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भ्रष्टाचार




ताक़त की ख्वाइश ,
                लुट का लालच ,
                             कमजोरो पर ज़ुल्म
                                               कुच्छ का कहना है की ये सब ज़ज्बात हैं !
                    
                           हम खुद को कितना बेहतर  ढंग से समझते हैं इस बात का प्रभाव सामाजिक वास्तविकता की हमारी संचालन क्षमता पर गहराई पूर्वक पड़ता है ! कुच्छ क्षेत्रो मै  हम खुद को बेहतर तरीके से जानते हैं , लेकिन कुच्छ मामलो मै अपने अच्छे रूप मै दीखने की जरुरत या अच्छे पूर्वाग्रह के चलते हम अपने आप से अजनबी बने रहते हैं ! समय बीतता जाता है और हम खुद से ही रूबरू नहीं हो पाते हैं 
                                                             मेरे ख़याल से भ्रष्टाचार  शब्द अपने  आप मै अलग - अलग  बातों  से ताल्लुख  रखता है ! आज दुनिया मै हर तरफ इसी का ही बोल - बाला है और आज ये हर तरह के व्यवसाय मै अपना परिचय बहुत खूबसूरती से करवा रही है ! यु कहो की आज सारी दुनिया इसी के रंगों मै रंगी  पड़ी है ! क्यु  बन जाते हैं लोग भ्रष्टाचारी ? क्या पैसा कमाने की होड़  इसका कारण हो सकता है पर अगर फुर्सत से बैठ कर सोचा जाये तो एक इन्सान को अपने जीवन यापन के लिए कितने पैसों  की जरुरत पड़ सकती है ! दो मुठी के बराबर हमारा पेट है और एक छोटा सा घर और शरीर डाकने के लिए कपडा फिर उससे ज्यादा मिलने के बावजूद भी  क्या चाह रहे हैं हम सब ? फिर ख्याल आता है की कही ये इंसा से ........इंसा  की आगे निकलने की दोड़ तो नहीं अपने आप को एक दुसरे से अच्छा साबित करने की होड़.................. की कही मेरा प्रदर्शन उससे कम न हो जाये और मै इस दोड़ती हुई दुनिया के हाथ से छुट न जाऊ ! और इसी वजह से आज लोगो के अन्दर से बेज्ज़ती , बदनामी ,और संस्कार जेसे शब्दों का एहसासों  ही ख़तम होता जा रहा है उनके पास इतना समय ही नहीं है की वो एक दुसरे की भावनाओ को सुने समझे और विचार कर सके जब  एक दुसरे के लिए  समय ही नहीं होगा तो एहसास को  केसे  महसूस कर पाएंगे ! उन्हें अब इन बातों से कोई फरक नहीं पड़ता की कोई उनके बारे मै क्या सोचता है उसे तो बस भागते जाना है और कुच्छ भी अच्छा या बुरा करके दुनिया के आगे अपने आप को साबित करना है फिर उसके लिए उसे लुटपाट ,चोरी चकारी  यहाँ तक की उसे बलात्कार करके किसी की जिंदगी से खेलने मै भी कोई फर्क नहीं पड़ता ! उसे तो अपना काम करना है बस उसे किसी की भावनाओ की कोई कदर नहीं है ! ये सब उसकी परवरिश , संकुचित सोच और बेबसी की कहानी बयाँ  करती है ! और इन मै से कुच्छ के जिमेदार हम और हमारा  समाज  भी है जिसने उसके अन्दर इस तरह का ख़ालीपन और सोच को जन्म दिया !
          आज दुनिया इतनी तेज़ी से भाग राही है की उसका मनुष्य से मनुष्य का ताल मेल ही ख़तम होता जा रहा है ! कुच्छ लोग इतने आगे निकाल गये हैं की उन तक पहुँच पाना एक आम आदमी के बस की बात ही नहीं है उन्हें खुद भी नहीं पता की उनका आगे का लक्ष्य अब क्या है और कहाँ तक  और जाना है ! और दूसरी तरफ ये हाल है की खाने के लिए कुच्छ भी नहीं है न कोई लक्ष्य ही नज़र आता है वो तो बस अपना लक्ष्य बदल- बदल कर उनकी परझाइयो  को छूने की कोशिश मै लगे हुए हैं ! और उन्ही के नक़्शे कदमो को बदल - बदल कर उन्ही के हथकंडे अपना रहे हैं ! उन्हें ये सब सोचने की जरुरत ही महसूस नहीं हो रही की क्या गलत और क्या सही है क्युकी वो सब तो उनकी नजरो मै महानायक........... हैं फिर वो गलत केसे हो सकते हैं ! इसी वजह से अत्याचार  , लूटमार , बलात्कार आदि को अंजाम दे दे कर वो अपना नाम दर्ज करवाते जा रहे हैं और देश एक भ्रष्टाचार  का रूप लेती चली जा रही है  देश मै अराजकता फेल रही है ! सीधी सी बात है समाज मै रह कर जब कोई सिर्फ आपने बारे मै ही सोचेगा तो ये सब होना तो लाज़मी सी बात है हर कोई अपनी मर्ज़ी से  काम करता है और आपने प्रदर्शन  मै होने वाली टिप्पणी  का इंतजार  औरउसके बाद  फिर आगे की तैयारी शुरू की अब मै एसा क्या करू की फिर सारी जनता का ध्यान मेरी तरफ खींचे !
                  ये झूठी ....... वाह - वाही ही इन्सान को इतना भागने को मजबूर कर रही है ! जबकि जिंदगी जीने के लिए इतने संघर्ष की जरुरत  नहीं पड़ती ! अगर इन्सान का बेहतर करने का मुकाबला किसी दुसरे इन्सान से न होकर अपने  आप से ही हो तो ! ये सब बाते की कोई क्या कर रहा होगा ? मै उस जेसी क्यु  नहीं हु ??  वो मुझसे बेहतर क्यु  है ये सब बाते एक आम इन्सान को बैचेन करने के लिए बहुत बड़ी भूमिका निभाता है  और वो अपने आप को भूल कर दुसरो के पीछे भागने लग जाता है और आपने आस्तित्व को ही भुला बेठता है ! और खुद को भूल कर इस बैचेन कर देने वाली भीड़  का हिस्सा बन जाता है ! अगर हमारा मुकाबला हर वक़्त अपने आप से हो की हमने आज इतना किया और कल इससे  और बेहतर करे तो हम बिना कोई गलत काम का सहारा लेकर अपने  आप को आसानी से उन उँचइयो तक पहुंचा सकते हैं ! शायद हकीक़त मै इसी का नाम एक खुबसूरत  जिंदगी है ! बाक़ी इतनी बड़ी दुनिया मै सबकी अपनी - अपनी सोच है !
                       डसेगा  तुमको ये लालच ...........
                                          हम न कहते थे ?
                      पलट जाएगी एक दिन बाज़ी...........
                                        क्या हम न कहते थे ?

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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