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अपने अपने क्रास



                                                        परम हंस योगानंद ने क्रिसमस के अवसर पर अपने अमेरिका श्रोतओं से कहा था की ' इस ब्रह्माण्ड मै क्राइस्ट- चेतना  विशेष रूप से सक्रीय हो जाती है ! सच्चे  साधक मै विश्वयापी क्राइस्ट की भावना जन्म लेती है ! ध्यान के माध्यम से अज्ञान के बादल छितरा  जाते हैं और बंद आँखों के पीछे के अंधकार मै देवी आलोक के दर्शन होने लगते हैं ! जन - जन मै ये प्रकाश उदित हो यही इस पर्व का उद्देश्य  है !' प्रभु का अंश लेकर जब - जब कोई महान आत्मा इस धरती पर उतरती है , उसका स्वागत  करने के लिए हमे अपने दिल के दरवाजे खोल कर रखने होंगे ! तभी उस चेतना को हम आत्मसात कर पाएंगे ! ईसा मसीह ने कहा है ................' Behold I stand at the door and knock , If any man can hear my voice and open the door , I will come into him sup with him he with me '  अर्थात देखो मै तुम्हारे द्वार  पर खड़ा दस्तक दे रहा हु ! यदि कोई मेरी आवाज़ सुन कर द्वार खोलेगा तो मै अन्दर आकर उसके साथ आ कर भोजन करूँगा और वो मेरे साथ !
                राम और कृष्ण के आह्वान को भी शबरी ने सुदामा ने , विदुर ने सुना था और उनका सानिध्य पाने का सोभाग्य पाया ! ' बड़े दिन ' के झिलमिलाते उत्सव मै जन्म की बधाइयों के बीच से ईसा मसीह की क्रास पर कीलित छवि की करूणा बार - बार उभर कर आ जाती है ! सर्वशक्तिमान होते हुए भी अवतारों , महान आत्माओ को साधारण जन की तरह अपने - अपने क्रास पर लटकना पड़ता है ! यीशु की महिमा केवल मानव जाती के उद्धारक और ईश्वर के पुत्र के रूप के कारण ही नहीं , बल्कि ' सहनशीलता ' की साकार मूर्ति की वजह से भी है ! बाइबल मै कहा गया है ..............की इश्वर हम पर कभी इतना बोझ  नहीं डालता , जिसे हम सहन न कर सके ! उस दुख से  बचने के रास्ते होते हैं , पर बचाव अस्थाई ही होता है ! टाल जाने पर भी वही स्थिति दुबारा आ खड़ी होती है ! इसलिए बचने की कोशिश से कहीं  बेहतर है , उसको पार कर लेना , वश मै कर पाना ! यीशु पर भी जब पीड़ा का समय आया तो उन्होंने कहा ' प्रभु मुझे इस समय से बचाओ फिर साथ ही कहा मै इसी समय के लिए ही तो आया था ' दुख चाहे दूसरों की मुक्ति के लिए सहा जाये , चाहे आत्मविकास  के लिए या दुसरो के कर्मो के कारण सहना पड़े , ईश्वर का प्रसाद समझकर  धीरज से जो व्यक्ति सह लेता है वही कुंदन बनता है ! दुख हमारी साधना , मुक्ति और आस्था की परीक्षा है ! दुख का मातम मनाने , उसे सँभाल कर रखने से वह दुगना हो जाता है ! कष्ट के समय छोटे - छोटे सुखों को याद करने से दुख का प्रभाव कम होता है धेर्य से दुखों  को सहने के बाद पुनरुत्थान मिलता है , जेसे ईसा मसीह को मिला !
                          बुद्धिमान व्यक्ति सदेव आत्मसंतुष्टी   रूपी लो को
                            अपनी इच्छाओं की आहुती से प्रकाशमान
                                     बनाये रखते हैं !

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा