Skip to main content

डॉ श्याम गुप्त की कहानी...बारात कौन लाये .......



                 क्यों पापा ! वह स्वयं बारात लेकर क्यों नहीं जा सकती ? वह स्वयं यहाँ आकर क्यों नहीं रह सकता ? सोचिये , मेरे जाने के बाद आप लोगों का ख्याल कौन रखेगा ? शालू एक साँस में ही सबकुछ कह गयी।
'हाँ बेटा, यह हो सकता है। परन्तु यदि वह लड़का भी परिवार की इकलौती संतान हो तो ?' 'शाश्वत चले आ रहे मुद्दों पर यूंही भावावेश में, या कुछ नया करें , लीक पर क्यों चलें ? की भावना में बहकर , बिना सोचे समझे चलना ठीक नहीं होता; अपितु विशद- विवेचना, हानि-लाभ व दूरगामी प्रभावों,परिणामों पर विचार करके ही निर्णय लेना चाहिए। '
                " मुख्य मुद्दा यह नहीं है कि कौन किसके घर रहने जाए, कौन बरात लाये । यदि पति-पत्नी, सुहृद, युक्ति-युक्त विचार वाले, उचित-अनुचित ज्ञान वाले हैं तो दोनों ही स्थितियों में वे एक दूसरे के परिवार वालों , माँ -बाप का सम्मान करंगे और परिवार जुड़ेंगे। समस्याएं नहीं रहेंगीं । शाश्वत बात वही है कि व्यक्ति मात्र को अच्छा ,न्याय एवं सत्य कानिर्वाह करने वाला होना चाहिए। " शालू के पिता पुनः कहने लगे, ' नियम, व्यक्ति सामाजिक सुरक्षा के लिए होते हैं कि व्यक्ति नियम के लिए '
        " और प्रथाएंपरिपाटी ", शालू ने पूछा।
          सतीश  जी ने बताया, 'बेटा !, परिपाटी, नीति, नियम,क़ानून, प्रथाएं, आस्थाएं आदि व्यक्ति मात्र के सुख-सुविधा के लिए होते हैं , किसी व्यक्ति विशेष या समूह, जाति, वर्ग या धर्म विशेष के लिए नहीं। यही मानवता, सामाजिकता, सार्वभौमिकता व धर्म है। अन्यथा आज जैसी सामाजिक विभ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है जिसके चलते यह प्रश्न खडा हुआ है । '
        परन्तु, पापा! यदि नवीन व्यवस्था को अपना कर देखें तो क्या हानि है ?
'कुछ नहीं ' , सतीश जी बोले ,' अन्यथा समाज आगे कैसे बढेगा ? परन्तु बेटी ! पहले इतिहास को भी तो देख लेना चाहिए। इतिहास भी तो नव प्रयोग ही है इस देश में स्त्री- सत्तामक समाज का इतिहास रहा है। आज भी प्राचीन कबीलों में वह समाज है , जिसमें पति, पत्नी के घर जाकर रहता है । परन्तु उस व्यवस्था में पति को घर में स्थित पत्नी को सक्रिय भूमिका निभानी पड़ती है; अर्थात दूसरे घर-परिवार से आने वाले प्राणी (पति या पत्नी) को घर में रहकर कार्यकर्ता की भूमिका निभानी होगी जबतक वह नई परिस्थितियों से तदाकार नहीं होजाता। घर वालों को भी चाहिए कि वे उस पर पूर्ण विश्वास व्यक्त करें , अपना समझें व सबकुछ उसके संज्ञान में लाकर कार्य करें ताकि वह शीघ्रातिशीघ्र घर का अंग बन सके। '
'पर मैं तो सभी कार्य कर सकती हूँ, इसीलिये तो आपने पढ़ाया है, लिखाया है। और आजकल तो शिक्षा के प्रचार-प्रसार से सभी घरों में लगभग सामान परिस्थितियाँ होतीं हैं। ', शालू बोली।
             हाँ, ठीक है, सतीश जी सोचते हुए बोले, 'आज स्त्री पहले की भांति घर में सीमित न रहकर, पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहती है ; ताकि उसकी अज्ञानता लाचारी से उस पर अत्याचार नहो कर्तव्यों व अधिकारों की अज्ञानता ही तो अत्याचार, अनाचार व अन्याय की जड़ होती है ; जिसका प्रतिकार त्रेता युग में राम-सीता व द्वापर में, राधा-कृष्ण ने किया था। आज पुनः वही स्थिति है, और प्रतिकार करना ही होगा, क्योंकि शिक्षा के तमाम प्रचार-प्रसार के उपरांत भी हमारे समाज में कुरीतियाँ व अनीतियाँ पैर पसारे पडीं हैं। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि स्त्री-पुरुष एक दूसरे के अधिकारों को चुनौती दें । आपकी स्वतन्त्रता तभी तक है जब तक आप दूसरों कीस्वतन्त्रता अधिकारों का हनन नहीं करते। '
         ' क्या इसमें पुरुष का अहं आड़े नहीं आयेगा ' शालू ने प्रश्न किया।
         'अवश्य', पुरुष का यह संस्कारगत अहं ही तो है जो सदियों की रूढ़ियों व प्रथाओं से उत्पन्न हुआ है और समस्याएं उत्पन्न करता है । यह अहं स्त्रियों में भी होता है । हाँ मूलतः यह प्रथाओं आदि अयुक्तिपूर्ण विश्लेषण से होता है। परन्तु उत्तम चरित्र-संस्कार युत स्त्री-पुरुष इस अहं को समुचित ज्ञान , वस्तुस्थिति व युक्ति-युक्त विचार भाव से शमन करते रहते हैं। '
           ' ये क्या व्यर्थ के प्रशन -उत्तर सिखाये समझाये जारहे हैं लड़की को । बेटियाँ तो सदा ही पति के घर जाती हैं ।'. सतीश जी की पत्नी अनुराधा ने व्यवधान डालते हुए कहा ।
            सतीश जी हंसते हुए बोले। 'तुम भी सुनलो , वास्तव में प्रारंभिक अवस्था में तो ये प्रश्न थे ही नहीं। जब समाज विकसित हु, अर्थव्यवस्था अन्योन्याश्रित हुई , घर से दूर जाकर कार्य करना आवश्यक हुआ तो संतान-परिवार की सुरक्षा-पालन हेतु एक प्राणी को घर पर रहना अनिवार्य लगा । चूंकि स्त्री प्राकृतिक रूप से कम बलशाली व संतानोत्पत्ति के समय अक्रियाशील होती है अतः उसने स्वेछा से घर का कार्य संभालने का निर्णय लिया और पत्नी बनकर पतिगृह आकर रहने लगी, और परिवार बना । जब मानव घुमंतू स्वभाव छोड़कर स्थिर हुआ तो परिवार, दाम्पत्य, राजनीति, संपत्ति, स्वामित्व के प्रश्न उठने लगे । तब संतान व स्त्री को पिता व पति की अनुगामी बनाकर पितृ-सत्तात्मक समाज की रचना हुई, जिसमें पुत्र पिता की संपत्ति में व स्त्री किसी की पत्नी बनकर पति की संपत्ति के भोग की अधिकारी बनती है , और व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहती है । चक्रीय व्यवस्थानुसार सभी लड़कियां किसी न किसी संपत्ति की अधिकारिणी रहतीं हैं। तब समाज के व्यापक हित में 'कन्यादान' 'पाणिग्रहण ' आदि संस्कारों की प्रामाणिक व्यवस्था स्थापित हुई। '
            परन्तु पापा !, 'फिर ये दहेज़ स्त्री प्रतारणा जैसी कुप्रथाओं से आज यह सामाजिक अशांति क्यों है ? उसका क्या किया जाय ?'
           ' अशांति व अव्यवस्था तभी उत्पन्न होती है', सतीश जी ने कहा, 'जब परिवार, व्यक्ति , समूह विशेष या समाज ; लालच, लोभ , मोह व अज्ञानता के वशीभूत होकर विकृत व्यवहार करते हैं ; अथवा अज्ञान या स्वार्थ वश वस्तु स्थिति को पूर्ण रूप से जाने बिना व्यवस्थाओं पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाता है। वस्तुतः सत्य तो यही है कि मनुष्य मात्र को ही सच्चरित्र , सत्यपर चलने वाला, युक्ति-युक्त व्यवहार वाला व दूसरों का आदर करने वाला होना चाहिए ।
              अतः बेटी !, व्यक्ति समाज के भूत, भविष्य वर्त्तमान पर विशद विमर्श करके जो उचित लगे वही करोइसके लिए सोचो, विचारों, चिंतन -मनन करो तभी निर्णय लोदुविधाओं में परामर्श के लिए हम हैं ही

Comments

  1. सकारात्मक सोच के साथ समाज के कलंक दहेज़ कुप्रथा का सामना करने का सन्देश देती aapki रचना सराहनीय है .बधाई .

    ReplyDelete
  2. dhanyavaad--शालिनी जी....मूलत: ये सारे मामले अच्छे -बुरे व्यक्ति/व्यक्तित्व के ही होते हैं., स्त्री-पुरुष सम्बन्ध/या अत्याचार/ विवाद के नहीं...यह मानवीय त्रुटि हैं...स्त्री या पुरुष की त्रुटि नहीं...और यदि वास्तव में हम इन्हें दूर करना चाहते है तो मानवीय-आचार व्यवहार पर ध्यान देना होगा....

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

खुशवंत सिंह की अतृप्त यौन फड़फड़ाहट

अतुल अग्रवाल 'वॉयस ऑफ इंडिया' न्यूज़ चैनल में सीनियर एंकर और 'वीओआई राजस्थान' के हैड हैं। इसके पहले आईबीएन7, ज़ी न्यूज़, डीडी न्यूज़ और न्यूज़24 में काम कर चुके हैं। अतुल अग्रवाल जी का यह लेख समस्त हिन्दुस्तान का दर्द के लेखकों और पाठकों को पढना चाहिए क्योंकि अतुल जी का लेखन बेहद सटीक और समाज की हित की बात करने वाला है तो हम आपके सामने अतुल जी का यह लेख प्रकाशित कर रहे है आशा है आपको पसंद आएगा,इस लेख पर अपनी राय अवश्य भेजें:- 18 अप्रैल के हिन्दुस्तान में खुशवंत सिंह साहब का लेख छपा था। खुशवंत सिंह ने चार हिंदू महिलाओं उमा भारती, ऋतम्भरा, प्रज्ञा ठाकुर और मायाबेन कोडनानी पर गैर-मर्यादित टिप्पणी की थी। फरमाया था कि ये चारों ही महिलाएं ज़हर उगलती हैं लेकिन अगर ये महिलाएं संभोग से संतुष्टि प्राप्त कर लेतीं तो इनका ज़हर कहीं और से निकल जाता। चूंकि इन महिलाओं ने संभोग करने के दौरान और बाद मिलने वाली संतुष्टि का सुख नहीं लिया है इसीलिए ये इतनी ज़हरीली हैं। वो आगे लिखते हैं कि मालेगांव बम-धमाके और हिंदू आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद प्रज्ञा सिंह खूबसूरत जवान औरत हैं, मीराबा

Special Offers Newsletter

The Simple Golf Swing Get Your Hands On The "Simple Golf Swing" Training That Has Helped Thousands Of Golfers Improve Their Game–FREE! Get access to the Setup Chapter from the Golf Instruction System that has helped thousands of golfers drop strokes off their handicap. Read More .... Free Numerology Mini-Reading See Why The Shocking Truth In Your Numerology Chart Cannot Tell A Lie Read More .... Free 'Stop Divorce' Course Here you'll learn what to do if the love is gone, the 25 relationship killers and how to avoid letting them poison your relationship, and the double 'D's - discover what these are and how they can eat away at your marriage Read More .... How to get pregnant naturally I Thought I Was Infertile But Contrary To My Doctor's Prediction, I Got Pregnant Twice and Naturally Gave Birth To My Beautiful Healthy Children At Age 43, After Years of "Trying". You Can Too! Here's How Read More .... Professionally