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टेलीविजन पर कचरा फैलाते हैं स्पीड न्यूज


विनीत कुमार 

स्टार न्यूज़ के कार्यक्रम 24 घंटे 24 रिपोर्टर की नकल करते हुए बाकी के न्यूज़ चैनलों ने भी बीस मिनट में बीस खबरें, खबरें सुपरफास्ट या खबर शतक जैसे कार्यक्रम की शुरुआत की। खबरों पर आधारित ये कार्यक्रम मीडिया से कम आइपीएल की संस्कृति से ज्यादा प्रभावित रहे। कुछ चैनलों पर तो ये कार्यक्रम आइपीएल के दौरान ही शुरु हुए। लेकिन तमाम चैनलों ने स्टार न्यूज़ की नकल तो जरुर कर ली, लेकिन जिस समझ के साथ इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी, वे उससे न केवल अलग हो गए बल्कि खबरों की दुनिया में बेवजह की हड़बड़ी पैदा कर दी। इस हड़बड़ी से चैनलों पर खबर के नाम पर जो शोर पैदा हुआ है,वो ऑडिएंस को परेशान करनेवाला है।

न्यूज़ शतक
24 घंटे 24 रिपोर्टर में आम तौर 24 अलग-अलग खबरें हुआ करती थी जो कि आज भी उसी तरह से है। जब तक एक ही इलाके की कोई बड़ी खबर न हो जाए,उसे दो या तीन खबर नहीं बनाया जाता। इससे इतना जरुर होता कि आधे घंटे में हम न्यूज चैनल के माध्यम से देश और दुनिया की 24 अलग-अलग खबरें जान पाते हैं। स्टार न्यूज का ये कार्यक्रम टीआरपी की चार्ट में चोटी के दस कार्यक्रमों में अक्सर शामिल होता। लिहाजा बाकी चैनलों ने भी इसी पैटर्न पर कार्यक्रम बनाने शुरु किए और तब आजतक ने खबरें सुपरफास्ट शुरु की, आइबीएन7 ने स्पीड न्यूज, इंडिया टीवी ने टी 20, न्यूज24 ने न्यूज शतक और यहां तक कि एनडीटीवी ने भी सुपरफास्ट खबरों में दौड़ लगानी शुरु कर दी। ज़ी न्यूज सालों से देश,विदेश,खेल से जुड़ी 10 बड़ी खबरें प्रसारित करता आ रहा है जो कि ज्यादा संतुलित और देखने लायक है। न्यूज चैनलों के बेहतरीन कार्यक्रमों की लिस्ट बनायी जाए तो उसमें इस कार्यक्रम को जरुर शामिल किया जाएगा। लेकिन 24 घंटे 24 रिपोर्टर की नकल पर बाकी चैनलों पर जितनी भी खबरें बनी है,उससे ऑडिएंस जुड़ने के बजाए उससे किनाराकशी कर लेने में ही अपनी भलाई समझती है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि एंकर्स खबरों को इतनी तेजी में पढ़कर निकलते हैं कि जैसे उन्हें खबरें प्रसारित करने से कहीं ज्यादा इस बात की चिंता और रिकार्ड बनानी है कि वे आधे घंटे में 20, 50 या फिर 100 खबरें प्रसारित करके शतक बना पाते हैं की नहीं। इन चैनलों ने अपने प्रतिस्पर्धी चैनलों से संख्या के आधार पर होड़ लगानी शुरु की और एक-दूसरे से अपने को बेहतर बताने में सिर्फ इस आधार पर जी-जान लगा दी कि वे उनसे कम समय में ज्यादा खबरें प्रसारित करेंगे।

नतीजा ये हुआ कि आज इन सारे चैनलों पर जो खबरें पढ़ी जाती है,उनमें आधा से ज्यादा खबरों को आप समझ ही नहीं पाएंगे कि क्या कहा जा रहा है। एंकर बदहवाश होकर खबरों की ऐसी दौड़ लगाते हैं कि सुननेवाली ऑडिएंस बहुत ही ज्यादा दबाव महसूस करने लग जाती है और सामान्य महसूस नहीं करते। दूसरा, लगे कि ये बहुत जल्दी में पढ़ी जानेवाली खबरें हैं इसलिए उसके साथ जिन ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है,जिस तरह के ग्राफिक्स इस्तेमाल किए जाते हैं,वो अलग से परेशान करनेवाले होते हैं। न्यूज चैनलों में खबरों का विश्लेषण तो पहले से भी नहीं रहा है लेकिन सिर्फ हेडलाइन्स की खबरों का प्रसारित किया जाना,यह अपने आप में न्यूज चैनलों को अधूरा बनाता है। मानो वे स्वयं ही संकेत दे रहे हों कि बाकी की खबरों को विस्तार से जानने के लिए आप अखबार,इंटरनेट या फिर दूसरे माध्यमों की मदद ले। ऐसे में न्यूज चैनल खबरों के मामले में पहले के मामले में पहले से बहुत ही ज्यादा अधूरे और बेतरतीब होते चले जा रहे हैं।

इधर आप इन स्पीड न्यूज की खबरों पर गौर करें जिनमें कि संख्या पर ज्यादा जोर है तो शुरु की चार या पांच खबरें एक ही मुद्दे से जुड़ी होती है। विश्व कप से जुड़ी खबरों पर बात हो रही है तो शुरु के पांच-छह-सात खबरें इसी से जुड़ी होगी। उसी तरह बीच में भी एक ही खबर को तीन-चार बार पढ़ा जाएगा। शुरुआत में जब हमने इन स्पीड न्यूज कार्यक्रमों को देखा तो उसमें काफी विविधता हुआ करती थी। यहां तक कि न्यूज24 ने जब न्यूज शतक की शुरुआत की तो पहले एपीसोड में तकरीबन सौ अलग-अलग खबरें थी और हमारा भरोसा बढ़ा था कि अब टेलीविजन में दुबारा से चार-पांच मुद्दों के अलावे देश और दुनिया से जुड़ी बाकी खबरें भी होगी। शुरुआत के कुछेक एपीसोड के लिए इन चैनलों ने बहुत मेहनत की लेकिन अब वही छ-सात मुद्दों को जोड़कर सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए सौ,पचास या बीस खबरें प्रसारित करने लग गए हैं। ऐसा करने से हमें संख्या बदल जाने के बाद भी लगता है कि एक ही खबर की आधी-अधूरी और जैसे-तैसे गुजर जानेवाली खबरें देख रहे हैं। इस दौरान विजुअल्स का असर बिल्कुल खत्म होता जा रहा है जबकि टेलीविजन अंततः विजुअल माध्यम है। इन कार्यक्रमों के फेर में टेलीविजन की संभावना खत्म होती है।

बहरहाल न्यूज से जुड़े ऐसे कार्यक्रमों की शुरुआत के पीछे के तर्क को समझने की कोशिश करें तो चैनलो ने घोषित कर दिया है कि हम ऑडिएंस के पास विस्तार से खबरें देखने का समय नहीं होता। ऐसे में जरुरी है कि उन्हें कम समय में ज्यादा से ज्यादा खबरें दिखाई जाए। लेकिन अगर आप चैनलों के रवैये पर गौर करें तो वो हमारी चिंता से कहीं ज्यादा इस बात को लेकर परेशान नजर आते हैं कि कैसे देश और दुनिया की खबरों को जल्दी-जल्दी आनन-फानन में निबटाकर वॉलीवुड, क्रिकेट और रियलिटी शो से जुड़ी खबरों के लिए स्पेस तैयार करें। आप गौर करें तो न्यूज़ चैनल्स

 ऐसा करके अपनी जिम्मेदारी से पिंड छुड़ाकर टेलीविजन को पेड या स्पांसर प्रोग्राम का माध्यम बनाने में जुड़े हैं। इस पर गंभीरता से बात करने की जरुरत है।( मूलतः प्रकाशित- जनसंदेश टाइम्स, 23 मार्च 2011)  हुंकार ब्लॉग से साभार 

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--- संजय सेन सागर

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