राजस्थानी नहीं राजस्थान की मातृभाषा ?
राजस्थान के स्कूलों में हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, पंजाबी, उर्दू और सिंधी माध्यम ही स्वीकार्य
राजस्थान के स्कूलों में हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, पंजाबी, उर्दू और सिंधी माध्यम ही स्वीकार्य
भाषा-भाषियों की दृष्टि से विश्व में सोलहवें तथा भारत में सातवें स्थान पर मानी जाने वाली भाषा राजस्थानी अपने ही प्रांत में उपेक्षित है। निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत बालक को उसकी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा दिए जाने का प्रावधान है और इसके लिए राजस्थान की प्राथमिक शिक्षा के लिए जिन सात भाषाओं को माध्यम के रूप में स्वीकारा गया है उनमें राजस्थानी शामिल नहीं है। प्रतिभागियों का मानना है कि इससे उनका हक अन्य प्रांतों के प्रतिभागी मार लेंगे और राजस्थान में शिक्षित बेरोजगारी बढ़ेगी।
राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा में चालीस फीसदी अंक इन माध्यम भाषाओं के लिए निर्धारित किए गए हैं और प्रतिभागी को हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, गुजराती, सिंधी तथा उर्दू में से किन्हीं दो भाषाओं को क्रमशः प्रथम तथा द्वितीय भाषा के रूप में चुनना है। इन भाषाओं में राजस्थानी शामिल नहीं होने से एक ओर जहां राजस्थान में अनिवार्य शिक्षा कानून की अवहेलना होगी तथा बालक को अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने का अवसर नहीं मिलेगा, वहीं अन्य प्रांतों के लोग बड़ी तादाद में राजस्थान में शिक्षक भर्ती की पात्रता हासिल कर जाएंगे।
‘‘आरटेट में प्रथम भाषा के रूप में तो मैंने हिन्दी को चुन लिया, मगर द्वितीय भाषा के रूप में अंग्रेजी चुननी पड़ी है। सहज-सी बात है कि सीमावर्ती प्रांतों के जो लोग पंजाबी, सिंधी, गुजराती या उर्दू चुनेंगे वे हम से कहीं आगे निकल जाएंगे और राजस्थान में ही हम राजस्थानी नौकरी के लिए तरसते रह जाएंगे।’’ -सुभाष स्वामी, बेरोजगार शिक्षक, परलीका।
‘‘राजस्थानी को अमरीका सरकार ने मान्यता दी है। साहित्य अकादेमी नई दिल्ली ने सन 1974 से इसे मान्यता दे रखी है। दुनियाभर में यह सम्मानित है और राजस्थान में इसका घोर अपमान असहनीय है।’’ -रामस्वरूप किसान, प्रसिद्ध साहित्यकार।
‘‘हैरानी की बात है कि राजस्थान की ही सरकार राजस्थानी को अपने प्रांत की भाषा नहीं मानती। फिर यह तो बताए कि यह किस प्रांत की भाषा है? राजस्थान की जनता के साथ हो रहे इस अन्याय का हम डटकर विरोध करेंगे। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने को हम कटिबद्ध हैं।’’ -अभिषेक मटोरिया, विधायक, नोहर।
-अजय कुमार सोनी
राजस्थान अध्यापक पात्रता परीक्षा में चालीस फीसदी अंक इन माध्यम भाषाओं के लिए निर्धारित किए गए हैं और प्रतिभागी को हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, गुजराती, सिंधी तथा उर्दू में से किन्हीं दो भाषाओं को क्रमशः प्रथम तथा द्वितीय भाषा के रूप में चुनना है। इन भाषाओं में राजस्थानी शामिल नहीं होने से एक ओर जहां राजस्थान में अनिवार्य शिक्षा कानून की अवहेलना होगी तथा बालक को अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने का अवसर नहीं मिलेगा, वहीं अन्य प्रांतों के लोग बड़ी तादाद में राजस्थान में शिक्षक भर्ती की पात्रता हासिल कर जाएंगे।
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तरसते रह जाएंगे राजस्थानी‘‘आरटेट में प्रथम भाषा के रूप में तो मैंने हिन्दी को चुन लिया, मगर द्वितीय भाषा के रूप में अंग्रेजी चुननी पड़ी है। सहज-सी बात है कि सीमावर्ती प्रांतों के जो लोग पंजाबी, सिंधी, गुजराती या उर्दू चुनेंगे वे हम से कहीं आगे निकल जाएंगे और राजस्थान में ही हम राजस्थानी नौकरी के लिए तरसते रह जाएंगे।’’ -सुभाष स्वामी, बेरोजगार शिक्षक, परलीका।
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दुनिया में सम्मानित, प्रदेश में अपमानित‘‘राजस्थानी को अमरीका सरकार ने मान्यता दी है। साहित्य अकादेमी नई दिल्ली ने सन 1974 से इसे मान्यता दे रखी है। दुनियाभर में यह सम्मानित है और राजस्थान में इसका घोर अपमान असहनीय है।’’ -रामस्वरूप किसान, प्रसिद्ध साहित्यकार।
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डटकर विरोध करेंगे‘‘हैरानी की बात है कि राजस्थान की ही सरकार राजस्थानी को अपने प्रांत की भाषा नहीं मानती। फिर यह तो बताए कि यह किस प्रांत की भाषा है? राजस्थान की जनता के साथ हो रहे इस अन्याय का हम डटकर विरोध करेंगे। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने को हम कटिबद्ध हैं।’’ -अभिषेक मटोरिया, विधायक, नोहर।
-अजय कुमार सोनी
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर