कविवर श्याम बिहारी गुप्त के शब्दों में:
"आचरण ने शब्दों के अर्थ बदल दिए,
फिर ऐसा हुआ कि अँधेरा बाँटने लगे दिए."
विद्यार्थी जीवन के लिए कहा जाता है कि "विद्यार्थी नाम कुतो सुखम"अर्थात विद्याध्ययन का जो समय है उस वक़्त पर छात्र का जीवन एक तपस्वी की मानिंद विद्या प्राप्ति में ही रहता है और रहना चाहिए भी किन्तु समय के परिवर्तन ने इसे भी परिवर्तित कर दिया है अब छात्र के लिए ये समय मौज मस्ती का हो गया है और उनकी सोच तो यहाँ तक हो चुकी है कि [कुछ परिवर्तन के साथ}
"मौज कर दुनिया कि गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ,
जिंदगानी भी रही तो नौजवानी फिर कहाँ.
मैं जिकर कर रही हूँ मोदीपुरम स्थित २३० के वी उप संस्थान बिजलीघर में दिलीप कुमार झा के घर में १ नवम्बर को हुई चोरी का जिसका खुलासा पुलिस ने कर दिया है चोर मेरठ कॉलेज के छात्र हैं और उनका कहना है कि चोरी मस्ती के लिए की थी अब छात्र जब इन कामो में मस्ती ढूँढेंगे तो ये तो होना ही है कि काफी शिद्दत से ढूँढेंगे क्योंकि हर काम को करने के लिए जो जोश चाहिए वह हमारे युवाओं में होता है और वह जोश अब यही कहा जायेगा कि गलत दिशा की और मुड़ रहा है और इसका जिम्मेदार हम भला किसे ठहरा सकते हैं लौट फेर कर बात उनके माता-पिता पर ही आएगी जो बच्चों को सुविधाएँ तो दे रहे है किन्तु संस्कार के नाम पर ना वे कुछ दे रहे हैं और ना मैं समझती हूँ कि वे दे सकते हैं क्योंकि संस्कार के मामले में वे शून्य हैं उन्होंने अपने परिवार बनाते वक़्त केवल शान=ओ=शौकत,धन दौलत को तवज्जो दी बड़ों की शिक्षाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया और उसी का परिणाम आज सारे समाज को भुगतना पड़ रहा है वृद्ध माँ बाप वृधाश्रम में रह रहे हैं और ये खुद अपने घरों में बेगाने से रह रहे हैं .जिस उम्र में बड़ो की शिक्षाएं बच्चों को सही मार्ग दिखाती थी उस उम्र में बच्चे सडको की खाक छानते हैं और इन वर्तमान माँ-बाप के पास उनके लिए वक़्त नहीं और जब वक़्त पास में होगा तब चिड़िया खेत चुग जाएगी.एक शायर के शब्दों में-
"तुझसे बद्जन ना हो कल तेरा ही लहू,
अपने बच्चों को ऐसा निवाला ना दे."
"आचरण ने शब्दों के अर्थ बदल दिए,
फिर ऐसा हुआ कि अँधेरा बाँटने लगे दिए."
विद्यार्थी जीवन के लिए कहा जाता है कि "विद्यार्थी नाम कुतो सुखम"अर्थात विद्याध्ययन का जो समय है उस वक़्त पर छात्र का जीवन एक तपस्वी की मानिंद विद्या प्राप्ति में ही रहता है और रहना चाहिए भी किन्तु समय के परिवर्तन ने इसे भी परिवर्तित कर दिया है अब छात्र के लिए ये समय मौज मस्ती का हो गया है और उनकी सोच तो यहाँ तक हो चुकी है कि [कुछ परिवर्तन के साथ}
"मौज कर दुनिया कि गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ,
जिंदगानी भी रही तो नौजवानी फिर कहाँ.
मैं जिकर कर रही हूँ मोदीपुरम स्थित २३० के वी उप संस्थान बिजलीघर में दिलीप कुमार झा के घर में १ नवम्बर को हुई चोरी का जिसका खुलासा पुलिस ने कर दिया है चोर मेरठ कॉलेज के छात्र हैं और उनका कहना है कि चोरी मस्ती के लिए की थी अब छात्र जब इन कामो में मस्ती ढूँढेंगे तो ये तो होना ही है कि काफी शिद्दत से ढूँढेंगे क्योंकि हर काम को करने के लिए जो जोश चाहिए वह हमारे युवाओं में होता है और वह जोश अब यही कहा जायेगा कि गलत दिशा की और मुड़ रहा है और इसका जिम्मेदार हम भला किसे ठहरा सकते हैं लौट फेर कर बात उनके माता-पिता पर ही आएगी जो बच्चों को सुविधाएँ तो दे रहे है किन्तु संस्कार के नाम पर ना वे कुछ दे रहे हैं और ना मैं समझती हूँ कि वे दे सकते हैं क्योंकि संस्कार के मामले में वे शून्य हैं उन्होंने अपने परिवार बनाते वक़्त केवल शान=ओ=शौकत,धन दौलत को तवज्जो दी बड़ों की शिक्षाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया और उसी का परिणाम आज सारे समाज को भुगतना पड़ रहा है वृद्ध माँ बाप वृधाश्रम में रह रहे हैं और ये खुद अपने घरों में बेगाने से रह रहे हैं .जिस उम्र में बड़ो की शिक्षाएं बच्चों को सही मार्ग दिखाती थी उस उम्र में बच्चे सडको की खाक छानते हैं और इन वर्तमान माँ-बाप के पास उनके लिए वक़्त नहीं और जब वक़्त पास में होगा तब चिड़िया खेत चुग जाएगी.एक शायर के शब्दों में-
"तुझसे बद्जन ना हो कल तेरा ही लहू,
अपने बच्चों को ऐसा निवाला ना दे."
"तुझसे बद्जन ना हो कल तेरा ही लहू,
ReplyDeleteअपने बच्चों को ऐसा निवाला ना दे."
शायर ने बहुत पते की बात की है। अगर आज न सम्भले तो कभी नही सम्भल पायेंगे।अच्छा सन्देश। धन्यवाद।
इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
ReplyDeleteआकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
bilkul sahi kaha aapne....
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