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हिन्दुस्तान का एक दर्द यह भी --सबको सिर्फ अपनी पड़ीं है ---


इस खबर को पढ़िए , जनता बड़े ढंग से गुस्सा है रेलवे पर| बस सबको अपनी -अपनी पड़ीं है , किसी को युक्ति-युक्तपूर्ण ढंग से नहीं सोचना है | अखवार वाले समाज के ठेकेदार बने हुए हैं पर दूर की , यथार्थ सोच कहाँ है ? तर्क वास्तविकता देखे जाने सोचे बिना बस अपने स्वार्थ के लिए हुंकार भरदेना, जवाब देही मांगना ( जहां आसानी सेचलती है, गुंडों माफियाओं, छेड़खानी करने वालों के लिए कोइ नहीं भरता )| क्या ये सब नहीं सोचा जा सकता किजब प्रकृति के इतने कठोर मौसम कोहरे ठण्ड के कारण जहां कुछ दिखाई नहीं देता, सारे बेतार के तार , मोबाइल,रेडियो,इन्टरनेट लाइनों का सब कुछ ठप है तो अकेली रलवे क्या करे कोइ क्या करे , आखिर काम तो मनुष्य ही करता है |

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डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा