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संवेदना के धागों से बुनी एक खबर

वर्तिका नन्दा

एक अकेला भारत ही संवेदनशील है, भावनाओं के समुंद्र में बहता है और वह उफान में रोज गहराता है, ऐसा नहीं है कार्ला ब्रूनी जब फतेहपुर सीकरी जाती हैं तो अपनी दूसरी शादी और पहले से एक बच्चे की मां होने के बावजूद यह जानकर भावुक हो उठती हैं कि यहां मुराद मांगने से झोली जरूर भरती है। हाथ में चादर लिए वे माथा टेक कर कई मिनट लगातार सरकोजी के जरिए एक बच्चे की मुराद मांगती चली जाती हैं और जब चादर चढ़ा कर बाहर आती हैं तो उनके चेहरे पर नारी सुलभ संकोच और सौम्यता टपकती दिखती है। इलेक्ट्रानिक मीडिया इसी संकोच पर खबर दर खबर गढ़ता चला जाता है। कुछ जगह आधे घंटे के प्रोग्राम बना दिए जाते हैं। कार्ला और सरकोजी कव्वाली की धुन के बीच उस सलीम चिश्ती के रंग में सराबोर दिखते हैं जिसने बादशाह अकबर को भी खाली हाथ नहीं भेजा था। कार्ला बार-बार नमस्ते की मुद्रा में दिखाई देती हैं, कैमरों के सामने उनकी मुस्कुराहट और भी खिल कर सामने आती है। वे भाव विभोर हैं। कैमरे, संगीत का प्रभाव और दमदार एडिटिंग ऐसे माहौल को निर्मित कर देते हैं जहां दुनिया के एक प्रभावशाली देश का शासक भी महज एक याचक की तरह दिखाई देता है।

बाद में कार्ला उस वादे को दोहराते दिखती हैं कि अगली बार वे भारत प्रवास इतना छोटा नहीं बनाएंगीं बल्कि कुछ हफ्तों के लिए यहां रूकना चाहेंगीं। भारत ने उन्हें खींच लिया है। एड्स पीड़ितों से मिलते समय कार्ला ब्रूनी में यही नारीत्व झलकता है। वे एड्स से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को दिलासा और हौसला देती हैं कि उनके बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ होंगे। कार्ला की बातचीत, उनकी चाल और उनके चेहरे के भावों में ममत्व उमड़ता दिखता है। वे भारत में आकर मुग्ध हैं, शब्दहीन हैं और सरोकारों से भरपूर हैं।

इस सबका प्रभाव यह होता है कि जो रिपोर्टिंग महज दिमागी या फिर सिर्फ राजनीतिक रंग में रंगी होनी चाहिए थी, वह मानवीय सरोकारों में बुनी जाने लगती है।

यह मीडिया का एक नया युग है। यहां चौबीसों घंटे राजनीति नहीं परोसी जा सकती। किसी राजनियक, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या सेलिब्रिटी की यात्रा के ऊबाऊ भाषण जनता को ज्यादा खींच नहीं सकता। यह रिपोर्टिंग का मानवीयकरण है। यहां खबर को संवदनाओं के धागे में ऐसा बुना जाता है कि सारे समीकरण ही बदले नजर आने लगते हैं। वे ऐसा बदलते हैं कि यात्रा का अंत आते-आते राष्ट्रपति ओबामा पर मिशेल भारी पड़ जाती हैं। काटेज इंपोरियम में एक माला पहनतीं या मुंबई में एक बच्ची से यह कहतीं मिशेल कि मेरे पति से जरा मुश्किल सवाल पूछो, नारीत्व के ग्लोबल परिदृश्य को साबित करती हैं। वे कह देती हैं कि भाई घर पर तो मेरी ही चलती है। यहां की बॉस मैं ही हूं। यहां कार्ला भी अपने पति सरकोजी पर साफ तौर पर हावी दिखती हैं। लगता है कि जैसे सरकोजी उनके पीछे कदमताल कर रहे हैं। कार्ला सर्वेसर्वा हैं। पति की बागडोर अपने हाथों में लिए हुए उनकी अदा निराली हो उठती है। यहां तक कि रिपोर्टिंग में भी वे ही छाई दिखने लगी हैं। उनका साथ इस यात्रा में रस भरने और भारत के साथ संबंध को पक्का बनाने का काम कर रहा है अन्यथा इस यात्रा के बोझिल दिखने की आशंका बन सकती थी।

शायद इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कूटनीतिक यात्राओं में पत्नी का साथ कई मायने रखता है और वह जरूरी भी है। ऐसा नहीं है कि दांपत्य भारतीय संदर्भ में ही बुनियादी जरूरत सा है बल्कि तमाम आधुनिकताओं के बावजूद पश्चिम भी इसकी जरूरत को महसूस करने लगा है। दरअसल यह वाक्यों के बीच में पढ़ने जैसा ही है। सफल दांपत्य बाहरी जिंदगी में भी पौधों को सींचने का काम करता है। यह बात अलग है कि दुनिया के कई नेताओं को ऐसा सौभाग्य मिल नहीं सका। अटल बिहारी वाजपेयी उन्हीं गिने-चुने नेताओं में से एक हैं। एक अदद पत्नी की मौजूदगी भर बोझिल होते माहौल में ताजगी ला सकती है और झुर्रियों से भरते देशों के आपसी रिश्तों में कसाव ला सकती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ज्यादातर विदेशी यात्राओं में जब अपनी पत्नी गुरशरण कौर के साथ नजर आते हैं तो उसके कई मजबूत संदेश जाते हैं। इस पर एक मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षण किया जाए तो हो सकता है कि कई दिलचस्प तथ्य सामने आएं।

बहरहाल, कार्ला और सरकोजी ने वादा किया है कि इस शादी से बच्चा होने पर वे सलीम चिश्ती की दरगाह में फिर से लौटेंगे। भारत और भारतीयों को इस वादे के पूरे होने का इंतजार रहेगा। तब शायद मीडिया 2010 की इस फुटेज को नए सिरे से जोड़कर संवेदना की कोई नई पराकाष्ठा ही गढ़ दे।


Comments

  1. वर्तिका जी के लेख ने काफी प्रभावित किया...

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  2. नारीत्व के ग्लोबल परिदृश्य को साबित करती हैं
    लेख ने प्रभावित किया.

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  3. nari hai hi sab par bhari.sarthak aalekh...

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--- संजय सेन सागर

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