डॉ. सत्यनारायण सोनी से ख्याली की बातचीत
संवेदनशील और कामयाब इंसान बनाना ही हमारा मकसद : ख्याली
ओशो ने कहा है कि जो हंसते हैं तो मानो ईश्वर की प्रार्थना करते हैं, मगर यहां यह भी कहा जा सकता है कि जो हंसाते हैं उनके लिए ईश्वर स्वयं प्रार्थना करता है। हंसाने वाली ऐसी ही जानी-मानी शख्सियत ख्याली सहारण से आज हमें रू-ब-रू होने का मौका मिल रहा है। वे इसी एक अप्रेल से अपने गांव 18 एस पीडी में सैनिक स्कूल खोल रहे हैं और जिसके चेयरमैन भी वे खुद हैं। अप्रेल फूल के दिन शुरुआत को आप मजाक में न लें यह हकीकत है।
ख्याली जी, लोगों को हंसाते-हंसाते यह क्या मन में आया और कैसे आया ?
कहा जाता है कि अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल को, मुसाफिर मिलते गए और कारवां बढ़ता गया। मेरे मन में था कि यार, मैं लाफ्टर चैंपियन बन गया। टीवी आर्टिस्ट बन गया। कर्जे उतर गए। मेरे मां-बाप का घर बन गया। मैंने अपना घर ले लिया बोम्बे में, लेकिन ऊपर वाले की कृपा इतनी थी कि पैसे आने बंद ही नहीं हो रहे थे। ज्यादा चीजें खरीदने या सुख भोगने की ललक नहीं है। मीडियम परिवार में रहकर ज्यादा मजा आता है। तो मैंने सोचा- कुछ किया जाए क्योंकि धन इकट्ठा करने का मुझे शौक नहीं है। सोचा, क्यूं ना ऐसा किया जाए कि आगे बुढ़ापा भी अच्छा हो जाए। मुंबई में रहते हुए मैंने अनुभव किया है कि आर्टिस्ट जब रिटायर हो जाता है तो उसकी जिंदगी बहुत बुरी होती है। (ठहाके के साथ) मैं रिटायर नहीं होना चाहता और कभी बूढ़ा भी नहीं होना चाहता। खैर, वैसे आप जैसे किसी सयाने ने मुझे बताया है कि मैं अस्सी साल तक जीऊंगा। सोलह साल तक स्ट्रगल करके बोम्बे पहुंचा हूं तो क्यों न बुढ़ापे में आराम किया जाए। मैंने सोचा, एक बहुत अच्छा-सा कैंपस हो। एक इंस्टीट्यूट हो जहां बच्चे आएं। उनको हम बड़ा बनने की सलाह दें। उनको अच्छे तरीके से पढ़ाएं कि मां-बाप की सेवा कैसे करते हैं....कि समाज को, देश को आगे कैसे बढ़ाना है। मतलब देश के जिम्मेदार लोग तैयार हों।
वहां पर मंदिर हो, घोड़े भी हों, वहां पर स्वीमिंग पूल हो, वहां पर हर तरह के गेम हों, रोजाना नए-नए चेहरे आएं और उनको हम नया-नया ज्ञान दें। लोगों से सीखें, उनको सिखाएं। दूसरा मेरा ये मानना था कि मैं बच्चों के साथ जब होता हूं तो हमेशा बच्चा ही रहता हूं। प्लस टू के बाद जब वे बच्चे चले जाएंगे तो दूसरे बच्चे आ जाएंगे और इस प्रकार मैं महसूस करता रहूंगा कि मैं भी सोलह साल का ही हूं।
आजकल बच्चे पर पढ़ाई एक बोझ की तरह से सवार है। मतलब उस बोझ को दूर करने का बीड़ा उठाया है आपने ?
बिलकुल। बच्चे हंसते-हंसते स्कूल जाएंगे। यहां तक कि बच्चा पेरेंट्स को तंग करेगा कि मुझे स्कूल छोड़ के आओ। क्योंकि वहां बच्चों के इतने और ऐसे-ऐसे गेम हैं कि बालक को पता ही नहीं लगेगा कि वह पढ़ रहा है। खेल-खेल में ही पढ़ाई हो जाएगी। अमूमन देखा गया है कि बालक पर पढ़ाई एक बोझ की तरह लाद दी जाती है और उससे हम उसका बचपन छीन लेते हैं। क्योंकि हमें पढ़ाने का तरीका ही नहीं है। हम बच्चों को बोलते हैं कि पढ़ो-पढ़ो, मगर क्या पढ़ना है, कैसे पढ़ना है, यह बच्चे को पता ही नहीं। इस स्कूल में बालक का बचपना बरकरार रहेगा और पढ़ाई भी बेहद स्तरीय होगी। हमारा मकसद मशीन तैयार करना नहीं, अपितु एक संवेदनशील और कामयाब इंसान बनाना हमारा पहला मकसद होगा। दूसरा ये है कि होमवर्क का बोझ भी हम बालक पर नहीं लादेंगे। होमवर्क के रूप में बालक को महज पांच मिनिंग दिए जाएंगे और सालभर में वह अंग्रेजी के एक हजार शब्दों से परिचित हो जाएगा।
वैसे सैनिक स्कूलों में तो छठी से बारहवीं तक की ही क्लासें होती हैं, मगर यहां आप प्राइमरी से शुरू करने की बात कर रहे हैं ?
यह दुनिया का पहला ऐसा सैनिक स्कूल होगा जिसमें प्राइमरी सैक्शन भी होगा। और इसका सबसे अधिक लाभ मेरे इलाके को ही मिलेगा, क्योंकि इस सैक्शन में स्थानीय बालक ही आ सकेंगे। हम प्राइमरी सैक्शन के बच्चों को हॉस्टल में नहीं रखेंगे, क्योंकि हम चाहते हैं कि बच्चा अपने घर-परिवार, अपनी भाषा और अपनी संस्कृति से भी जुड़ा रहे। इस उम्र के बालक को मां-बाप का दुलार चाहिए। हम नहीं चाहते कि पढ़-लिखकर कोई अपने परिवेश से कट जाए। इसलिए हम बालक को अपनी भाषा और संस्कृति से प्रेम करना सिखाएंगे। मां, मातृभाषा और मातृभूमि का दर्जा स्वर्ग से भी ऊंचा होता है और मातृभाषा के माध्यम से दी गई शिक्षा ही अधिक कारगर होती है। राजस्थान में यह व्यवस्था केवल हम दे रहे हैं। बच्चा जब स्कूल आएगा और जिस भाषा के ज्ञान के साथ आएगा हम वहीं से शुरू करेंगे। इसके लिए लोकप्रचलित राजस्थानी बाल-गीतों और कविताओं की तर्ज पर हम ऐसी सामग्री तैयार करवा रहे हैं जिनको गुनगुनाते हुए बालक अंग्रेजी भी सीखेगा, हिंदी भी सीखेगा और गणित, विज्ञान, सामाजिक और यहां तक कि जी.के. भी सीखेगा।
हम शिक्षण की अत्याधुनिक तकनीकों का बेहतर इस्तेमाल करेंगे और ऑडियो-विजुअल के साथ-साथ ऑनलाइन टीचिंग की व्यवस्था भी रहेगी। इसके लिए परिसर में बाकायदा एक टॉवर लगा रहे हैं जिससे पूरे परिसर में कहीं भी इंटरनेट चलाया जा सकेगा। और इस प्रकार बालक को लगेगा कि वह यहां मनोरंजन करने आया है और एक नई दुनिया से रू-ब-रू भी हो रहा है।
तो क्या मानते हैं आप कि आपके सपनों का स्कूल बन जाएगा ?
बन ही तो गया है। मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं। मैं कभी निराश नहीं होता। हमेशा यही सोचता हूं कि यस, ये होगा और बहुत अच्छा होगा। क्योंकि हम दिल से कर रहे हैं। जी-जान से कर रहे हैं। पहले भी मेरे सपने पूरे हुए हैं और ईश्वर यह सपना भी जरूर पूरा करेगा। मैं आपको बता दूं कि अभी तक हमने कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया है और हमारे पास दो सौ से ज्यादा इन्क्वायरी है, जबकि सौ ही बच्चे लेने हैं। फिर भी हम प्रचार कर रहे हैं ताकि लोगों को पता लगे और जो असली बच्चा है, जिसमें प्रतिभा छिपी हुई होती है, वो हमारे तक पहुंचे।
आपकी बिजी लाइफ से हम बखूबी परिचित हैं। फिर कैसे वक्त दे पाएंगे इतना ?
बिलकुल, मैं समय दूंगा। पहले मैं बहुत ज्यादा काम करता था वहां पर, वो मैं आधा कर सकता हूं। मैं साल में दो सीरियल कर सकता हूं, मैं साल में दो फिल्में ही करके खुश हूं। उसमें मैं इतना ज्यादा बिजी हो गया था कि घर में टाइम नहीं दे पाता था। यह पंगा मैंने इसीलिए ही लिया है कि मैं अपने घर में, अपने परिवार में, अपने बच्चों के साथ भी थोड़ा-बहुत रह सकूं।
ऐक्टिंग या कॉमेडी करते-करते इतने बड़े इंस्ट्यूट को चलाने के लिए मैनेजमेंट के अनुभव की दरकार नहीं समझते आप ?
चंडीगढ़ शहर में 6 साल तक मैंने अपनी इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी चलाई है, जिसमें बड़ी-बड़ी कंपनियों को इवेंट करने का मुझे मौका मिला। बड़े-बड़े स्टारों को मैनेज करने का मौका मिला। सूरजकुंड मेले को मैंने मैनेज किया है, कुल्लू दशहरा मेले को मैंने मैनेज किया है। मैं पढ़ा तो नहीं सकता, लेकिन मैनेज बहुत अच्छे तरीके से कर सकता हूं। मेरा 12 साल का एक्सपीरिएंस है। मेरा मुंबई में प्रोडक्शन हाउस है, ओएसिस प्रोडक्शन हाउस के नाम से, जिसे मैं खुद मैनेज करता हूं। मैं खुद दसवीं तक पढ़ा हूं मगर मेरे पास जो मार्केटिंग वाले हैं, वे सब एमबीए हैं, उनकी भी मैं क्लासें लेता हूं कि अमुक कम्पनी से आपको इस तरह से और ये-ये बातें करनी हैं। तो स्कूल को मैनेज करना मेरे लिए ज्यादा मुश्किल नहीं होगा।
आप नहीं मानते कि आपके सपनों के अनुरूप स्कूल को चलाने के लिए मतलब बच्चों को पढ़ाने के लिए खास किस्म के शिक्षकों की दरकार रहेगी ?
हम स्टाफ का चयन बहुत सोच-समझकर कर रहे हैं। हम डिग्री को महत्त्व नहीं देंगे, हमें बच्चे की मानसिकता को समझने वाले शिक्षकों की जरूरत है। बाकायदा टीचर्स की क्लास होगी। बाल-मनोविज्ञान के जानकार लोग उनको प्रशिक्षित करेंगे। समय-समय पर सेलिब्रिटीज भी आते रहेंगे जिनमें फिल्मी कलाकार, सेना के अधिकारी, ओलम्पिक के चैम्पियन, क्रिकेटर और प्रशासनिक अधिकारी भी होंगे। ताकि बच्चों का मनोबल बढ़ता रहे और उनको लगे कि ये हमसे ज्यादा दूर नहीं हैं। बच्चों को स्टार बनना, ओलम्पिक जीतना या क्रिकेटर बनना और कोई बड़े ओहदे तक जाना बड़ी बात न लगे। वे इस सबके प्रति उत्साहित रहें।
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परलीका, वाया-गोगामेड़ी, जिला- हनुमानगढ़-335504
mob.n. 09460102521
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर