Skip to main content

सड़क नहीं ट्रांसपोर्टेशन चाहिए

हमारे हुक्मरानों का दूरदृष्टि दोष खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। सरकार सड़कों के निर्माण पर एक लाख करोड़ रुपए खर्च करना चाहती है। केंद्रीय मंत्री कमलनाथ ने जब सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय संभाला था, तब उन्होंने यह भारी-भरकम घोषणा की थी। उनकी मंशा रोज 20 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने की थी। आप कह सकते हैं कि आखिर इसमें हर्ज क्या है।

सड़कें गांवों को आपस में जोड़ती हैं और शहरों के भीतर अंदरूनी यातायात की स्थिति को भी सुधारने का काम करती हैं। यहां मैं एक सुधार करना चाहूंगा। मंत्री जी की यह घोषणा गांवों या शहरों के संबंध में नहीं, बल्कि राजमार्गो के संबंध में है। यही नहीं, यह खर्च नए राजमार्गो के निर्माण पर नहीं बल्कि उनके विस्तार पर किया जा रहा है। फोरलेन हाईवे को सिक्सलेन हाईवे में बदला जा रहा है।

पहला सवाल तो यही उठता है कि आखिर केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजमार्गो के निर्माण पर इतना पैसा क्यों खर्च कर रही है, जबकि देश का आम आदमी इन राजमार्गो का बहुत कम इस्तेमाल करता है? भारत में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सड़कों का नेटवर्क है। हमारे यहां 33 लाख किलोमीटर के दायरे में सड़कों का जाल फैला हुआ है। इनमें राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई महज 70 हजार 548 किलोमीटर है यानी सड़कों के कुल नेटवर्क का दो प्रतिशत। इसका मतलब है कि सरकार इतनी बड़ी रकम महज दो फीसदी सड़कों की सजावट पर खर्च करने जा रही है।

इसलिए सवाल उठता है कि सरकार राष्ट्रीय राजमार्गो पर इतनी बड़ी रकम क्यों खर्च कर रही है? यदि एक लाख करोड़ रुपए देश के एक अरब लोगों में समान रूप से बांट दिए जाएं तो प्रत्येक को एक हजार रुपए मिलेंगे। इससे मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी) को दस साल तक फंड मुहैया कराया जा सकता है। जेएनएनयूआरएम (जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूअल मिशन) के तहत सरकार ने शहरी सड़कों पर जितनी राशि खर्च की है, यह रकम उससे कई गुना अधिक है।

ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि हमारे बाबुओं और मंत्रियों को यह बात ज्यादा अहमियत वाली लगती है कि उनके मंत्रालय या महकमे ने कितनी राशि खर्च की है।

यदि मंत्रालय के पास पैसा न हो तो वे इन विस्तार परियोजनाओं को निजी कंपनियों के हवाले कर देंगे जो सड़क का इस्तेमाल करने वाले हर व्यक्ति से पैसा वसूलेंगी। एक मायने में राजमार्गो पर खर्च की जाने वाली रकम आपकी ही जेब से निकाली जा रही है, क्योंकि इन पर सफर करने पर आपको टोल टैक्स भरना होगा।

इनके जरिए आने वाली कमोडिटी की ज्यादा कीमत भी आपको ही चुकानी होगी। निजी कंपनियां सड़कों का पुनर्निर्माण करें या नहीं, वे इन पर टोल प्लाजा जरूर खड़े कर देंगी। मंत्रालय द्वारा उन्हें टोल टैक्स वसूलने का लाइसेंस मुहैया करा दिया जाएगा। सरकार के इस निर्णय पर इसलिए भी सवालिया निशान लगाए जाने चाहिए क्योंकि इससे मंत्रालय को यह छूट मिल जाएगी कि वह निजी कंपनियों को आम आदमी से पैसा वसूलने का लाइसेंस मुहैया करा सके।

यदि सरकार वास्तव में यात्री परिवहन या माल परिवहन जैसी बुनियादी समस्याओं का समाधान करना चाहती तो वह इससे कहीं अधिक स्थायी समाधान की तलाश करती। मंत्रालय को सड़क परिवहन मंत्रालय कहा जाता है, लेकिन उसका ध्यान परिवहन पर कम और सड़कों पर अधिक केंद्रित है। एक तरफ जहां सड़कों के निर्माण और विस्तारीकरण पर एक लाख करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं, वहीं सार्वजनिक परिवहन पर महज 74 करोड़ रुपए ही खर्च किए जाएंगे।

माल या यात्रियों के परिवहन के लिए डीजल या पेट्रोल का उपयोग करने वाले वाहनों को व्यावहारिक विकल्प नहीं कहा जा सकता। दुनियाभर में इस तथ्य को स्वीकार कर लिया गया है कि परिवहन के लिए बिजली से चलनी वाली ट्रेनें सबसे अच्छा माध्यम हैं। सड़क परिवहन में बुनियादी ढांचे पर इतना पैसा खर्च करने के बावजूद तेल पर हमारी निर्भरता बनी रहती है। वहीं यह प्रणाली प्रदूषण में भी इजाफा करती है

दूसरी तरफ तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। कीमतें फिर से 90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को छू चुकी हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि ईंधन के नए स्रोत खोजे नहीं जा सके हैं। तेल के स्रोत खाली हो रहे हैं और उनसे होने वाला उत्पादन दिन-ब-दिन घटता जा रहा है। कॉपरेरेट्स अब शेल ऑयल जैसे नए स्रोत खोजने में मुस्तैदी से जुटे हुए हैं।

लेकिन यह तो तय है कि तेल की कीमतें अब कभी एक स्तर से नीचे नहीं जाएंगी, न ही मौजूदा स्रोत तेल की मांग की आपूर्ति कर पाने में सक्षम होंगे। अब तो बिजली की आपूर्ति भी स्थानीय रूप से उत्पादित कोयले से की जा रही है और यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहेगी।

इन हालात में राष्ट्रीय राजमार्गो के विस्तार के बजाय माल और यात्री परिवहन के लिए रेल कॉरीडोर का निर्माण करना कहीं बेहतर होगा। इस तरह की परियोजना पर काम करने वाली शासकीय एजेंसियों को धनराशि की दरकार है।

दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरीडोर में माल परिवहन के लिए भी कॉरीडोर का निर्माण किया जा रहा है। इस समूची परियोजना के लिए चार लाख करोड़ रुपयों की जरूरत होगी और इतनी धनराशि जुटाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में सड़क परिवहन मंत्रालय कॉरीडोर के निर्माण के लिए धनराशि क्यों नहीं प्रदान कर सकता?

राष्ट्रीय राजमार्गो पर यात्री परिवहन का हिस्सा 500 किलोमीटर से भी कम दायरे में केंद्रित है। इस लिहाज से भी इलेक्ट्रिफाइड रेलवे या मेट्रो परिवहन कहीं ज्यादा दक्ष और प्रभावी प्रणाली है। अब तो राज्य सरकारें और नगरीय निकाय भी इसे समझ चुके हैं कि लोक परिवहन के लिए मेट्रो से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता। लगता है कि सड़क परिवहन मंत्रालय आज भी 19वीं सदी की मानसिकता से आगे नहीं बढ़ पाया है, जब सड़कें ही परिवहन का एकमात्र माध्यम हुआ करती थीं।

सरकारी घोटालों को जनता के धन का दुरुपयोग बताया जाता है और उनके लिए सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। राजमार्गो के विस्तार की परियोजना को भी इसी श्रेणी में रखा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप कर मंत्रालय की प्राथमिकताएं स्पष्ट करनी चाहिए, वरना आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।
yatish@bhaskarnet.com
भास्कर से साभार

Comments

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

खुशवंत सिंह की अतृप्त यौन फड़फड़ाहट

अतुल अग्रवाल 'वॉयस ऑफ इंडिया' न्यूज़ चैनल में सीनियर एंकर और 'वीओआई राजस्थान' के हैड हैं। इसके पहले आईबीएन7, ज़ी न्यूज़, डीडी न्यूज़ और न्यूज़24 में काम कर चुके हैं। अतुल अग्रवाल जी का यह लेख समस्त हिन्दुस्तान का दर्द के लेखकों और पाठकों को पढना चाहिए क्योंकि अतुल जी का लेखन बेहद सटीक और समाज की हित की बात करने वाला है तो हम आपके सामने अतुल जी का यह लेख प्रकाशित कर रहे है आशा है आपको पसंद आएगा,इस लेख पर अपनी राय अवश्य भेजें:- 18 अप्रैल के हिन्दुस्तान में खुशवंत सिंह साहब का लेख छपा था। खुशवंत सिंह ने चार हिंदू महिलाओं उमा भारती, ऋतम्भरा, प्रज्ञा ठाकुर और मायाबेन कोडनानी पर गैर-मर्यादित टिप्पणी की थी। फरमाया था कि ये चारों ही महिलाएं ज़हर उगलती हैं लेकिन अगर ये महिलाएं संभोग से संतुष्टि प्राप्त कर लेतीं तो इनका ज़हर कहीं और से निकल जाता। चूंकि इन महिलाओं ने संभोग करने के दौरान और बाद मिलने वाली संतुष्टि का सुख नहीं लिया है इसीलिए ये इतनी ज़हरीली हैं। वो आगे लिखते हैं कि मालेगांव बम-धमाके और हिंदू आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद प्रज्ञा सिंह खूबसूरत जवान औरत हैं, मीराबा

Special Offers Newsletter

The Simple Golf Swing Get Your Hands On The "Simple Golf Swing" Training That Has Helped Thousands Of Golfers Improve Their Game–FREE! Get access to the Setup Chapter from the Golf Instruction System that has helped thousands of golfers drop strokes off their handicap. Read More .... Free Numerology Mini-Reading See Why The Shocking Truth In Your Numerology Chart Cannot Tell A Lie Read More .... Free 'Stop Divorce' Course Here you'll learn what to do if the love is gone, the 25 relationship killers and how to avoid letting them poison your relationship, and the double 'D's - discover what these are and how they can eat away at your marriage Read More .... How to get pregnant naturally I Thought I Was Infertile But Contrary To My Doctor's Prediction, I Got Pregnant Twice and Naturally Gave Birth To My Beautiful Healthy Children At Age 43, After Years of "Trying". You Can Too! Here's How Read More .... Professionally