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फेसबुक की कामयाबी की कहानी


Source: पीयूष पांडे 

यह सचमुच अकल्पनीय है। साइट की उम्र सिर्फ छह साल और सदस्यों की संख्या पचास करोड़ से अधिक। छोटे से वक्त में वैश्विक परिघटना बन गया है फेसबुक। आखिर फेसबुक में ऐसा क्या है कि सदस्यों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है? क्या साइट एक अरब का आंकड़ा जल्द पार कर जाएगी? क्या एक नए ‘देश’ में तब्दील होते फेसबुक की सत्ता भी गूगल की तरह कई देशों की राजसत्ता के लिए खतरा पैदा करेगी?


फेसबुक अब महज सोशल नेटवर्किग साइट नहीं रह गई है। करोड़ों लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा है। इसके जरिए लोग सिर्फ नेटवर्किग नहीं कर रहे। किसी के लिए जिंदगी की भागदौड़ के बीच यह अकेलेपन से छुटकारा पाने का जरिया है, तो किसी के लिए कारोबारी संपर्क तलाशने का। यह न्यूज, गेम्स, फोटो शेयरिंग, नेटवर्किग और न जाने कितने एप्लीकेशंस के इर्द-गिर्द बुनी एक ऐसी दुनिया है, जहां हर उम्र का शख्स अपना ठिकाना ढूंढ लेता है। 

पिछले एक साल में भारत में फेसबुक के ग्राहकों की संख्या में 400 फीसदी की दर से इजाफा हुआ। इंडोनेशिया में रफ्तार की दर 793 फीसदी, ब्राजील में 810 फीसदी, थाईलैंड में 918 फीसदी और ताईवान में 2,872 फीसदी रही। इन देशों में अभी तक गूगल की सोशल नेटवर्किग साइट ऑकरुट की तूती बोलती थी, लेकिन अब फेसबुक सबसे आगे है। अमेरिका में जहां फेसबुक याहू, गूगल आदि को पीछे छोड़ कर पहले स्थान पर पहुंच चुका है, वहीं भारत में साइट दूसरे नंबर पर है। यह बात नेट प्रयोक्ताओं के व्यवहार बदलने का संकेत भी है। लोग सर्च छोड़ कर नेटवर्किग कर रहे हैं।  

फेसबुक की सफलता की एक वजह उसका तेज अपग्रेडेशन भी रहा। फेसबुक को मिली बढ़त के दौर में मोबाइल फोन और इंटरनेट की दोस्ती भी परवान चढ़ रही थी, जिसका सबसे आसान एप्लीकेशन फेसबुक साबित हुआ। सवाल है कि क्या फेसबुक का विस्तार इसी रिकॉर्ड दर से होता रहेगा? जवाब आसान नहीं है। फेसबुक सामाजिक आवरण लपेटे होने के बावजूद सामाजिक नहीं हो सकता। दरअसल, सोशल नेटवर्क होने के बावजूद लोगों का सामाजिक समूह मौजूद नहीं है। चाहे-अनचाहे लोग दूसरे सामाजिक समूहों में अतिक्रमण करते रहते हैं। इस वजह से लोग जितना अधिक इसका इस्तेमाल करेंगे, वे इसे छोड़ने या कम इस्तेमाल के लिए उतने ही बाध्य होंगे।  

इसके बावजूद प्रयोक्ता फेसबुक को नहीं छोड़ सकते क्योंकि कोई दूसरा बेहतर विकल्प नहीं है। फेसबुक की तर्ज पर गूगल-मी के आने की अटकलें हैं। तो क्या वक्त बदलेगा?

Comments

  1. इसके बावजूद प्रयोक्ता फेसबुक को नहीं छोड़ सकते क्योंकि कोई दूसरा बेहतर विकल्प नहीं है। फेसबुक की तर्ज पर गूगल-मी के आने की अटकलें हैं। तो क्या वक्त बदलेगा?...vqkt badalte der kahan lagti hai...
    Saarthak charcha aur jaankari ke liye dhanyavaad..

    ReplyDelete
  2. आपकी इस पोस्ट की चर्चा "टेकवार्ता" पर की गयी है |

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--- संजय सेन सागर

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