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मस्का मरूगी घडी घडी..


चलो रात आज बतलाय लियो॥

मस्का मरूगी घडी घडी॥

तुम पड़े पड़े चिल्लाओ गे॥

मै हंसा करूगी खड़ी खड़ी॥


आँखों में तुम्हारे चमक रहे॥

होठो से मुस्कान भरी॥

मै सज धज कर के तुम्हे निहारूगी॥

इस पल को दोनों याद करे॥

तुम बाह पकड़ फुस्लाओगे॥

अंखिया चारो जब लड़ी लड़ी॥

चलो रात आज बतलाय लियो॥
मस्का मरूगी घडी घडी॥


जब बातो का मौसम बरस रहा हो॥

दोनों का दिल आह भरे॥

थोड़ी से दूरी बच जाती॥

धोखे की थोड़ी आंच लगे॥

फिर भी अर्पण कर देती हूँ॥

हंसती रहती हूँ पड़ी पड़ी॥

चलो रात आज बतलाय लियो॥
मस्का मरूगी घडी घडी॥


दुःख तकलीफ सहन कर लूगी॥

दूर कही न जाने दूगी॥

सदा तुम्हारी बन करके ॥

आंच न कोई आने दूगी॥

सुख संपत्ति जब हंसा करे॥

सावन लागे झड़ी झड़ी॥

चलो रात आज बतलाय लियो॥
मस्का मरूगी घडी घडी॥

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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