हाँ आपको सुनने में अटपटा जरूर लगा होगा . हाँ होगा भी कैसे नहीं है भी अटपटा .अगर इसे आधुनिकता की नयी खोज कहा जाये तो तनिक भी झूठ न होगा . पहले वेश्यावृत्ति का शब्द मात्र महिलाओं के लिए प्रयोग किया जाता था , लेकिन अब जब देश विकाशसील है तो बदलाव आना तो लाजिमी हैं ना. अगर देखा जाये तो वेश्या मतलब वो जिन्हें पुरुष अपने वासना पूर्ति के लिए प्रयोग करते थें , इन्हे एक खिलौना के माफिक प्रयोग किया जाता था, वाशना शांत होने के बाद इन्हे पैसे देकर यथा स्थिति पर छोड़ दिया जाता था . पुरुष वर्ग महिलाओं प्रति आकर्षित होते थे और ये अपनी वासना पूर्ति के लिए जिन्हें वेश्या कहते हैं, इनके माध्यम से अपनी शारीरिक भूख शांत करते थे . लेकिन अब समय बदल गया है पश्चिम की आधी ऐसी आई वहां की प्रगतिवादी महिलाओं ने कहा कि कि ये क्या बात हुयी , पुरुष जब चाहें अपनी वासना मिटा लें परन्तु महिलाएं कहाँ जाये ???? तत्पश्चात उदय हुआ है जिगोलो या पुरुष वेश्याओं का .
आज ये हमारें यहाँ खासकर बड़े शहरों में इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही . साथ ही इनकी मांग भी दिन व दिन बढती ही जा रही है . जिगोलो का उपयोग महिलाएं अपनी वासना पूर्ति के लिए करती हैं. जब महिलाएं अपने देह का व्यापार करके पैसे कमा सकती हैं तो पुरुष क्यूँ नहीं, परिणाम वेश्याओं के समाज में नयी किस्म . आखिर हो भी क्यूँ न , इसमे पुरुष वर्ग फायदे में भी तो रहता है , एक तीर से दो निशाना जो हो जाता है, इन्हे आनंद तो मिलता ही है साथ ही पैसे भी वह भी अच्छे खाशे .
पुरुष वेश्याओं का प्रयोग ज्यादातर अकेली रहने वाली ,उम्रदराज महिलाएं या अपने पति से संतुष्ट न रहने वाली महिलाएं करती हैं . इनका चलन मेट्रो शहरों में ज्यादा है कारण इनका वहां आसानी से उपलब्धता .
ये नयी किस्म की गंदगी पश्चिम सभ्यता की देन है, यह वहां के नग्नता का परिचायक है . बङे शहरों में इनकी मांग ज्यदा इसलिए क्योंकि यहाँ की महिलाएं ज्यादा आधुनिक हैं .उन्मुक्त हो चुकी महिलाओं को अपनी वासना की पूर्ति के लिए जिगोलो के रुप में साधन मिला. भारत पश्चिम सभ्यता का हमेशा से ही नक़ल करता आया है, तो यहाँ पिछे रहने के कोई कारण ही नहीं है . हमारे देश के युवा उनके ही पदचिन्हों पर चल रहे हैं और इसका परिणाम किसी को बताने की जरूरत नहीं हैं , इतनी स्त्रियों से संबंध बनाने के बाद अक्सर उनमें से ज्यादातर एड्स या अन्य घातक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं फिर चाहे पैसे कमाने के लिए अपनी मर्यादा ही क्यों न दाव पर लगा देनी पड़े .आज युवा अच्छे पैसे के लिए वह सबकुछ कर रहा है जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. शायद आधुनिकता की अन्धता यही है.समलैंगिक पुरुषों और देह व्यापार से जुड़े पुरुषों के लिए काम कर रहे हमसफ़र ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक राव कवि का मानना है कि "ये जिगोलो भी बाज़ार की वस्तु है जो समाज से आ रही माँग को पूरा कर रहे हैं. ये समाज के उच्चवर्ग की वस्तु बन गई है. समाज में माँग थी, जिसकी भरपाई करने के लिए सप्लाई आ गई है. इसने एक नया बाज़ार तैयार किया जो दोनों ही पक्षों की ज़रूरत को पूरा कर रहा है.
इन सबके आगे इस परीदृश्य को देखा जाये तो ये विकास की ये आधुनिकताहमारे सभ्य समाज को न सिर्फखोखला बल्कि विक्षिप्त भी कर रहा है . युवा पीढ़ी को कहा जाता है कि वह भारत का भविष्य सवारेगा वह अब ऐसे दलदल में फंशा जा रहा है जहाँ से इसकी कल्पना करना इनके साथ बेईमानी होगी . रोजगार की कमी को भी इसका कर्णधार कहा जा सकता है, लेकिन ये क्या जिस पीढ़ी को हमसे इतनी उम्मीद है उसके हौशले इतनी जल्द पस्त हो जाएंगे ऐसा कभी सोचा न था. भारत में समलैंगिकता और वेश्यावृत्ति तथा लिव इन रिलेशनशिप के प्रति दृष्टिकोण बदलने की बात की जा रही है। पहले ही इन मुद्दों पर बहुत विवाद हो चुका है। ऐसे में इस तरह के दूषित मानसिकता को रोकना अतिआवश्यक है । अगर देखा जाए तो मीडिया इनमे महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है और पाश्चात की चमचागिरी मे लगा है,ऐसे में फैसला आपके हाथ में है।
महिलाओं की स्वैराचारिता का आधुनिकता या सम्पन्नता से कोई वास्ता नहीं है. पुरातन काल में अप्सराएँ, नगर वधुएँ, यक्षणियाँ तथा राक्षसणियाँ भी देहानंद हेतु मनचाहे साथी के साथ रमण हेतु स्वतंत्र होती थीं. यह अर्थ प्रधान युग है. माँग और पूर्ति के नियम के अनुसार जिसे जो चाहिये जहाँ से मिले ले रहा है. अर्थप्रधान जीवन पद्धति में नैतिकता असमर्थों द्वारा आत्म संतोष के लिये ढोई जाती है और समर्थ होते ही नैतिकता को त्याग दिया जाता है. नई पीढ़ी साधुवाद की पत्र है की वह सत्य को स्वीकारकर कहने की हिम्मत रखती है अन्यथा परदे की आड़ में सब कुछ पहले भी होता ही था.
ReplyDeleteसच कहा मिथिलेश भाई कि इस तरह के दूषित मानसिकता को रोकना अतिआवश्यक है ।
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