबां में यदि आम जनता देखे तो बताये कि जब वोट देने की बात आयी तो क्या सबसे पहले उसने अपनी जाति का व्यक्ति नहीं ढूँढा और जब वह मिला तो उसी को वोट दी नहीं क्या और जब वह नहीं मिला तो मजबूरी वश किसी और को वोट दी.क्या उस वक़्त उसके दिमाग में कहीं से लेकर भी कहीं तक यह आया कि हमें इस पद के योग्य व्यक्ति को चुनना चाहिए?शहीदों के लिए इस तरह की बाते उठाना न केवल गलत बल्कि कष्ट कारी भी क्योंकि हम सभी के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले इन वीरों ने कभी ये सोचा भी नहीं होगा कि जिस देश व् जिन देशवासियों के लिए हम अपना सर्वस्व अर्पण कर रहे हैं वे हमें जाति जैसी तुच्छ श्रेणी में भी बाटेंगे.इसलिए मेरा सभी देशवासियों से यह नम्र निवेदन है कि यदि ऐसी बातों का मुहं तोड़ जवाब देना है तो जाति पाति ,धर्म अपने गैर जैसी तुच्छ भावनाओं से बाहर निकलकर योग्यता को चुने और देश के लिए जियें न कि अपने स्वार्थ के लिए.- सत्य नारायण सत्यम के शब्दों में
''बन के तूफ़ान न जियो,लेके अरमान जियो.
सबसे बेहतर है भाई बन के इंसान जियो.''
शालिनी कौशिक
shalini ji i think you'r very right .first change our thinking than to say anything others .
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