पिछले दो-तीन दशक से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाइकोर्ट बैंच के लिए आन्दोलन चला आ रहा है और आश्चर्य की बात यह है कि हर सरकार खुद को जन-हितकारी होने का दावा करती है और जनहित किसमे है इस पर गौर नहीं करती है.यदि हम सीधे सीधे ही इस मुद्दे पर ध्यान देते हैं तो यह केवल वकीलों के फायदे का मुद्दा दीखता है क्योंकि वकीलों का इसमें आर्थिक फायदा दीखता है किन्तु यदि मामले की तह में जाते हैं तो यह जनता के हित में ज्यादा होगा कि हाई कोर्ट की बेंच उनके समीप हो क्योंकि वकील तो फिर भी अपने आने जाने का खर्चा अपनी फीस में जोड़कर अपने मुवक्किल से ले लेंगे किन्तु जनता पर इसके कारण जो आर्थिक दबाव पड़ता है उसकी भरपाई कहीं नहीं हो सकती.साथ ही यह भी देखने में आया है की कुछ वकील भी मुवक्किल के दूर होने का फायदा उठाते हैं और दूर होने के कारण उससे खर्चे के नाम पर गलत पैसे मांगते हैं.ऐसे में कानून मंत्री वीरप्पा मोइली का यह कहना कि वेस्ट में बेंच का कोई प्रस्ताव नहीं वकीलों से ज्यादा जनता को बुरा लगना चाहिए क्योंकि वकीलों का इसमें केवल कुछ आर्थिक फायदा है जबकि जनता कि ज़िन्दगी इससे जुडी है इस आन्दोलन कि सफलता में बाधा ही यह है कि इससे आज तक जनता को जोड़ा ही नहीं गया जबकि यह आन्दोलन जनता के न्याय हित में ही है और यह भी सच है कि जनता के सहयोग के बिना यह सफल भी नहीं हो सकेगा.
---होनी ही चाहिये, जनसंख्या व लिटीगेशन भी बहुत बढ गये हैं और हर सुविधा स्थानीय स्तर पर देने का आधुनिक चलन होना चाहिये.
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