Skip to main content

पश्चिम बंगाल : खतरे में 'लाल किला'

बंगाल के विधानसभा चुनाव कई मायनों में अलग हैं। नतीजों से पहले ही वामदलों के लिए 'मर्सिया' पढ़े जाने लगे हैं। वाम दलों का परंपरागत वोट बैंक समझे जाने वाले मुसलमान इस बार क्या करेंगे? यह सवाल फिजा में तैर रहा है। हालांकि पिछले लोकसभा और पंचायत चुनावों में मुसलमानों ने वाम दलों को अपनी दूरी को नतीजों का रूप दे दिया था। यही वजह है कि इस बार राजनीतिक पार्टियां मुसलिम वोट बैंक का हिसाब लगा रही हैं। बंगाली वाममोर्चा को गलतफहमी हो गई है कि अब पहले जैसे हालात नहीं हैं और मुसलमान उसके साथ हैं। इसमें शक नहीं कि सिंगूर और नंदीग्राम में मुसलमानों के साथ वाममोर्चा ने ज्यादती की, जो उसकी कामयाबी में बड़ी भूमिका अदा करते रहे हैं।

इस बार मुसलमान ममता बनर्जी को राइटर्स बिल्डिंग में लाने को बेताब हैं। वामदल सांप्रदायिकता के मुद्दे पर मुसलमानों पर 'इमोशन अत्याचार' करते रहे हैं। अबकी बार सांप्रदायिकता का मुद्दा गायब है। मुद्दा 2008 और 2009 के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चलाए गए आंदोलन को निर्ममता से कुचलने के लिए मुसलमानों पर अत्याचार का है।

यही वजह थी कि 2009 के लोकसभा चुनाव में मुसलिम बहुल क्षेत्रों में वाम को करारी शिकस्त हुई थी। तब सीपीएम का केवल एक मुसलमान सांसद पश्चिम बंगाल से चुनाव जीत सका था। कोलकाता, पूर्व मेदिनीपुर, हावड़ा, हुगली, मालदा, मुर्शिदाबाद, उत्तर दिनाजपुर, उत्तर और दक्षिण 24 परगना और वीरभूम जैसे मुसलिम बहुल जैसे जिलों से तो वामदलों को बिल्कुल ही नकार दिया गया था। नकारे जाने की शिद्दत का अंदाजा इस बात से से लगाया जा सकता है कि 67 प्रतिशत वोटर वाले मुर्शिदाबाद जिले वाले लोकसभा चुनाव में वहां की एकमात्र जलंगी विधानसभा सीट पर वाममोर्चा आगे रहा था। 55 प्रतिशत वोटर वाले जिले मालदा की 12 विधानसभा सीटों में सिर्फ एक सीट ही जीत सका था। उत्तर दिनाजपुर की सभी नौ सीटों पर हालत खराब रही थी। उत्तर 24 परगना के बशीरहाट, बारासात और बैरकपुर लोकसभा सीटों के अंतर्गत आने वाली वाली 21 विधानसभा सीटों में केवल तीन पर वामदल आगे रहे थे। अन्य जिलों की भी कमोबेश भी यही हालत रही थी।

बंगाल की 294 सीटों में से 115 सीटों पर मुसलिम निर्णायक साबित होते हैं। 70 सीटें पूरी तरह से मुसलिम बहुल हैं, तो 45 सीटों पर हार-जीत मुसलमान ही तय करते हैं। 2009 के बाद मुसलमानों को अपनी ओर करने के लिए वामदलों ने कुछ किया हो, सामने नहीं आया है। सिंदूर और नंदीग्राम को भी मुसलमान भूल गए हैं, ऐसा भी नहीं है। हालांकि मुसलिम मतदाताओं की नाराजगी दूर करने के लिए मुसलमानों को ओबीसी आरक्षण का लाभ देने की घोषणा की गई है, लेकिन लगता नहीं कि मुसलमानों की नाराजगी दूर करने के लिए इतना काफी है।

इसमें दो राय नहीं कि वामदलों ने हमेशा ही सांप्रदायिकता के मुद्दे पर कड़ा स्टैंड लिया। मुसलमान उन्हें अपने करीब पाते थे। यही वजह थी कि पश्चिम बंगाल के मुसलमानों ने भी कभी वामदलों को निराश नहीं किया। लेकिन अफसोसनाक बात यह है कि इसके बदले में वामदलों ने अन्य राजनैतिक दलों की तरह ही उन्हें सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास से दूर रखा। सच्चर समिति रिपोर्ट बताती है कि बंगाल के मुसलमान स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के मामले में सबसे ज्यादा पिछड़े हुए हैं। यदि कोलकाता और उसके आसपास के शहरों को छोड़ दिया जाए तो शेष बंगाल में मुसलमानों की हालत बेहद खराब है। यह सवाल बार-बार उठता है कि आखिर चार दशक तक सत्ता में रहने बाद भी वाम सरकार ने मुसलमानों की अनदेखी क्यों की? पिछले दो दशकों में बंगाल में हुए आर्थिक विकास का लाभ मुसलमानों को कुछ नहीं मिला है।

सच यह है कि वाम सरकार मुसलमानों को सिर्फ धर्मनिरपेक्षता की घुट्टी पिलाती रही और दंगे न होने देने का आश्वासन देती रही। यह सही है कि पश्चिम बंगाल में दंगे नहीं होते। क्या मुसलमान इसे ही बहुत कुछ मान लें कि वे दंगों से सुरक्षित हैं? क्या उन्हें रोजी-रोटी नहीं चाहिए? बंगाल की कुल आबादी का एक चौथाई आबादी मुसलमानों की है, लेकिन सरकारी नौकरियों में सिर्फ 2.1 प्रतिशत मुसलमान हैं। सरकार के अपने उपक्रमों में तो हालत और भी ज्यादा खराब है। इनमें सिर्फ 1.2 प्रतिशत मुसलमान उच्च पदों पर हैं। यह तथ्य चौंकाने वाला है कि मुस्लिम विरोधी माने जाने वाले नरेंद्र मोदी के गुजरात में सिर्फ 9.1 प्रतिशत मुसलमान होने के बाद भी सरकारी नौकरियों में 5.4 प्रतिशत मुसलमान हैं। यह भी तथ्य है कि वाम दलों की सरकार से पहले सरकारी नौकरियों में ज्यादा मुसलमान थे।

पश्चिम बंगाल में शिक्षा के क्षेत्र में भी मुसलमानों की दशा बेहाल है। जहां पूरे देश में 24 प्रतिशत मुसलमान मैट्रिक कर लेते हैं, वहीं पश्चिम बंगाल में सिर्फ 12 प्रतिशत मुसलमान ही मैट्रिक तक पढ़ पाते हैं। सच्चर समिति की रिपोर्ट कहती है कि पश्चिम बंगाल में औसतन एक बैंक खाते में 30,000 रुपये जमा हैं, लेकिन औसत मुसलमान के खाते में सिर्फ 14,000 रुपये हैं। शिक्षा और रोजगार से पिछड़ा बंगाली मुसलमान इसराईल, फिलस्तीन, बाबरी मसजिद और तस्लीमा नसरीन में ही उलझा रहा। उसकी आंखें तब खुलीं, जब सिंगूर और नंदीग्राम में उसी कॉमरेड के हाथों मारा गया, जिसे वे अपना सबसे बड़ा हितैषी समझते थे। यही वजह है कि पश्चिम बंगाल के मुसलमान दूसरा विकल्प तलाश करने पर मजबूर हो रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस के रूप में उनके पास एक विकल्प मौजूद है। दोनों के बीच समझौता होने से मुसलमानों के वोटों में बिखराव नहीं आएगा। चार दशकों के बाद बंगाल में परिर्वतन की आंधी चली है।

ओपिनियन पोल भी तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस को भारी सफलता मिलने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस को 170 सीटें मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। यदि परिर्वतन हुआ, तो इसमें निश्चित रूप से मुसलमानों की अहम भूमिका होगी। राइटर्स बिल्डिंग में कौन आएगा, यह अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि यदि वामदलों की विदाई होती है, तो इसकी तुलना सोवियत संघ के अभेद्य दुर्ग के ढह जाने से की जाएगी। सोवियत संघ के ढहने के बाद कई मुसलिम रियासतों को आजादी मिलने की तरह ही बंगाल में भी मुसलमानों के शैक्षणिक और आर्थिक विकास की नई राहें खुल सकती हैं। ममता बनर्जी जानती हैं कि गुजरात और बिहार की तरह लंबी पारी खेलने के लिए विकास ही अब एक रास्ता है। यदि विकास का लाभ मुसलमानों को भी मिलेगा, तो वे दूसरी 'नीतीश कुमार' साबित हो सकती हैं।

Comments

  1. हमारे नेता ही हैं जो अपना उल्लू सीधा करने के लिये संप्रदायों, धरमों और जातियों में अलगाव करवाते हैं । काश कि जनता ये समझे और णिल कर अपने वास्तविक हक के लिये लडे ।

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

खुशवंत सिंह की अतृप्त यौन फड़फड़ाहट

अतुल अग्रवाल 'वॉयस ऑफ इंडिया' न्यूज़ चैनल में सीनियर एंकर और 'वीओआई राजस्थान' के हैड हैं। इसके पहले आईबीएन7, ज़ी न्यूज़, डीडी न्यूज़ और न्यूज़24 में काम कर चुके हैं। अतुल अग्रवाल जी का यह लेख समस्त हिन्दुस्तान का दर्द के लेखकों और पाठकों को पढना चाहिए क्योंकि अतुल जी का लेखन बेहद सटीक और समाज की हित की बात करने वाला है तो हम आपके सामने अतुल जी का यह लेख प्रकाशित कर रहे है आशा है आपको पसंद आएगा,इस लेख पर अपनी राय अवश्य भेजें:- 18 अप्रैल के हिन्दुस्तान में खुशवंत सिंह साहब का लेख छपा था। खुशवंत सिंह ने चार हिंदू महिलाओं उमा भारती, ऋतम्भरा, प्रज्ञा ठाकुर और मायाबेन कोडनानी पर गैर-मर्यादित टिप्पणी की थी। फरमाया था कि ये चारों ही महिलाएं ज़हर उगलती हैं लेकिन अगर ये महिलाएं संभोग से संतुष्टि प्राप्त कर लेतीं तो इनका ज़हर कहीं और से निकल जाता। चूंकि इन महिलाओं ने संभोग करने के दौरान और बाद मिलने वाली संतुष्टि का सुख नहीं लिया है इसीलिए ये इतनी ज़हरीली हैं। वो आगे लिखते हैं कि मालेगांव बम-धमाके और हिंदू आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद प्रज्ञा सिंह खूबसूरत जवान औरत हैं, मीराबा

Special Offers Newsletter

The Simple Golf Swing Get Your Hands On The "Simple Golf Swing" Training That Has Helped Thousands Of Golfers Improve Their Game–FREE! Get access to the Setup Chapter from the Golf Instruction System that has helped thousands of golfers drop strokes off their handicap. Read More .... Free Numerology Mini-Reading See Why The Shocking Truth In Your Numerology Chart Cannot Tell A Lie Read More .... Free 'Stop Divorce' Course Here you'll learn what to do if the love is gone, the 25 relationship killers and how to avoid letting them poison your relationship, and the double 'D's - discover what these are and how they can eat away at your marriage Read More .... How to get pregnant naturally I Thought I Was Infertile But Contrary To My Doctor's Prediction, I Got Pregnant Twice and Naturally Gave Birth To My Beautiful Healthy Children At Age 43, After Years of "Trying". You Can Too! Here's How Read More .... Professionally