आज एक और युवक ने आत्म हत्या कर ली,पता चला और दुःख हुआ बहुत हुआ और कारण है कि जिसने आत्महत्या की मैं उसे जानती थी .यूं तो रोज़ दुनिया में कितने ही लोग आत्महत्या कर रहे हैं किन्तु जिसे हम जानते हैं उसका हमें ज्यादा दुःख होता है.प्रत्यक्ष रूप से देख रही हूँ कि आज की युवा शक्ति में धेर्य ख़त्म हो रहा है.सभी सोचने लग गए हैं कि हमें चुटकियों में दुनिया की हर दुर्लभ वास्तु हासिल हो जाये,हम एक दिन में दुनिया के अमीरों में शामिल हो जाएँ,हम चाहे कुछ भी करें हमें बड़े कुछ ना कहें आदि आदि इस तरह के बहुत से कारण हैं जो असमय ही हमारी युवा शक्ति को मौत की और धकेल रहे हैं.लेकिन यदि हम गहरे में जाएँ तो ये सभी कारण तात्कालिक हैं और यदि हमारी युवा शक्ति थोडा ये सोचे कि मेरा जीवन मात्र मेरा ही नहीं है इस पर मेरे माता पिता,भाई बहन,पत्नी बच्चों का भी हक बनता है और मैं यदि ऐसा कार्य करता हूँ तो उनके लिए जीवन जीना और कठिन कर देता हूँ तो शायद वह इस गलत कार्य से कदम पीछे हटा ले.हर व्यक्ति के जीवन में समस्याएँ आती हैं और उनसे निबटने में ही जीवन की सफलता कही जा सकती है .मैं जानती हूँ की ये बातें उन लोगों के दिमाग पर कोई असर नहीं करती जिन्हें जीवन से निराशा हो चुकी है . पर मैं फिर भी चाहती हूँ कि जो लोग इस गलत कार्य की और बढ़ रहे हैं या सोच रहे हैं वे एक बार उन लोगों को देखें जिन्होंने उनसे भी कठिन परिस्थितियों को झेला और सफलता का सूर्य देखा.अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन जिंदगी में बहुत असफल रहे किन्तु अंत में वहाँ के राष्ट्रपति बने और यदि वे आपके जैसे अधेर्यावन होते तो क्या होता कुछ नहीं आज सारा विश्व उन्हें जानता है उनका नाम लेता है तब कोई उनका नाम लेने वाला नहीं होता.लता मंगेशकर जी जो आज आप सभी के दिल पर राज कर रही हैं यूं ही सफल नहीं हो गयी उसके पीछे उनकी मेहनत और काफी लम्बा धेर्य काल है,अमिताभ बच्चन जिन्हें फिल्म वाले नकार चुके थे आज तक हमारे दिल पर राज़ कर रहे हैं .यूं तो एक से बढ़ कर एक उदाहरण हैं किन्तु फिल्म वालों के उदाहरण इसलिए ही लिए क्योंकि ये आपकी समझ में जल्द ही आते हैं .देखा जाये तो हर व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा आता है कि उसका जी करता है कि म़र जाऊं किन्तु ऐसे भागने से आप और हम कायर की श्रेणी में आते हैं और हमें चाहिए कि हम जिए तो जिन्दादिली से जिए.क्योंकि कहा भी है:
"जिंदगी जिंदादिली का नाम है,
मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं."
"जिंदगी जिंदादिली का नाम है,
मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं."
बिलकुल सही कहा आपने..हम भी इस दौर से गुजर चुके है,मेरा मानना है की 100 लोग दो बातें कभी न नहीं कभी जरुर सोचते है एक तो आत्महत्या करने की और दूसरी फ़िल्मी दुनिया में जाने की..अच्छा लेख बधाई..
ReplyDeleteअच्छा लेख है... आज उपभोक्तावाद की अंधी दौड़ में तनाव ने ज़िन्दगी की मासूमियत को कैद कर लिया लगता है...
ReplyDeleteप्रेमरस.कॉम