Skip to main content

मै खुद ख़ुशी कर लूगा..

मै खुद ख़ुशी कर लूगा॥
नौकरी छूटी..बीबी रूठी॥
किस्मत भी फूटी॥
लय भी टूटी॥
मै जान दे दूगा...
मै खुद ख़ुशी कर लूगा॥
गम लगे सताने सब लगे डराने...
अगल बगल के मारे ताने॥
मै जहर पी लूगा...
क्या कहूगा कहा पाऊगा॥
बच्चो को कपडे॥ कैसे लूगा॥
मै प्राण दे दूगा...

Comments

  1. खुद ही मरोगे,
    नुकशान अपना ही करोगे ,
    फिर क्या गारंटी है कि
    वहां पहुँच शकुन मिल जाए
    कही यमराज के चमचे कहने लग गए कि
    हमारी भी जेब गरम करो
    वरना जैसा किया है वैसा भरोगे
    खुद ही मरोगे,
    नुकशान अपना ही करोगे ,
    इसलिए जीने का प्रयास करो,
    संघर्ष से न डरो !


    हा-हा-हा , हलके में लीजिएगा बंधू , कोई उपदेश नहीं झाड रहा :)

    ReplyDelete
  2. jindagi se toot kar mai toot chuka hoo...

    ReplyDelete
  3. आपको जो यह जिन्‍दगी मिली है,
    इसमें खुदकुशी के अलावा भी बहुत कुछ है करने को,
    बस जरूरत है अपना हौसला बनाये रखने की .....।

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

डॉ.प्रभुनाथ सिंह भोजपुरी के अनन्य वक्ता थे -केदारनाथ सिंह

डॉ.प्रभुनाथ सिंह के स्वर्गवास का समाचार मुझे अभी चार घंटा पहले प्रख्यात कवि डॉ.केदारनाथ सिंह से मिला। वे हावड़ा में अपनी बहन के यहां आये हुए हैं। उन्हीं से जाना भोजपुरी में उनके अनन्य योगदान के सम्बंध में। गत बीस सालों से वे अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन नाम की संस्था चला रहे थे जिसके अधिवेशन में भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित हुआ था तथा उसी की पहल पर यह प्रस्ताव संसद में रखा गया और उस पर सहमति भी बन गयी है तथा सिद्धांत रूप में इस प्रस्ताव को स्वीकार भी कर लिया गया है। केदार जी ने बताया कि डॉ.प्रभुनाथ सिंह का भोजपुरी में निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ है और कविताएं भी उन्होंने लिखी हैं हालांकि उनका संग्रह नहीं आया है। कुछ कविताएं अच्छी हैं। केदार जी के अनुसार भोजपुरी के प्रति ऐसा समर्पित व्यक्ति और भोजपुरी के एक बड़े वक्ता थे। संभवतः अपने समय के भोजपुरी के सबसे बड़े वक्ता थे। बिहार में महाविद्यालयों को अंगीकृत कालेज की मान्यता दी गयी तो उसमें डॉ.प्रभुनाथ सिंह की बड़ी भूमिका थी। वे उस समय बिहार सरकार में वित्तमंत्री थे। मृत्यु के एक घंटे पहले ही उनसे फोन से बातें हुई ...

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा