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आह

बहुत समय से युवती की व्यथा लिख रही थी !
आज दिल ने कहा क्यु  न मर्द की आह भी लिख डालू !
 हम कहते हैं की मर्द बेवफा होता है !
तो क्या उनके  सीने  मै दर्द नहीं होता है ?
ओरत तो अपने दर्द को आंसुओ से बयाँ कर देती है !
मर्द का व्यक्तितव तो उसे इसकी भी इज्ज़ाज़त नहीं देता !
 कहाँ समेटता होगा वो इस दर्द को ?
वकत के साथ साथ सबका  छुटता हुआ साथ !
किसी से कुछ भी तो नहीं कह पाता है वो ,
बस अपने आपको अपने मै समेटता चला जाता है !
अपनी भावनाओ को किसी से कह भी नहीं पाता
उसे भी तो सहानुभूति , प्यार की जरुरत होती होगी न
फिर वो बेवफा केसे हो सकता है ?
हमारा प्यार जब उसे हिम्मत दे सकता है
तो वही प्यार उसे मरहम क्यु  नहीं ?

Comments

  1. बेवफाई को नारी ओर पुरुष के के बीच भेद नहीं किया जा सकता !

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  3. शुक्रिया दोस्तों !

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  4. ऐसा नहीं है की व्यथा सिर्फ नारी की ही हो सकती है और वह त्रसित है. कभी कभी वह त्रासक बन जाती है , बन क्या जाती है, बनी हुई हैं. कभी उनके दर्द को पढ़ा जाय तो ऐसा ही होगा. कलम के लिए नर या नारी नहीं दर्द का अर्थ सिर्फ दर्द होता है और उतनी तकलीफ लेता है जितना की पहले को.

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  5. badi naajukta key saath aapney jivan ek bohot kadvey sach ko ujaagar kiya hai... ek ek shabd ka bohot sateek arth... khas_kar...

    अपनी भावनाओ को किसी से कह भी नहीं पाता
    उसे भी तो सहानुभूति , प्यार की जरुरत होती होगी न

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  6. सागरजी
    बड़ी मासूम सी रचना है आपकी
    अच्छा लगा

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  7. हर इंसान अलग अलग होता है ... चाहे वो मर्द हो या औरत ... हर किसी में भावनाएं होती है, कमजोरी होती है ..

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  8. मै जानती हु की जो भी मैने लिखा उसमे कुच्छ तो सचाई है पर फिर वही बात सामने आई की मर्द इस आह का भी खुल कर समर्थन नहीं कर पाए इससे उसके दर्द का एहसास और बढ गया !
    मै सभी मित्रो का लेख पड़ने और सराहने का बहुत बहुत धन्यवाद करती !
    और जो पड़ कर भी इसका जवाब नहीं लिख पाए मै उनकी भी शुक्रगुजार हु दोस्त !

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--- संजय सेन सागर

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