साकी शराब हाथ ले॥
होठो पे गिरातीहो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
आँखों के इशारों से पास बुलाती हो॥
कुछ बात नहीं कहती क्यों शर्माती हो॥
फिर दिल को तोड़ देती करीब नहीं आती हो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
बाते बनाती खूब हो रूप है शलोना॥
मेरा दिल बोलता है तुम कुछ कहो न॥
जगा के यूं उमंगें क्यों भूल जाती हो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
जब टूटता है दिल तो धुधाता सहारा॥
कोई नहीं दिखाता सामीप न किनारा॥
गम के दिनों में क्यों नज़र आती हो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
मुझसे तो तो पूछिये हम कैसे जी रहे है॥
साथी समझ शराब को हम पी रहे है॥
तोड़ के वे बंधन क्यों पछता रही हो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
होठो पे गिरातीहो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
आँखों के इशारों से पास बुलाती हो॥
कुछ बात नहीं कहती क्यों शर्माती हो॥
फिर दिल को तोड़ देती करीब नहीं आती हो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
बाते बनाती खूब हो रूप है शलोना॥
मेरा दिल बोलता है तुम कुछ कहो न॥
जगा के यूं उमंगें क्यों भूल जाती हो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
जब टूटता है दिल तो धुधाता सहारा॥
कोई नहीं दिखाता सामीप न किनारा॥
गम के दिनों में क्यों नज़र आती हो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
मुझसे तो तो पूछिये हम कैसे जी रहे है॥
साथी समझ शराब को हम पी रहे है॥
तोड़ के वे बंधन क्यों पछता रही हो॥
होता हूँ नशा में जब॥
क्यों दूर जाती हो॥
नशे से दूर ही अच्छे है
ReplyDeleteaap sahi kah rahe hai sajid ji,,,,
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