Skip to main content

स्वागत 2011


चली चली देखो चली चली 
इतिहास के पनों मै अपना नाम ................
दर्ज करने 2010 चली  !
सुख - दुख का पिटारा 
हमको देकर ............
वो देखो...वो  अपने देश चली !
कहाँ हम भूलेंगे अब उसको 
हमने ही तो जोड़ा था उसको 
जेसे पतंग  संग डोर बंधी , 
चली - चली , चली - चली 
देखो वो तो हमसे कितनी दूर चली !
कितना समर्पण उसमे देखो 
अपना सब कुच्छ हमको सोंप 
वो ख़ाली हाथ ही पार गई 
चली चली , चली चली 
बिटिया बन वो तो  ससुराल चली !
न घमंड न कोई बेर 
बस इंसा की ये हाथों की मेल  
सबको सब कुच्छ दे ही दिया  
फिर से दामन अपना समेट 
इस दुनियां से नाता  तोड़ चली  
चली चली  , चली  चली
2011 को अपना काम सोंप चली !
कानों मै चुप से स्वागत ही  कहा 
फिर अपना दामन धीरे से छुडा ............
2011  के शोर मै खो सी गई ! 
देखो तो वो सच मै चली चली  !
आओ हम भी कुच्छ ...........
एसा करे 2010  को प्यार से
अलविदा कहें !
नव वर्ष के स्वागत मै लगें !
बधाई दोस्तों !

Comments

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा