यह भ्रष्टाचारी की भ्रष्ट मंडली॥
इनकी अक्ल बौडाई है॥
चारो तंगी का आलम॥
इनके कारण ही महगाई है॥
खुल्लम खुल्ला घूंस लेते॥
तनिकव नहीं लजाते है॥
अगर तनिक मुह खुल जाता तो॥
बाजा जस बजाते है॥
इनके लिए तो अच्छा मौसम॥
इनके लिए ठिठाई है॥
पूजे जाते भ्रष्ट घरो में॥
अफसर या चपरासी हो॥
कही सच्चाई नहीं बसी अब॥
काबा हो या काशी हो॥
मेरी कलम गलत नहीं लिखती॥
सोचो कितनी गहराई है॥
ज्यादा दिन अब नहीं है चलना॥
कुछ पल में तेरी बिदाई॥
इनकी अक्ल बौडाई है॥
चारो तंगी का आलम॥
इनके कारण ही महगाई है॥
खुल्लम खुल्ला घूंस लेते॥
तनिकव नहीं लजाते है॥
अगर तनिक मुह खुल जाता तो॥
बाजा जस बजाते है॥
इनके लिए तो अच्छा मौसम॥
इनके लिए ठिठाई है॥
पूजे जाते भ्रष्ट घरो में॥
अफसर या चपरासी हो॥
कही सच्चाई नहीं बसी अब॥
काबा हो या काशी हो॥
मेरी कलम गलत नहीं लिखती॥
सोचो कितनी गहराई है॥
ज्यादा दिन अब नहीं है चलना॥
कुछ पल में तेरी बिदाई॥
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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर