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लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं,

सादर प्रणाम,


आज ब्लोगोत्सव के नौवें दिन अर्थात दिनांक 03.05.2010 के संपन्न कार्यक्रम का लिंक-

आज किसी भी संस्कृति की शुचिता की बात करना बेमानी ऒर ग़ॆरजरूरी हॆ...!



http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post.html


साहित्य ऒर संस्कृति को हाशिए की ओर धकेलने की कोशिश की जा रही : दिविक रमेश

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post.html


साहित्य को पुरस्कृत करना मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों की पहचान को दर्शाता है।

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_02.html


श्री राम शिव मूर्ति यादव का आलेख :साहित्य में पुरस्कारों की राजनीति

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_03.html


अपने रामपाल भइया भी,हाथी पर चढ़े मिलेंगे.......!"

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_03.html


विनोद कुमार पांडेय की कविता :राजनीति और फिल्मी सितारे

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_7777.html


दिये की लौ सा प्रकाशित ये अनोखा बंधन ........!

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3151.html


जंग--आजादी में क्रांतिकारियों की भूमिका : अमित कुमार

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4002.html


मैं लगभग बेसुध सा तत्क्षण उनके पास पहुंचने के लिए अधीर हो उठता हूं....!

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6497.html


अमिताभ श्रीवास्तव की कविता :पिताजी

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_2562.html


जिन्होंने सशस्त्र क्रान्ति द्वारा अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालकर स्वराज्य प्राप्ति का सपना देखा, वे कौन थे ?

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_6959.html


जंग--आजादी में क्रांतिकारियों की भूमिका : अमित कुमार

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4002.html


समय की गतिशील धुरी पर परिकल्पना ने त्रिकाल दर्शन करवा दिए :सरस्वती प्रसाद

http://www.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_4579.html


दिगंबर नासवा की ग़ज़ल

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_3748.html


श्री के० के० यादव का आलेख शाश्वत है भारतीय संस्कृति और इसकी विरासत

http://utsav.parikalpnaa.com/2010/05/blog-post_8647.html


हमें गर्व है हिंदी के इन प्रहरियों पर -2

http://shabd.parikalpnaa.com/2010/05/2.html


utsav.parikalpnaa.com

अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं।

-सुमन
loksangharsha.blogspot.com

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डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा