Skip to main content

योगदान हेतु



नमस्‍कार महोदय

पिछले कई महीनों से ब्‍लाग जगत पर संस्‍कृत के उत्‍थान के लिये पूरी तरह से समर्पित होने पर भी संस्‍कृत का कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा ।
अत: संस्‍कृत के शीघ्र और सम्‍यक प्रचार और प्रसार के लिये मैंने एक युक्ति सोंची है ।
मुझे आशा नहीं अपितु प्रबल विश्‍वास है कि हमारे इस प्रयास से संस्‍कृत अति द्रुत गति से ब्‍लाग जगत पर प्रसार को प्राप्‍त होगी ।
यह प्रस्‍ताव आप के समक्ष रखना चाहता हूँ , हो सके तो इसमें योगदान करके संस्‍कृत के प्रसार में सहयोग दें ।

हॉंलांकि ब्‍लाग जगत पर प्रत्‍येक लेखक के पास समय की कमी है,
वो अपना समय फालतू जाया नहीं कर सकता अत: मैं ऐसा कोई दुराग्रह नहीं करने जा रहा हूँ ।
मैं आपसे केवल वही निवेदन करूँगा जिसमें आपका समय के नाम पर पूरे एक सप्‍ताह में कहीं दो मिनेट लगेगा ।
संस्‍कृत भाषा के प्रसार के लिये हम अपना इतना समय तो दे ही सकते हैं ।

प्रस्‍ताव यह है
कि आप सभी संस्‍कृतम्-भारतस्‍य जीवनम् ब्‍लाग के लेखक बनें ।
आपको अधिक कुछ नहीं करना होगा ।
हम सभी को कुछ न कुछ श्‍लोक याद जरूर होते हैं ,
हर व्‍यक्ति जो संस्‍कृत चाहे बोल पाता हो या नहीं किन्‍तु संस्‍कृत के दो चार श्‍लोक अपने दैनिक पूजा में ही प्रयोग कर जाता है ।
आपको करना बस यह है कि सप्‍ताह या दो सप्‍ताह में केवल एक श्‍लोक मात्र संस्कृत में लिख कर इस ब्‍लाग पर पोस्‍ट करना है ।
इससे संस्‍कृत के लेख ब्‍लाग जगत पर अनवरत दिखने लगेंगे साथ ही आप को न कोई खास मेहनत करनी पडेगी और न ही अधिक समय देना पडेगा ।

मैं आपको ब्‍लाग लेखन के लिये आमन्‍त्रण का लिंक भेज रहा हूँ
कृपया मेरा ये अनुरोध अवश्‍य स्‍वीकार करें
मेरे लिये न सही, अपनी संस्‍कृत भाषा के लिये आपसे इतना सा निवेदन कर रहा हूँ ।
आशा है आप न नहीं करेंगे ।

आपका -
आनन्‍द
(संग्राहक प्रमुख)
(संस्‍कृतम्-भारतस्‍य जीवनम्)

Comments

Popular posts from this blog

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...