सलामे मुहब्बत कहते है...
बड़े मौज से रहते है॥
ध्यान लगा के पढ़ते है॥
बुरे कर्म से डरते है...
लड़की बाज़ी से दूर है रहते॥
गम की छाया नज़दीक न आती॥
न आती है किसी की याद ॥
न बीती बाते हमें रुलाती॥
दिखती उसकी सूरत तब॥
छुप के हम हम निकलते है॥
सलामे मुहब्बत कहते है...
बड़े मौज से रहते है॥
न तो किसी का चेहरा ,,आँखों पर मुस्काता है...
न तो किसी को दिल दिया ,,न प्रलयकाल रिसियाता है...
अपने ही आन मान पे , अपने आप उछलते है॥
सलामे मुहब्बत कहते है...
बड़े मौज से रहते है॥
कभी कभी सुन्दरियों की टोली..मुझपे ताना कसती है॥
पता नहीं क्या कह जाती है..बादल जैसे बरसती है॥
मेरे लबो के फूल तो कभी कभी फिसलते है॥
सलामे मुहब्बत कहते है...
बड़े मौज से रहते है॥
बड़े मौज से रहते है॥
ध्यान लगा के पढ़ते है॥
बुरे कर्म से डरते है...
लड़की बाज़ी से दूर है रहते॥
गम की छाया नज़दीक न आती॥
न आती है किसी की याद ॥
न बीती बाते हमें रुलाती॥
दिखती उसकी सूरत तब॥
छुप के हम हम निकलते है॥
सलामे मुहब्बत कहते है...
बड़े मौज से रहते है॥
न तो किसी का चेहरा ,,आँखों पर मुस्काता है...
न तो किसी को दिल दिया ,,न प्रलयकाल रिसियाता है...
अपने ही आन मान पे , अपने आप उछलते है॥
सलामे मुहब्बत कहते है...
बड़े मौज से रहते है॥
कभी कभी सुन्दरियों की टोली..मुझपे ताना कसती है॥
पता नहीं क्या कह जाती है..बादल जैसे बरसती है॥
मेरे लबो के फूल तो कभी कभी फिसलते है॥
सलामे मुहब्बत कहते है...
बड़े मौज से रहते है॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर