मुक्तिका::
कहीं निगाह...
संजीव 'सलिल'
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कदम तले जिन्हें दिल रौंद मुस्कुराना है.
उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है
कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.
हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..
न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..
पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.
न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..
जुलुम की उनके कोई इन्तेहां नहीं लोगों
मेरी रसोई के आगे रखा पाखाना है..
किसी का कौन कभी हो सका या होता है?
अकेले आये 'सलिल' औ' अकेले जाना है..
चढ़ाये रहता है चश्मा जो आँख पे दिन भर.
सचाई ये है कि बन्दा वो 'सलिल' काना है..
गुलाब दे रहे हम तो न समझो प्यार हुआ.
'सलिल' कली को कभी खार भी चुभाना है..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
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--- संजय सेन सागर