हिन्दुस्तान का दर्द के पाठकों के लिए आज पेश है मेरे द्वारा रचनाकार पर ११ मार्च २००८ को लिखी गयी यह बाल कहानी,सच कितना अजीब सा लगता है जब सालों पुराना कोई लेख या हमारी रचना हमें फिर से पढने को मिलती है हम तब भी बच्चे थे और आज भी बच्चे है..तो दोस्तों नजर दाल लीजिये इस रचना पर...........
-संजय सेन सागर
एक गांव में किसान रहता था जिसका बहुत ही सुखी परिवार था। उसकी पत्नी और आठ सान की बेटी मोहनी बडे आराम से रहती थी। अचानक एक दिन किसान की पत्नी का स्वास्थ्य बिगड़ गया। किसान ने खूब इलाज कराया यहां तक की उसके खेत भी बिक गये पर इलाज में कोई लाभ नहीं हुआ और एक दिन वही हुआ जिसका किसान को डर था। एक दिन किसान की पत्नी का देहांत हो गया। अब तो जैसे किसान के उपर आसमान टूट पड़ा ।अब तो उसे मोहनी की फिक्र होने लगी । दिन भर किसान को दूसरों के खेत में मजदूरी करनी पड़ती थी और रात को स्वयं ही भोजन बनाना पड़ता था। यह सब देखकर मोहनी को बड़ा ही दुख होता था उसे लगने लगा की अब उसे भी काम सीख लेना चाहिए लेकिन उसकी उम्र बहुत कम थी। मोहनी काम सीखने लगी वह बहुत ही परेशान होती थी ।यह सब देखकर एक परी को बहुत ही दया आती थी। उसने सोचा हो ना हो अब मुझे मोहनी की मदद करनी ही होगी। एक दिन परी किसान के जाते ही मोहनी से मिलने जा पहुंची और मोहनी से मीठी मीठी बातें कर दोस्ती कर ली और कहा की मैं तुम्हारे सारे काम कर दिया करूंगी पर हॉ एक बात हैं ही ये सब बातें तुम अपने पिताजी को नहीं बताओगी मोहनी को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गयी उसने झट से हां कर दी। अब क्या था मोहनी के दिन बडे आराम से गुजरने लगे। परी आता और खाना बनाकर चली जाती । इतने जल्दी मोहनी के इतने समझदार होने से किसान को शक होने लगा की मोहनी को यह सब काम करना कहां से आता है। किसान ने सोचा जरूर दाल में कुछ काला है। मुझे पता लगाना होगा। अगले ही दिन किसान मोहनी से कहने लगा की मैं खेत जा रहा हूं ये चार गेहूं के बोरे हैं जो तुम्हें पीसने हैं। मोहनी ने हां में सिर हिला दिया। किसान के जाते ही परी आयी और छड़ी घुमाकर काम किया और चली गयी। अब जब किसान शाम को लौटा तो हैरत में पड़ गया कह मोहनी ने आखिर चार बोरे गेहूं के कैसे पीसे होंगे। अब तो किसान का शक यकीन में बदल गया । अगले दिन किसान खेत का कहकर वही पास में ही छुप गया। इतने में ही परी आ गयी और काम करके मोहनी के साथ खेलने लगी। किसान ने मौके का फायदा उठाते हुए परी की छड़ी उठा ली। अब तो परी बहुत परेशान होने लगी ,उसने किसान से काफी बार कहा की मेरी छड़ी वापस कर दो मगर किसान नहीं माना फिर किसान ने परी के सामने शर्त रखी की अगर तुम मुझसे शादी करोगी तो एक दिन मैं तुम्हारी छड़ी जरूर लौटा दूंगा। परी बिना छड़ी के वापिस नहीं जा सकती थी अब उसके पास सिर्फ यही एक चारा बचा था की वह किसान से शादी करे! बह दिन भी आ गया जिस दिन किसान और परी की शादी थी । किसान और परी की शादी हो गयी। दिन गुजरते गये परी किसान के साथ रहने लगी । बहुत साल बीत गये मोहनी भी अब बड़ी हो गयी थी । किसान ने मोहनी का विवाह एक अच्छे लड़के से तय कर दिया। वह दिन भी जल्द ही आ गया जिस दिन मोहनी का विवाह था। मंडप लगा था, बारात आ चुकी थी जोर तोर से शहनाई बज रही थी, आतिशबाजी हो रही थी। बारातियों को नाचते देख परी का मन भी नाचने का होने लगा। परी ने किसान से कहा की देखो आज हमारी लड़की की शादी है, और मैं आज नाचना चाहती हूं आज मेरी छड़ी मुझे लौटा दो! मैं कुछ देर नाचकर आपको लौटा दूंगी ।किसान ने भी सोचा कि अब दस साल गुजर चुके है कहां जाने वाली है। किसान ने परी को छड़ी दे दी । परी ने छड़ी लेकर नाचना शुरू किया वह घंटों तक नाचती रही ,नाचती रही फिर अचानक छड़ी घुमाकर ऊपर उड़ गयी। उड़ते उड़ते परी की आंखों से आंसू गिरने लगे।
आज उसका मकसद पूरा हो गया था मोहनी के जाने के बाद । परी के गिरते आंसू में मोहनी के लिए प्यार बरस रहा था । किसान की आंखों से भी आंसू गिर रहे थे, मगर सिर्फ अपनी मूर्खता पर।
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बहुत ही सुन्दर कहानी दिल को छू गयी।
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना पड़ कर अच्छा लगा !
ReplyDeletemnushy kitna swarthi hai ...jis pari ne uski beti ki sahayta uski hi chhdi apne pas rakhkar kisan ne pari ko apne sath vivah ke liye badhy kiya .bad me pari ne iska hi badla liya .bahut khoob kahani .
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