आज हम सागर किनारे आये हैं
कुच्छ उसकी और कुच्छ अपनी सुनाने लाये हैं !
कुच्छ उसकी और कुच्छ अपनी सुनाने लाये हैं !
किसको फुर्सत है इस भरी दुनिया मै ,
इसलिए सिर्फ तन्हाई ही साथ लाये हैं !
जानते हैं हम की वो भी अकेला है !
क्युकी दुनिया तो भीड़ भरा मेला है !
सब तेरे पहलु मै आके चले जाते हैं !
अपना हर दर्द तुझको सुना जाते हैं !
शायद तेरी ख़ामोशी का फायदा उठाते हैं !
तेरे भीतर के दर्द को न जान पाते हैं !
तेरी हिम्मत की हम दाद देते हैं !
फिर भी तुझसे ये राज़ आज पूछते है !
क्या एसी बात है की इतना खामोश है तू !
हम तो थोड़े से गम मै ही टूट जाते हैं !
तेरी लहरों से तो हमे डर लगता है !
फिर भी तुझमे समां जाने का दिल करता है !
ना जाने किस किनारे मै ले जाएँगी ये लहरें !
बस तुझसे बिझ्ड़ने का ही डर रहता है !
बस तुझसे बिझ्ड़ने का ही डर रहता है !
अरे वाह मीनाक्षी जी आपने तो समा बाँध दिया ...बहुत ही ख़ूबसूरत रचना...इधर भी पधारें
ReplyDeleteधर्म, अंधविश्वास या बेवकूफी
अरे वाह मीनाक्षी जी
ReplyDeleteअहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं