जब रुक गए थे हाथ हमारे॥
रोती रही कलम,,
जब भ्रष्टाचार का भ्रष्ट दरोगा॥
देने लगा रकम॥
वह नोटों की गद्दी मुझको देता॥
लगती हमें शरम॥
जब रुक गए थे हाथ हमारे॥
मै हक्का बक्का भौचक्का सा॥
रोक रहा था कदम॥
जब रुक.............
जब समझाने की कोशिस करता॥
वह तैले मेरा बजन...
जब रुक गए थे हाथ हमारे...
रोती रही कलम,,
जब भ्रष्टाचार का भ्रष्ट दरोगा॥
देने लगा रकम॥
वह नोटों की गद्दी मुझको देता॥
लगती हमें शरम॥
जब रुक गए थे हाथ हमारे॥
मै हक्का बक्का भौचक्का सा॥
रोक रहा था कदम॥
जब रुक.............
जब समझाने की कोशिस करता॥
वह तैले मेरा बजन...
जब रुक गए थे हाथ हमारे...
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर