मै डटा रहा था मोहड़े पर॥
लेकर पूरी लश्कर को॥
आंच न आने देता था॥
अपने प्यारे चमन को॥
कोई चिंगारी भेद न पाती॥
न घबराते सैनिक साथी॥
आत्म बल से भरे हुए थे॥
कभी हटाते नहीं थे छाती॥
मिटना सीखा देश के खातिर॥
आन मान का ख्याल किया था॥
अपने प्यारे देश के खातिर॥
हमने भी तो बलि दिया था॥
लेकर पूरी लश्कर को॥
आंच न आने देता था॥
अपने प्यारे चमन को॥
कोई चिंगारी भेद न पाती॥
न घबराते सैनिक साथी॥
आत्म बल से भरे हुए थे॥
कभी हटाते नहीं थे छाती॥
मिटना सीखा देश के खातिर॥
आन मान का ख्याल किया था॥
अपने प्यारे देश के खातिर॥
हमने भी तो बलि दिया था॥
Comments
Post a Comment
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर