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बेबसी




लोग रूठ जाते हैं मुझसे ,
                 और मुझे मनाना नहीं आता !
मैं चाहती  हूँ क्या ?
                     मुझे जताना नहीं आता !
आँसुओं को पीना पुरानी आदत है ,
                   .मुझे  आंसू बहाना नहीं आता !
लोग कहते हैं मेरा दिल है पत्थर का ,
            इसलिए इसको पिघलाना नहीं आता !
अब क्या कहूँ मैं............
                 क्या आता है, क्या नहीं आता !
बस मुझे मौसम की तरह ,
           बार - बार बदल जाना नहीं आता !  
अब क्या करे कीससे कहें हम ,
         हमे तो किसी भी तरह मनाना नहीं आता !

Comments

  1. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

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  2. manane ka yah andaj bhi anokha hai ki yah kahna ki hume to manana hi nahi aata .bahut khoob .

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  3. बेहद खूबसूरत रचना…………पसन्द आयी।

    ReplyDelete
  4. अच्छे भाव हैं.....

    ReplyDelete
  5. शुक्रिया दोस्तों !

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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